प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी बोर्ड की पाठ्य पुस्तक विक्रेताओं को राहत देते हुए उनको उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा गैर अनुमोदित पाठ्यपुस्तक के भी बेचने की छूट दे दी है. कोर्ट ने इस मामले में माध्यमिक शिक्षा परिषद द्वारा जारी आदेश पर रोक लगा दी है. साथ ही प्रदेश सरकार व बोर्ड से जवाब तलब किया है. राजीव प्रकाशन एंड कंपनी की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति उमेश चंद शर्मा की खंडपीठ ने दिया.याचिका में माध्यमिक शिक्षा परिषद द्वारा 6 जुलाई 2022 में जारी उस आदेश को चुनौती दी गई है जिसमें कहा गया है कि पुस्तक विक्रेता बोर्ड द्वारा अनुमोदित पाठ्य पुस्तकों के अलावा अन्य कोई किताबें नहीं रखेंगे.
कोर्ट को बताया गया कि माध्यमिक शिक्षा परिषद को पाठ्य पुस्तकों और पाठ सामग्री निर्धारित करने का अधिकार है. इसके तहत बोर्ड ने हाईस्कूल व इंटरमीडिएट के विभिन्न विषयों के लिए 34 विषयों की 67 एनसीईआरटी किताबों का चयन किया. इनके प्रकाशन का लाइसेंस 3 प्रकाशकों को दिया है. जुलाई 2022 में सभी जिला विद्यालयों को जारी निर्देश में कहा गया है कि बोर्ड द्वारा अनुमोदित इन पाठ्य पुस्तकों की पायरेसी और डुप्लीकेसी को रोका जाए. इस आदेश के क्रम में संबंधित जिला विद्यालय निरीक्षकों ने पाठ्य पुस्तक विक्रेताओं को बोर्ड द्वारा अनुमोदित पुस्तकों के अलावा अन्य पुस्तकें नहीं बेचने का आदेश जारी किया है.
पुस्तक विक्रेताओं का कहना है कि पाठ्य पुस्तकों की पायरेसी या डुप्लीकेट पुस्तके छापने का मामला व्यक्तिगत है तथा ऐसे मामलों में संबंधित कानून के तहत कार्रवाई की जा सकती है. मगर ऐसा कोई सामान्य आदेश नहीं जारी किया जा सकता है. क्योंकि छात्र अपनी कोर्स की किताबों के अलावा विषय की जानकारी बढ़ाने के लिए बहुत से अन्य रिफरेंस बुक्स का भी अध्ययन करते हैं. इस प्रकार का आदेश न सिर्फ अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ है बल्कि आजीविका अर्जित करने के मौलिक अधिकार के विरुद्ध है. कोर्ट ने कहा कि अन्य लेखकों की पुस्तकों के प्रकाशन पर रोक नहीं लगाई जा सकती है छात्र इनका रेफरेंस बुक के तौर पर प्रयोग करते हैं. हालांकि इनको पाठ्यपुस्तक के तौर पर नहीं पढ़ाया जा सकता है. कोर्ट ने जिला विद्यालय निरीक्षक के आदेश पर रोक लगाते हुए प्रदेश सरकार से इस मामले में जवाब तलब किया है.
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