प्रयागराज: प्रयागराज में एक ऐसा शिवलिंग है, जिसकी स्थापना स्वयं सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा ने किया था. इस शिवलिंग की स्थापना ब्रह्मा जी ने पृथ्वी पर पहला यज्ञ करने के साथ किया था. यही वजह है कि इस शिवलिंग को नाम ब्रह्मेश्वर महादेव (Brahmeshwar Mahadev Mandir) के नाम से जाना जाता है. इस मंदिर की महिमा का वर्णन पुराणों में भी मिलता है. दशाश्वमेध घाट (Dashashwamedh Ghat) पर स्थित इस मंदिर में एक साथ दो शिवलिंग (Shiva Lingam) की पूजा अर्चना की जाती है.
'ब्रह्मा के शिवलिंग' को जब औरंगजेब ने की खंडित करने की कोशिश, जानें फिर क्या हुआ - brahmeshwar mahadev shivling temple
प्रयाग को यज्ञ और तपस्या की भूमि कहा जाता है. यह हमेशा से देवों, ऋषि, मुनियों के यज्ञ के लिए सर्वोत्तम स्थान रहा रहा है. दारागंज के पूर्वी हिस्से पर गंगा के किनारे पर ब्रह्मेश्वर महादेव स्थित हैं. इस पवित्र स्थल को भगवान ब्रह्मा का शाश्वत स्थान बताया गया है, जो पुराणों में वर्णित है. यहां पर दो शिवलिंग स्थित हैं. श्रावण मास के दौरान जल अर्पण करने, रुद्राभिषेक, जप-तप के लिए यहां तीर्थ यात्रियों का आना-जाना लगा रहता है.
ब्रह्मा का शिवलिंग.
प्रयागराज: प्रयागराज में एक ऐसा शिवलिंग है, जिसकी स्थापना स्वयं सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा ने किया था. इस शिवलिंग की स्थापना ब्रह्मा जी ने पृथ्वी पर पहला यज्ञ करने के साथ किया था. यही वजह है कि इस शिवलिंग को नाम ब्रह्मेश्वर महादेव (Brahmeshwar Mahadev Mandir) के नाम से जाना जाता है. इस मंदिर की महिमा का वर्णन पुराणों में भी मिलता है. दशाश्वमेध घाट (Dashashwamedh Ghat) पर स्थित इस मंदिर में एक साथ दो शिवलिंग (Shiva Lingam) की पूजा अर्चना की जाती है.
सृष्टि की रचना के बाद भगवान ब्रह्मा (Lord Brahma) ने प्रयागराज में संगम के नजदीक दस अश्वमेध यज्ञ किया था और उसी दौरान शिवलिंग की स्थापना कर पूजा की थी. इस मंदिर में भगवान ब्रह्मा ने शिवलिंग स्थापित कर पूजा पाठ किया था, तभी से इस शिवलिंग को ब्रह्मेश्वर महादेव (Brahmeshwar Mahadev Mandir) के नाम से जाना जाता है.
मुगल काल (Mughal Empire) में औरंगजेब (Aurangzeb) ने इस मंदिर में पहुंचकर शिवलिंग पर प्रहार करके उसे खंडित कर दिया था. औरंगजेब के प्रहार की वजह से शिवलिंग बीच से कट गया था. बताया जाता है कि उसके बाद शिवलिंग से दूध और रक्त की धारा बहने के साथ भौंरे निकले और औरंगजेब पर हमला कर दिया, जिसके बाद औरंगजेब वहां से भाग निकला और बाद में उसी स्थान पर दूसरा शिवलिंग प्रकट हो गया था, तभी से दोनों शिवलिंग की पूजा अर्चना की जा रही है.
मुगल आक्रांता के वार से शिवलिंग के खंडित होने के बाद भी उसकी पूजा की जा रही है, क्योंकि विद्वानों का मत था कि भगवान ब्रह्मा के हाथ से स्थापित शिवलिंग को खंडित मानकर उसकी पूजा अर्चना बंद नहीं की जा सकती है. यही वजह है कि आज भी इस मंदिर में एक साथ दो शिवलिंगों की पूजा-अर्चना की जा रही है. एक शिवलिंग को ब्रह्मेश्वर महादेव (Brahmeshwar Mahadev) मानकर पूजा जाता है, तो दूसरे शिवलिंग को दशाश्वमेध महादेव (Dashashwamedh Mahadev) मानकर पूजा-अर्चना की जाती है.
इस मंदिर और शिवलिंग का वर्णन शिव पुराण (Shiva Purana), स्कंद पुराण (Skanda Purana) और मत्स्य पुराण (Matsya Purana) में विस्तार से किया गया है. भगवान ब्रह्मा द्वारा स्थापित किए गए इस शिवलिंग का दर्शन पूजन करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. मान्यता है कि स्कन्द पुराण के अनुसार दशहरे के दिन इस शिवलिंग का दर्शन करने से पिछले दस जन्मों के पाप से भी मुक्ति मिलती है. इसी कारण दशहरे के दिन भी यहां शिवभक्तों की काफी भीड़ जुटती है.
सृष्टि की रचना के बाद भगवान ब्रह्मा (Lord Brahma) ने प्रयागराज में संगम के नजदीक दस अश्वमेध यज्ञ किया था और उसी दौरान शिवलिंग की स्थापना कर पूजा की थी. इस मंदिर में भगवान ब्रह्मा ने शिवलिंग स्थापित कर पूजा पाठ किया था, तभी से इस शिवलिंग को ब्रह्मेश्वर महादेव (Brahmeshwar Mahadev Mandir) के नाम से जाना जाता है.
मुगल काल (Mughal Empire) में औरंगजेब (Aurangzeb) ने इस मंदिर में पहुंचकर शिवलिंग पर प्रहार करके उसे खंडित कर दिया था. औरंगजेब के प्रहार की वजह से शिवलिंग बीच से कट गया था. बताया जाता है कि उसके बाद शिवलिंग से दूध और रक्त की धारा बहने के साथ भौंरे निकले और औरंगजेब पर हमला कर दिया, जिसके बाद औरंगजेब वहां से भाग निकला और बाद में उसी स्थान पर दूसरा शिवलिंग प्रकट हो गया था, तभी से दोनों शिवलिंग की पूजा अर्चना की जा रही है.
मुगल आक्रांता के वार से शिवलिंग के खंडित होने के बाद भी उसकी पूजा की जा रही है, क्योंकि विद्वानों का मत था कि भगवान ब्रह्मा के हाथ से स्थापित शिवलिंग को खंडित मानकर उसकी पूजा अर्चना बंद नहीं की जा सकती है. यही वजह है कि आज भी इस मंदिर में एक साथ दो शिवलिंगों की पूजा-अर्चना की जा रही है. एक शिवलिंग को ब्रह्मेश्वर महादेव (Brahmeshwar Mahadev) मानकर पूजा जाता है, तो दूसरे शिवलिंग को दशाश्वमेध महादेव (Dashashwamedh Mahadev) मानकर पूजा-अर्चना की जाती है.
इस मंदिर और शिवलिंग का वर्णन शिव पुराण (Shiva Purana), स्कंद पुराण (Skanda Purana) और मत्स्य पुराण (Matsya Purana) में विस्तार से किया गया है. भगवान ब्रह्मा द्वारा स्थापित किए गए इस शिवलिंग का दर्शन पूजन करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. मान्यता है कि स्कन्द पुराण के अनुसार दशहरे के दिन इस शिवलिंग का दर्शन करने से पिछले दस जन्मों के पाप से भी मुक्ति मिलती है. इसी कारण दशहरे के दिन भी यहां शिवभक्तों की काफी भीड़ जुटती है.
Last Updated : Jul 26, 2021, 12:59 AM IST