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मेसर्स वी के ट्रेडर्स के मालिक की जमानत अर्जी खारिज, जानिए क्या है मामला

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मेसर्स वीके ट्रेडर्स के मालिक की ओर से दाखिल अग्रिम जमानत अर्जी खारिज कर दी है. कोर्ट ने कहा असंज्ञेय अपराधों में अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती.

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इलाहाबाद हाई कोर्ट
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Published : Mar 9, 2022, 10:50 PM IST

प्रयागराज. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि (असंज्ञेय) जमानती अपराधों के मामलों में अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती. केवल संज्ञेय अपराधों में ही अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल की जा सकती हैं. न्यायमूर्ति समित गोपाल ने मेसर्स वी के ट्रेडर्स के मालिक की ओर से दाखिल अग्रिम जमानत अर्जी खारिज कर दी है. कहा कि चूंकि अपराध जमानती हैं, इसलिए अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती.

एक करोड़ 80 लाख 86 हजार 343 रुपये का इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) (input tax credit) गलत ढंग से लिया गया था. इसे प्रथम दृष्टया मेसर्स वीके ट्रेडर्स द्वारा प्राप्त करना बताया गया है. अपराध केंद्रीय बोर्ड ऑफ सर्विस टैक्स, मेरठ जोन से संबंधित है और आरोप जमानती अपराध है. यह तर्क दिया गया कि याची एक प्रोपराइटरशिप फर्म है. इसका आवेदक नं 2 एकमात्र मालिक है. विपक्षी वकीलों का कहना था कि सभी अपराध जमानती हैं. वर्तमान विवाद में राशि बहुत कम है. इसलिए आवेदक अग्रिम जमानत पाने का हकदार है.

यह भी पढ़ें-तेलंगाना : भाजपा विधायकों के निलंबन पर हाईकोर्ट ने विधानमंडल सचिव को भेजा नोटिस

यह था विचारणीय मुद्दा

हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता के मन में उचित आशंका या विश्वास होना चाहिए कि उसे इस तरह के आरोप के आधार पर गिरफ्तार किया जाएगा. सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि धारा 438 गैर-जमानती अपराधों से संबंधित है. अदालत के विवेक का प्रयोग करने की शर्त यह है कि इस तरह की राहत की मांग करने वाले व्यक्ति को गैर-जमानती अपराध करने के आरोप में अपनी गिरफ्तारी की उचित आशंका होनी चाहिए.

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प्रयागराज. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि (असंज्ञेय) जमानती अपराधों के मामलों में अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती. केवल संज्ञेय अपराधों में ही अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल की जा सकती हैं. न्यायमूर्ति समित गोपाल ने मेसर्स वी के ट्रेडर्स के मालिक की ओर से दाखिल अग्रिम जमानत अर्जी खारिज कर दी है. कहा कि चूंकि अपराध जमानती हैं, इसलिए अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती.

एक करोड़ 80 लाख 86 हजार 343 रुपये का इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) (input tax credit) गलत ढंग से लिया गया था. इसे प्रथम दृष्टया मेसर्स वीके ट्रेडर्स द्वारा प्राप्त करना बताया गया है. अपराध केंद्रीय बोर्ड ऑफ सर्विस टैक्स, मेरठ जोन से संबंधित है और आरोप जमानती अपराध है. यह तर्क दिया गया कि याची एक प्रोपराइटरशिप फर्म है. इसका आवेदक नं 2 एकमात्र मालिक है. विपक्षी वकीलों का कहना था कि सभी अपराध जमानती हैं. वर्तमान विवाद में राशि बहुत कम है. इसलिए आवेदक अग्रिम जमानत पाने का हकदार है.

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हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता के मन में उचित आशंका या विश्वास होना चाहिए कि उसे इस तरह के आरोप के आधार पर गिरफ्तार किया जाएगा. सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि धारा 438 गैर-जमानती अपराधों से संबंधित है. अदालत के विवेक का प्रयोग करने की शर्त यह है कि इस तरह की राहत की मांग करने वाले व्यक्ति को गैर-जमानती अपराध करने के आरोप में अपनी गिरफ्तारी की उचित आशंका होनी चाहिए.

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