प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अधिकतर माता-पिता, जिनके बेटे की अकाल मृत्यु हो जाती है, अपनी बहू को उसकी मृत्यु के लिए दोषी ठहराते हैं. यही नहीं उसे उसके पति की संपत्ति से वंचित करने के लिए उचित और अनुचित हर तरह का सहारा लेकर उससे छुटकारा पाना चाहते हैं. यह टिप्पणी न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने दीपिका शर्मा की याचिका की सुनवाई करते हुए की. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अनुकंपा के आधार पर विधवा की नियुक्ति पर विचार करने का आदेश दिया है.
याचिका में पति की मृत्यु के कारण विधवा याची को अनुकंपा नियुक्ति देने का भी बीएसए कुशीनगर को निर्देश देने की मांग की गई थी. याची का पति 2015 में प्राइमरी स्कूल में सहायक अध्यापक नियुक्त हुआ और सितंबर 2021 में मृत्यु हो गई. याची का कहना था कि उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं है और पति की मृत्यु के बाद वह व उसका एक साल का बच्चा भुखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं. हाईकोर्ट ने याची की नियुक्ति पर विचार करने का निर्देश दिया है.
इस बीच उसके ससुर ने दावा किया कि याची उसके बेटे को परेशान कर रही थी, जिससे वह बीमार हो गया और मर गया. उन्होंने यह भी कहा कि याची की क्रूरता के परिणामस्वरूप उसके बेटे की मृत्यु हुई. साथ ही मृतक के भाई ने याची के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराते हुए आरोप लगाया कि उसने फोन पर अपने भाई की गर्दन काटने की धमकी दी. एफआईआर में कई अन्य आरोप लगाए गए थे. मृतक के पिता ने कुशीनगर में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी को अपने पक्ष में एक वसीयत भी भेजी. उक्त तथ्यों के कारण याची की अनुकंपा नियुक्ति लटकी रही.
हाईकोर्ट ने कहा कि यदि सरकारी सेवा में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसकी पत्नी, बेटे और अविवाहित व विधवा बेटियां अनुकंपा नियुक्ति के लिए पात्र हैं. कोर्ट ने कहा कि मृत्यु से पहले न तो याची के ससुर और न ही उसके देवर ने याची के खिलाफ कोई शिकायत दर्ज की थी. मृतक के पिता व भाई नहीं चाहते कि याची को अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति दी जाए. हाईकोर्ट ने कहा कि याची के ससुर व देवर का व्यवहार सामान्य नहीं है, क्योंकि अधिकतर माता-पिता जिनके बेटे की अप्रत्याशित रूप से मृत्यु हो जाती है, बहू को उसकी मृत्यु के लिए दोषी ठहराते हैं और उसे पति की संपत्ति से वंचित करने के लिए हर तरह से बेईमानी कर उससे छुटकारा पाना चाहते हैं.
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हाईकोर्ट ने कहा कि यह ऐसा ही एक मामला है. इसमें याची के पति की मृत्यु के बाद उसके ससुर और देवर उसे अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति से वंचित करने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं. कोर्ट ने कहा कि उनके कार्यों से संकेत मिलता है कि वे अब उसे और उसकी नाबालिग बेटी को परिवार के सदस्य के रूप में स्वीकार नहीं करते हैं. ऐसे में याची पूरी तरह से शक्तिहीन है. कोर्ट ने यह भी कहा कि नियमों की धारा 2 (सी) में ससुर और देवर को परिवार की परिभाषा से बाहर रखा गया है और इस प्रकार वे अनुकंपा नियुक्ति के लिए अपात्र हैं.
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