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इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश, नाबालिग भी पा सकता है अग्रिम जमानत - नाबालिग को भी अग्रिम जमानत

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि नाबालिग को भी अग्रिम जमानत हासिल करने का अधिकार है. नाबालिग को गिरफ्तार या निरुद्ध किया जाता है तो उसे अग्रिम जमानत दी जानी चाहिए.

इलाहाबाद हाईकोर्ट
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Published : Jun 5, 2023, 10:53 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि नाबालिग को भी अग्रिम जमानत हासिल करने का अधिकार है. किसी मामले गिरफ्तारी या निरुद्ध किए जाने की आशंका होने पर नाबालिग भी अग्रिम जमानत की अर्जी दाखिल कर सकता है.

यह निर्णय मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर एवं न्यायमूर्ति समित गोपाल की खंडपीठ ने साहब अली केस में एकल पीठ के कानूनी प्रश्न पर दिया है. खंडपीठ ने कहा कि यह कहना सही नहीं है कि नाबालिग अग्रिम जमानत अर्जी नहीं दाखिल कर सकता, क्योंकि उसे इसका अधिकार नहीं है. ऐसा करके उसे अग्रिम जमानत के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है.

एकल न्याय पीठ ने जैद अली और कई अन्य की अग्रिम जमानत याचिकाओं पर यह कानूनी प्रश्न वृहद पीठ को संदर्भित किया था. खंडपीठ ने कहा कि नाबालिग को 2015 के संशोधन में जुवनाइल जस्टिस एक्ट के तहत अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल करने का अधिकार है और अंतरिम जमानत अर्जी पोषणीय है, क्योंकि सीआरपीसी की धारा 438 में किशोर की ओर से अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल करने पर कोई रोक नहीं है.

साहब अली केस में एकल पीठ ने कहा था कि जुवनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 10 व 12 के प्रावधानों के मुताबिक नाबालिग की गिरफ्तारी की आशंका नहीं है इसलिए उसे अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल करने का अधिकार नहीं है. खंडपीठ ने कहा कि एक्ट में ऐसी कोई रोक नहीं है इसलिए अपराध में सम्मिलित होने व संदेह की आशंका वाले किशोर को उसके वैधानिक उपचार से वंचित नहीं रखा जा सकता. यदि उसे अपनी गिरफ्तारी की आशंका हो तो विधायन ने ऐसी स्थिति में धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत की मांग करने पर कोई रोक नहीं लगाई है.

खंडपीठ ने कहा कि यदि ऐसा अधिकार नहीं दिया जाता है तो फिर नाबालिग को अपने मौलिक अधिकार से वंचित होना होगा. साहब अली केस के निर्णय में यह बात वैधानिक तौर से उचित नहीं है कि अपराध में लिप्त किशोर के लिए अग्रिम जमानत का सीमित अवसर ही है. वास्तव में कानून किशोर को किसी दूसरे व्यक्ति की तरह ही समान अवसर उपलब्ध कराता है. नाबालिग को गिरफ्तार या निरुद्ध किया जाता है तो उसे अग्रिम जमानत दी जानी चाहिए. बाल अपचारी को अग्रिम जमानत पाने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता.

यह भी पढ़ें-क्रिकेट खेलते-खेलते कैसे मुख्तार अंसारी ने थामी बंदूक, पूर्वांचल की धरती को कर दिया था रक्तरंजित

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि नाबालिग को भी अग्रिम जमानत हासिल करने का अधिकार है. किसी मामले गिरफ्तारी या निरुद्ध किए जाने की आशंका होने पर नाबालिग भी अग्रिम जमानत की अर्जी दाखिल कर सकता है.

यह निर्णय मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर एवं न्यायमूर्ति समित गोपाल की खंडपीठ ने साहब अली केस में एकल पीठ के कानूनी प्रश्न पर दिया है. खंडपीठ ने कहा कि यह कहना सही नहीं है कि नाबालिग अग्रिम जमानत अर्जी नहीं दाखिल कर सकता, क्योंकि उसे इसका अधिकार नहीं है. ऐसा करके उसे अग्रिम जमानत के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है.

एकल न्याय पीठ ने जैद अली और कई अन्य की अग्रिम जमानत याचिकाओं पर यह कानूनी प्रश्न वृहद पीठ को संदर्भित किया था. खंडपीठ ने कहा कि नाबालिग को 2015 के संशोधन में जुवनाइल जस्टिस एक्ट के तहत अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल करने का अधिकार है और अंतरिम जमानत अर्जी पोषणीय है, क्योंकि सीआरपीसी की धारा 438 में किशोर की ओर से अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल करने पर कोई रोक नहीं है.

साहब अली केस में एकल पीठ ने कहा था कि जुवनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 10 व 12 के प्रावधानों के मुताबिक नाबालिग की गिरफ्तारी की आशंका नहीं है इसलिए उसे अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल करने का अधिकार नहीं है. खंडपीठ ने कहा कि एक्ट में ऐसी कोई रोक नहीं है इसलिए अपराध में सम्मिलित होने व संदेह की आशंका वाले किशोर को उसके वैधानिक उपचार से वंचित नहीं रखा जा सकता. यदि उसे अपनी गिरफ्तारी की आशंका हो तो विधायन ने ऐसी स्थिति में धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत की मांग करने पर कोई रोक नहीं लगाई है.

खंडपीठ ने कहा कि यदि ऐसा अधिकार नहीं दिया जाता है तो फिर नाबालिग को अपने मौलिक अधिकार से वंचित होना होगा. साहब अली केस के निर्णय में यह बात वैधानिक तौर से उचित नहीं है कि अपराध में लिप्त किशोर के लिए अग्रिम जमानत का सीमित अवसर ही है. वास्तव में कानून किशोर को किसी दूसरे व्यक्ति की तरह ही समान अवसर उपलब्ध कराता है. नाबालिग को गिरफ्तार या निरुद्ध किया जाता है तो उसे अग्रिम जमानत दी जानी चाहिए. बाल अपचारी को अग्रिम जमानत पाने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता.

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