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अधिक वेतन भुगतान वसूली आदेश रद्द, पक्ष सुन कर नये सिरे से आदेश देने की छूट - अधिक भुगतान की वसूली का आदेश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विभागीय गलती से अधिक भुगतान की वसूली का आदेश रद्द कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि, बिना सुनवाई का मौका दिए वसूली आदेश जारी किया गया था. इसलिए सुनवाई का अवसर देना जरूरी है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट.
इलाहाबाद हाईकोर्ट.
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Published : Aug 27, 2021, 10:35 PM IST

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विभागीय गलती से अधिक भुगतान की वसूली का आदेश रद्द कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि, बिना सुनवाई का मौका दिए वसूली आदेश जारी किया गया था. इसलिए सुनवाई का अवसर देना जरूरी है. यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र ने आजमगढ़ के दिनेश चंद्र त्रिपाठी और भरत सिंह की याचिका पर दिया है.

याची के अधिवक्ता निर्भय कुमार का कहना था कि, वेतन निर्धारण में विभाग की ओर से गलती की गई. इसके बाद अधिक भुगतान की वसूली का आदेश जारी कर दिया गया. ऐसा करने से पूर्व याचीगण का पक्ष नहीं सुना गया. कोर्ट ने इस मामले में प्रदेश सरकार से जवाब मांगा था. दाखिल जबाव में कहा गया कि, यदि याचीगण का पक्ष सुन भी लिया जाए तो इससे वसूली आदेश पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

इसे भी पढ़ें- अपहरण-हत्या मामला: इलाहाबाद हाईकोर्ट से MP पुलिस के सिपाही की जमानत अर्जी खारिज

कोर्ट का कहना था कि सरकार के जवाब से स्पष्ट है कि याचीगण को उनका पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया. इसलिए उनको अपना पक्ष रखने का अवसर देना जरूरी है. कोर्ट ने याचियों को सुनवाई का मौका देकर नये सिरे से आदेश देने की छूट दी है.

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विभागीय गलती से अधिक भुगतान की वसूली का आदेश रद्द कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि, बिना सुनवाई का मौका दिए वसूली आदेश जारी किया गया था. इसलिए सुनवाई का अवसर देना जरूरी है. यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र ने आजमगढ़ के दिनेश चंद्र त्रिपाठी और भरत सिंह की याचिका पर दिया है.

याची के अधिवक्ता निर्भय कुमार का कहना था कि, वेतन निर्धारण में विभाग की ओर से गलती की गई. इसके बाद अधिक भुगतान की वसूली का आदेश जारी कर दिया गया. ऐसा करने से पूर्व याचीगण का पक्ष नहीं सुना गया. कोर्ट ने इस मामले में प्रदेश सरकार से जवाब मांगा था. दाखिल जबाव में कहा गया कि, यदि याचीगण का पक्ष सुन भी लिया जाए तो इससे वसूली आदेश पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

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कोर्ट का कहना था कि सरकार के जवाब से स्पष्ट है कि याचीगण को उनका पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया. इसलिए उनको अपना पक्ष रखने का अवसर देना जरूरी है. कोर्ट ने याचियों को सुनवाई का मौका देकर नये सिरे से आदेश देने की छूट दी है.

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