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खंडपीठ बनाने का संसद को भी अधिकार नहीं : अमर नाथ त्रिपाठी - अमर नाथ त्रिपाठी

सेंटर फॉर सोशल एवं कांस्टीटयूशनल रिफॉर्म के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमर नाथ त्रिपाठी ने हाईकोर्ट की खंडपीठ (Bench of High Court) गठन संबंधी केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू (Minister Kiren Rijiju) के बयान को संविधान के विपरीत करार दिया है. त्रिपाठी ने कहा है कि यहां तक कि संसद को भी खंडपीठ बनाने का अधिकार नहीं है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट
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Published : Nov 25, 2021, 10:40 PM IST

प्रयागराज : सेंटर फॉर सोशल एवं कांस्टीटयूशनल रिफॉर्म के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमर नाथ त्रिपाठी ने हाईकोर्ट की खंडपीठ गठन संबंधी केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू के बयान को संविधान के विपरीत करार दिया है. त्रिपाठी ने कहा है कि यहां तक कि संसद को भी खंडपीठ बनाने का अधिकार नहीं है.

त्रिपाठी ने कहा कि संसद राज्य पुनर्गठन कानून के जरिए नये राज्य के लिए हाईकोर्ट बना सकती है. ऐसा अधिकार केवल संसद को है. राज्य विधानसभा या मुख्य न्यायाधीश से परामर्श की आवश्यकता नहीं है. त्रिपाठी ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 130 में सुप्रीम कोर्ट को अन्य स्थानों पर बैठने का उपबंध किया गया है किन्तु अनुच्छेद 214 में ऐसी व्यवस्था नहीं है. साफ तौर पर लिखा है कि प्रत्येक राज्य का एक हाईकोर्ट होगा.

इसे भी पढ़ें - 'क्या आगरा में इलाहाबाद HC की पीठ का होगा गठन', कानून मंत्री के बयान पर वकीलों ने दी ऐसी प्रतिक्रिया

सेंटर फॉर सोशल एवं कांस्टीटयूशनल रिफॉर्म के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि राज्य पुनर्गठन एक्ट 1956 अस्थायी तौर पर छः राज्यों के लिए बनाया गया था. अमल्गमेशन एक्ट 1948 संविधान लागू होने से पहले बना था. संविधान आने के बाद उसका अस्तित्व नहीं रह गया है. इसके जरिए आगरा व अवध प्रान्त का विलय किया गया था. फ़ेडरेशन ऑफ बार एसोसिएशन कर्नाटक केस में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि संसद को राज्य पुनर्गठन का कानून बनाने का ही अधिकार है.

इसे भी पढ़ें - इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ताओं ने केंद्रीय कानून मंत्री का फूंका पुतला, आगरा में बेंच बनाने का किया विरोध

संविधान में हाईकोर्ट की खंडपीठ गठन की व्यवस्था नहीं है. ऐसे में खंडपीठ की मांग और आश्वासन दोनों ही संविधान और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है. राजनेताओं को इससे बचना चाहिए.

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प्रयागराज : सेंटर फॉर सोशल एवं कांस्टीटयूशनल रिफॉर्म के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमर नाथ त्रिपाठी ने हाईकोर्ट की खंडपीठ गठन संबंधी केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू के बयान को संविधान के विपरीत करार दिया है. त्रिपाठी ने कहा है कि यहां तक कि संसद को भी खंडपीठ बनाने का अधिकार नहीं है.

त्रिपाठी ने कहा कि संसद राज्य पुनर्गठन कानून के जरिए नये राज्य के लिए हाईकोर्ट बना सकती है. ऐसा अधिकार केवल संसद को है. राज्य विधानसभा या मुख्य न्यायाधीश से परामर्श की आवश्यकता नहीं है. त्रिपाठी ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 130 में सुप्रीम कोर्ट को अन्य स्थानों पर बैठने का उपबंध किया गया है किन्तु अनुच्छेद 214 में ऐसी व्यवस्था नहीं है. साफ तौर पर लिखा है कि प्रत्येक राज्य का एक हाईकोर्ट होगा.

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सेंटर फॉर सोशल एवं कांस्टीटयूशनल रिफॉर्म के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि राज्य पुनर्गठन एक्ट 1956 अस्थायी तौर पर छः राज्यों के लिए बनाया गया था. अमल्गमेशन एक्ट 1948 संविधान लागू होने से पहले बना था. संविधान आने के बाद उसका अस्तित्व नहीं रह गया है. इसके जरिए आगरा व अवध प्रान्त का विलय किया गया था. फ़ेडरेशन ऑफ बार एसोसिएशन कर्नाटक केस में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि संसद को राज्य पुनर्गठन का कानून बनाने का ही अधिकार है.

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संविधान में हाईकोर्ट की खंडपीठ गठन की व्यवस्था नहीं है. ऐसे में खंडपीठ की मांग और आश्वासन दोनों ही संविधान और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है. राजनेताओं को इससे बचना चाहिए.

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