प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी (एसआरएस) के लिए नियम बनाने में कोई कार्यवाही नहीं करने और इसके लिए तीन माह का समय मांगने पर नाराजगी जताई है. साथ ही अगली सुनवाई पर यह बताने को कहा है कि एसआरएस पर नियम बनाने के लिए क्या किया गया है.
हाईकोर्ट ने कहा कि महिला कॉन्स्टेबल नेहा सिंह की याचिका पर पिछली सुनवाई को दो निर्देश दिए गए थे. उनमें से एक याची द्वारा लिंग परिवर्तन की मांग में दाखिल अर्जी के निस्तारण का था और दूसरा केंद्र सरकार द्वारा पारित अधिनियम और राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ व अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आलोक में राज्य को सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी (एसआरएस) के संदर्भ में नियम बनाने के लिए था. कोर्ट ने कहा कि याची के वकील के अनुसार, उसके मामले में अब तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है. इस पर कोर्ट ने अगली तारीख तक सक्षम प्राधिकारी द्वारा याची के लंबित आवेदन पर उचित निर्णय लेने का निर्देश दिया है.
हाईकोर्ट ने 15 अप्रैल 2014 के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का अनुपालन न करने पर असंतोष व्यक्त करते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने अधिनियम बनाकर तुरंत कार्रवाई की थी. लेकिन, राज्य अब भी मूकदर्शक बना हुआ है और उसने अब तक कोई निर्णय नहीं लिया है. साथ ही जिस तरह तीन माह का अतिरिक्त समय मांगा गया है, उससे पता चलता है कि राज्य फिर से बेहद लापरवाही भरा रवैया अपना रहा है. इस बात का कोई कारण भी नहीं बताया गया कि राज्य सरकार हलफनामा दाखिल करने के लिए तीन महीने का समय क्यों चाहती है. कोर्ट ने कहा कि मामले को पुनः 18 अक्टूबर को शीर्ष पर रखा जाए. उक्त तारीश को याची के मामले में सक्षम प्राधिकारी का निर्णय शपथ पत्र पेश किया जाए. साथ ही कोर्ट को यह भी बताया जाए कि राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के आलोक में राज्य सरकार ने नियम बनाने के लिए क्या किया है.
गौरतलब है कि पिछली सुनवाई पर कोर्ट ने लिंग परिवर्तन कराने को संवैधानिक अधिकार बताते हुए पुलिस महानिदेशक को महिला कॉन्स्टेबल द्वारा लिंग परिवर्तन कराने की मांग के प्रार्थना पत्र को निस्तारित करने का निर्देश दिया है. साथ ही राज्य सरकार को राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ व अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के क्रम में केंद्रीय कानून के अनुरूप अधिनियम बनाने को कहा था.
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