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वर्चुअल सुनवाई की व्यवस्था 'वादकारी का हित सर्वोच्च सिद्धांत' के खिलाफ- कांस्टीट्यूशनल एंड सोशल रिफॉर्म - Constitutional and social reform

कांस्टीट्यूशनल एंड सोशल रिफॉर्म के राष्ट्रीय अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता एमएन त्रिपाठी का कहना है कि खुली अदालत का कोई स्थायी विकल्प नहीं है. वर्चुअल सुनवाई की व्यवस्था 'वादकारी का हित सर्वोच्च सिद्धांत' के खिलाफ है.

वर्चुअल सुनवाई की व्यवस्था
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Published : Jul 6, 2021, 8:08 PM IST

प्रयागराज: कांस्टीट्यूशनल एंड सोशल रिफॉर्म के राष्ट्रीय अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता एमएन त्रिपाठी ने कोरोना संक्रमण नियंत्रित होने की स्थिति को देखते हुए मुख्य न्यायाधीश से खुली अदालत में सुनवाई शुरू करने की मांग की है. उन्होंने कहा कि वर्चुअल सुनवाई से 'वादकारी का हित सर्वोच्च' के मूल सिद्धांत की अनदेखी करना न्यायिक मानदंडों के खिलाफ है.

एमएन त्रिपाठी के अनुसार, स्थापित सिद्धांत है कि न्याय होते हुए दिखना भी चाहिए. वर्चुअल सुनवाई में वादकारी को दूर रखकर जज और वकील न्याय प्रक्रिया पूरी कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि मुकदमों के दोनों पक्षों को कोर्ट की कार्यवाही देखने और सुनने का अधिकार है.फैसले में तर्कों की समीक्षा के आधार पर उन्हें अपील करने का अधिकार है. वर्चुअल सुनवाई में यह संभव नहीं है. एमएन त्रिपाठी ने कहा कि वर्चुअल सिस्टम, वीडियो कांफ्रेंसिंग कार्यपालन विभागों के लिए उपयुक्त है न कि कोर्ट की कार्यवाही के लिए. प्रदेश की 70 फीसदी जनता गांवों में निवास करती है, जो तकनीकी जानकारी नहीं रखती. खासकर सिविल मुकदमों में वादकारी की जानकारी में कोर्ट की कार्यवाही की जानी चाहिए.

इसे भी पढ़ें- झूठी शान के लिए व्यक्तिगत स्वतंत्रता छीनने का किसी को हक नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

एमएन त्रिपाठी के अनुसार, आपात स्थिति में अपनाई गई तकनीकी व्यवस्था को हमेशा के लिए लागू करना, न्याय व्यवस्था के लिए उचित नहीं हो सकता. भारतीय विधिज्ञ परिषद ने स्पष्ट कहा है कि खुली अदालत का कोई विकल्प नहीं है इसलिए ऐसी ही व्यवस्था करने पर ध्यान देना चाहिए.

प्रयागराज: कांस्टीट्यूशनल एंड सोशल रिफॉर्म के राष्ट्रीय अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता एमएन त्रिपाठी ने कोरोना संक्रमण नियंत्रित होने की स्थिति को देखते हुए मुख्य न्यायाधीश से खुली अदालत में सुनवाई शुरू करने की मांग की है. उन्होंने कहा कि वर्चुअल सुनवाई से 'वादकारी का हित सर्वोच्च' के मूल सिद्धांत की अनदेखी करना न्यायिक मानदंडों के खिलाफ है.

एमएन त्रिपाठी के अनुसार, स्थापित सिद्धांत है कि न्याय होते हुए दिखना भी चाहिए. वर्चुअल सुनवाई में वादकारी को दूर रखकर जज और वकील न्याय प्रक्रिया पूरी कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि मुकदमों के दोनों पक्षों को कोर्ट की कार्यवाही देखने और सुनने का अधिकार है.फैसले में तर्कों की समीक्षा के आधार पर उन्हें अपील करने का अधिकार है. वर्चुअल सुनवाई में यह संभव नहीं है. एमएन त्रिपाठी ने कहा कि वर्चुअल सिस्टम, वीडियो कांफ्रेंसिंग कार्यपालन विभागों के लिए उपयुक्त है न कि कोर्ट की कार्यवाही के लिए. प्रदेश की 70 फीसदी जनता गांवों में निवास करती है, जो तकनीकी जानकारी नहीं रखती. खासकर सिविल मुकदमों में वादकारी की जानकारी में कोर्ट की कार्यवाही की जानी चाहिए.

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एमएन त्रिपाठी के अनुसार, आपात स्थिति में अपनाई गई तकनीकी व्यवस्था को हमेशा के लिए लागू करना, न्याय व्यवस्था के लिए उचित नहीं हो सकता. भारतीय विधिज्ञ परिषद ने स्पष्ट कहा है कि खुली अदालत का कोई विकल्प नहीं है इसलिए ऐसी ही व्यवस्था करने पर ध्यान देना चाहिए.

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