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शिक्षा मित्रों को सम्मानजनक मानदेय दे सरकार, हाई कोर्ट ने कमेटी गठित करने का दिया निर्देश

हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने उच्च स्तरीय कमेटी गठित कर शिक्षा मित्रों का मानदेय (Honorarium of Shiksha Mitras) बढ़ाने के लिए प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा है कि सरकार यह तय नहीं कर सकती कि शिक्षा मित्र समान कार्य के लिए समान वेतन पाने के हकदार हैं या नहीं.

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शिक्षा मित्रों का मानदेय
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 12, 2024, 10:55 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वह शिक्षा मित्रों को सम्मानजनक और आजीविका के लिए आवश्यक मानदेय का भुगतान करें. कोर्ट ने कहा कि मौजूदा समय में शिक्षा मित्रों का मानदेय बहुत कम है. इसलिए सरकार एक उच्च स्तरीय कमेटी गठित कर मानदेय वृद्धि पर निर्णय ले. हालांकि कोर्ट ने शिक्षा मित्रों द्वारा समान कार्य समान वेतन के सिद्धांत पर सहायक अध्यापकों के बराबर वेतन देने की मांग को स्वीकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि इस मुद्दे पर निर्णय किसी विशेषज्ञ समिति द्वारा लिया जाना चाहिए. इसलिए याची राज्य सरकार के सक्षम प्राधिकारी से इस संबंध में संपर्क करें. जो सहानुभूति पूर्वक उनकी मांग पर विचार कर निर्णय ले.जितेंद्र कुमार भारतीय और दर्जनों शिक्षा मित्रों की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने दिया है.

याची गण का पक्ष रख रहे अधिवक्ता सत्येंद्र चंद्र त्रिपाठी और अग्निहोत्री कुमार त्रिपाठी का कहना था, कि राज्य सरकार द्वारा वर्ष 1998 में जारी शासनादेश के तहत प्रदेश के परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा मित्रों की नियुक्ति की गई. नियुक्ति 1 वर्ष की अवधि के लिए संविदा के आधार पर की गई थी, जिसे प्रत्येक वर्ष रिन्यू किया जाता है. तब से वह लगभग 18 सालों से शिक्षामित्र नियमित रूप से नियुक्त सहायक अध्यापकों की तरह ही काम कर रहे हैं. लेकिन, उनको काफी कम मानदेय दिया जाता है. अधिवक्ताओं ने समान कार्य के लिए समान वेतन के सिद्धांत पर शिक्षामित्र को सहायक अध्यापकों के समान वेतन दिए जाने या कम से कम न्यूनतम वेतन मान दिए जाने की मांग की. यह भी कहा गया कि शिक्षामित्र को मिलने वाले मानदेय को पुनरीक्षित किया जाए.

इसे भी पढ़े-तदर्थ शिक्षकों की सेवाएं समाप्त करने के आदेश पर कोर्ट ने लगाई रोक

याचियो की ओर से सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए कई न्यायिक निर्णय का हवाला देकर समान कार्य के लिए समान वेतनमान दिए जाने की मांग की गई. दूसरी ओर से राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि याची समान कार्य के लिए समान वेतन पाने के हकदार नहीं है, क्योंकि वह संविदा पर कार्य कर रहे हैं. कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में निर्विवाद रूप से शिक्षामित्र और सहायक अध्यापकों की नियुक्ति का तरीका भिन्न है. याची संविदा पर नियुक्त किए गए हैं. इस स्थिति में अदालत यह तय नहीं कर सकती कि वह समान कार्य के लिए समान वेतन पाने के हकदार हैं या नहीं. हालांकि कोर्ट ने माना कि शिक्षा मित्रों का मानदेय काफी कम है. जिसे कि मौजूदा वित्तीय ढांचे और आजीविका की आवश्यकता के मद्दे नजर बढ़ाए जाने और सम्मानजनक मानदेय देने की आवश्यकता है.

यह भी पढ़े-सहायक अध्यापक भर्ती: हाईकोर्ट ने बचे हुए 12091 पदों पर काउंसलिंग कराने का दिया आदेश

प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वह शिक्षा मित्रों को सम्मानजनक और आजीविका के लिए आवश्यक मानदेय का भुगतान करें. कोर्ट ने कहा कि मौजूदा समय में शिक्षा मित्रों का मानदेय बहुत कम है. इसलिए सरकार एक उच्च स्तरीय कमेटी गठित कर मानदेय वृद्धि पर निर्णय ले. हालांकि कोर्ट ने शिक्षा मित्रों द्वारा समान कार्य समान वेतन के सिद्धांत पर सहायक अध्यापकों के बराबर वेतन देने की मांग को स्वीकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि इस मुद्दे पर निर्णय किसी विशेषज्ञ समिति द्वारा लिया जाना चाहिए. इसलिए याची राज्य सरकार के सक्षम प्राधिकारी से इस संबंध में संपर्क करें. जो सहानुभूति पूर्वक उनकी मांग पर विचार कर निर्णय ले.जितेंद्र कुमार भारतीय और दर्जनों शिक्षा मित्रों की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने दिया है.

याची गण का पक्ष रख रहे अधिवक्ता सत्येंद्र चंद्र त्रिपाठी और अग्निहोत्री कुमार त्रिपाठी का कहना था, कि राज्य सरकार द्वारा वर्ष 1998 में जारी शासनादेश के तहत प्रदेश के परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा मित्रों की नियुक्ति की गई. नियुक्ति 1 वर्ष की अवधि के लिए संविदा के आधार पर की गई थी, जिसे प्रत्येक वर्ष रिन्यू किया जाता है. तब से वह लगभग 18 सालों से शिक्षामित्र नियमित रूप से नियुक्त सहायक अध्यापकों की तरह ही काम कर रहे हैं. लेकिन, उनको काफी कम मानदेय दिया जाता है. अधिवक्ताओं ने समान कार्य के लिए समान वेतन के सिद्धांत पर शिक्षामित्र को सहायक अध्यापकों के समान वेतन दिए जाने या कम से कम न्यूनतम वेतन मान दिए जाने की मांग की. यह भी कहा गया कि शिक्षामित्र को मिलने वाले मानदेय को पुनरीक्षित किया जाए.

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याचियो की ओर से सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए कई न्यायिक निर्णय का हवाला देकर समान कार्य के लिए समान वेतनमान दिए जाने की मांग की गई. दूसरी ओर से राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि याची समान कार्य के लिए समान वेतन पाने के हकदार नहीं है, क्योंकि वह संविदा पर कार्य कर रहे हैं. कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में निर्विवाद रूप से शिक्षामित्र और सहायक अध्यापकों की नियुक्ति का तरीका भिन्न है. याची संविदा पर नियुक्त किए गए हैं. इस स्थिति में अदालत यह तय नहीं कर सकती कि वह समान कार्य के लिए समान वेतन पाने के हकदार हैं या नहीं. हालांकि कोर्ट ने माना कि शिक्षा मित्रों का मानदेय काफी कम है. जिसे कि मौजूदा वित्तीय ढांचे और आजीविका की आवश्यकता के मद्दे नजर बढ़ाए जाने और सम्मानजनक मानदेय देने की आवश्यकता है.

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