प्रयागराजः इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि कपट और न्याय एक साथ नहीं रह सकते हैं. ये एक स्थापित विधि सिद्धांत है. कोर्ट में तथ्य छिपाया गया है. सहीं तथ्य नहीं दिये गये हैं. जिसके चलते बिना सरकार को जवाब दाखिल करने का मौका दिए याचिका मंजूर हो गई. इस आदेश को चुनौती देने में सरकार ने काफी देरी की है. जिसपर विचार होना चाहिए.
कोर्ट ने राज्य सरकार की ओर से विलंब से दाखिल विशेष अपील पर याची विपक्षी कर्मचारी को चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है. उन्होंने कहा है कि जब तक अपील दाखिले में विलंब माफी पर विचार नहीं कर लिया जाता है, तब तक एकल पीठ के ब्याज सहित याची विपक्षी को सेवानिवृत्ति परिलाभों का भुगतान न किया जाए. ये आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र और न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश राज्य की विशेष अपील पर दिया है.
राज्य सरकार के अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता सुधांशु श्रीवास्तव का कहना है कि याची ने तथ्य छिपाया है और एकलपीठ से आदेश प्राप्त कर लिया है. जिसे रद्ध किया जाए. याची विपक्षी राजेंद्र कुमार वाजपेयी ने याचिका दायर की थी, जो 2010 में खारिज हो गई. इसके खिलाफ विशेष अपील और सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी भी खारिज हो चुकी है.
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इन तथ्यों को छिपाकर नई याचिका दाखिल की है. कोर्ट ने सरकार से जवाब तलब किये बगैर याचिका मंजूर कर ली और याची को सेवानिवृत्ति परिलाभों का भुगतान मय ब्याज के करने का निर्देश दिया है. जिसे अपील में सरकार ने चुनौती दी है. सरकार का कहना था कि कोविड के कारण अपील दाखिल करने की सरकार की अनुमति मिलने में देरी हुई है. जिसे माफ किया जाए. विपक्षी का जवाब आने के बाद सरकार को सुनकर देरी माफी अर्जी की सुनवाई होगी.