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1200 साल पहले बिहार में हुई थी श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी की स्थापना

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Published : Jan 7, 2021, 6:02 PM IST

ईटीवी भारत अपनी धार्मिक सीरीज में लोगों को अखाड़ों के बारे में जानकारी दे रहा है. इसी क्रम में आज हम आपको श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े के बारे में बताएंगे. सनातन धर्म की रक्षा के लिए अखाड़ों का गठन किया गया. अखाड़ों में शामिल साधु-संतों को शास्त्रों के साथ शस्त्र की भी शिक्षा दी गई. अखाड़े में भंडारे के अंदर साधु-संतों की निगरानी में सात्विक और पौष्टिक भोजन तैयार किया जाता है. अखाड़े के अंदर गोशाला भी बनी हुई है, जहां पर अखाड़े के साधु-संत समय-समय पर जाकर गोसेवा भी करते हैं.

श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े
श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े

प्रयागराज: सनातन धर्म की रक्षा और उसके प्रचार-प्रसार के लिए सदियों पहले अखाड़ों का गठन किया गया था. सनातन धर्म की रक्षा के लिए अखाड़ों में शामिल होने वाले साधु-संतों को शास्त्रों के साथ शस्त्र की भी शिक्षा दी गई. एक-एक करके 13 अखाड़े बन गए हैं. इन सभी अखाड़ों का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म की रक्षा और उसका प्रचार-प्रसार करना ही है. सभी अखाड़े आज भी अपने इसी उद्देश्य के साथ कार्य कर रहे हैं.

बिहार के हजारीबाग जिले में गडकुंडा में सिद्धेश्वर महादेव मंदिर में महानिर्वाणी अखाड़े का गठन हुआ.

805 में हुई थी स्थापना

विक्रम संवत 603 में आवाहन अखाड़े की स्थापना की गयी थी, जिसके 100 साल बाद विक्रम संवत 703 में अटल अखाड़े का गठन हुआ. एक सदी और बीतने के बाद विक्रम संवत 805 में महानिर्वाणी अखाड़े की स्थापना की गयी. महानिर्वाणी अखाड़े की स्थापना आवाहन और अटल अखाड़े से जुड़े 8 संतों ने मिलकर की थी. इस अखाड़े के इष्ट कपिल देव भगवान को माना गया है. बिहार के हजारीबाग जिले में गडकुंडा में सिद्धेश्वर महादेव मंदिर में महानिर्वाणी अखाड़े का गठन हुआ. प्रयागराज में पहुंचने पर इस अखाड़े में आवाहन और अटल अखाड़े के कई साधु संत शामिल हुए. इसके बाद इस अखाड़े का नाम श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा रखा गया. इस दौरान श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े को शक्ति स्वरूप दो भाले दिए गए.

भालों को कराया जाता है स्नान

शक्ति स्वरूप भाले का नाम भैरव प्रकाश और सूर्य प्रकाश है. दोनों ही भाले शक्ति के स्वरूप माने जाते हैं और अखाड़े में इनको मंदिर के अंदर इष्ट देव के पास रखा जाता है. इष्ट देव के साथ ही शक्ति स्वरूप दोनों भालों की भी पूजा की जाती है. कुम्भ मेले के दौरान शाही स्नान की यात्रा में सबसे आगे अखाड़े के दो संत इन शक्ति स्वरूप भालों को लेकर चलते हैं. सबसे पहले भालों को स्नान कराने की भी परंपरा है.

विक्रम संवत 805 में महानिर्वाणी अखाड़े की स्थापना की गयी.
विक्रम संवत 805 में महानिर्वाणी अखाड़े की स्थापना की गयी.

प्राकृतिक सामानों का होता है इस्तेमाल

श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े में आज भी भंडारे के अंदर खाना बनाने के लिए प्राकृतिक साधनों का इस्तेमाल किया जाता है. अखाड़े की गोशाला की गायों के गोबर से बने कंडे और लकड़ी के इस्तेमाल से चूल्हे में साधु-संतों के लिए भोजन बनाया जाता है. अखाड़े में भंडारे के अंदर साधु-संतों की निगरानी में सात्विक और पौष्टिक भोजन तैयार किया जाता है. अखाड़े के अंदर गोशाला भी बनी हुई है. जहां पर अखाड़े के साधु संत समय-समय पर जाकर गोसेवा करने का कार्य भी करते हैं. यही नहीं इसके अलावा अखाड़े में औषधीय पौधों के साथ ही फल देने वाले पेड़ भी लगाए गए हैं. साधु-संत ही इन पेड़ पौधों की देखभाल करते हैं.

राजाओं ने भी ली है मदद

अखाड़े के सचिव महन्त यमुना पूरी का कहना है कि जिस वक्त अखाड़े की स्थापना की गयी थी, उस वक्त के हालात आज से भिन्न थे. सनातन धर्म पर हमले हो रहे थे. तब अखाड़ों ने ही सनातन धर्म के साथ हिंदुओं की रक्षा के लिए कई युद्ध लड़े और जीते थे. अखाड़ों की ही देन है कि आज देश में सनातन धर्म के साथ ही हिंदू सुरक्षित बचे हुए हैं. अखाड़ों से समय-समय पर राजाओं ने भी मदद ली और कई युद्ध जीते हैं.

गायों के गोबर से बने कंडे पर पकता है खाना.
गायों के गोबर से बने कंडे पर पकता है खाना.

सदस्य बनने के लिए अलग-अलग नियम

उन्होंने बताया कि हर अखाड़े में सदस्य बनने के लिए योग्यता के नियम कायदे अलग-अलग हैं. श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े में शामिल करने से पहले सभी की पूरी तरह से जांच पड़ताल की जाती है. उसके बाद ही किसी को अखाड़े का सदस्य बनाया जाता है. वहीं अखाड़े में किसी भी पद की जिम्मेदारी संभालने के लिए लोकतांत्रिक तरीके से चयन प्रक्रिया की जाती है. हर पद की जिम्मेदारी संभालने के लिए योग्य पदाधिकारी का चयन किया जाता है.

शस्त्रों का भी किया इस्तेमाल

देश में सदियों पहले अखाड़ों का गठन सनातन धर्म की रक्षा करने के लिए किया गया था. जरूरत पड़ने पर अखाड़ों ने शास्त्र के साथ ही शस्त्रों का भी इस्तेमाल कर सनातन धर्म की रक्षा की है. बदलते परिवेश में आज भी अखाड़े सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार कर विस्तार करने का कार्य कर रहे हैं. आज अखाड़ों की तरफ से देश भर में वेद और शास्त्रों की शिक्षा देकर लोगों को सनातन धर्म से जोड़ने का कार्य किया जा रहा है.

प्रयागराज: सनातन धर्म की रक्षा और उसके प्रचार-प्रसार के लिए सदियों पहले अखाड़ों का गठन किया गया था. सनातन धर्म की रक्षा के लिए अखाड़ों में शामिल होने वाले साधु-संतों को शास्त्रों के साथ शस्त्र की भी शिक्षा दी गई. एक-एक करके 13 अखाड़े बन गए हैं. इन सभी अखाड़ों का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म की रक्षा और उसका प्रचार-प्रसार करना ही है. सभी अखाड़े आज भी अपने इसी उद्देश्य के साथ कार्य कर रहे हैं.

बिहार के हजारीबाग जिले में गडकुंडा में सिद्धेश्वर महादेव मंदिर में महानिर्वाणी अखाड़े का गठन हुआ.

805 में हुई थी स्थापना

विक्रम संवत 603 में आवाहन अखाड़े की स्थापना की गयी थी, जिसके 100 साल बाद विक्रम संवत 703 में अटल अखाड़े का गठन हुआ. एक सदी और बीतने के बाद विक्रम संवत 805 में महानिर्वाणी अखाड़े की स्थापना की गयी. महानिर्वाणी अखाड़े की स्थापना आवाहन और अटल अखाड़े से जुड़े 8 संतों ने मिलकर की थी. इस अखाड़े के इष्ट कपिल देव भगवान को माना गया है. बिहार के हजारीबाग जिले में गडकुंडा में सिद्धेश्वर महादेव मंदिर में महानिर्वाणी अखाड़े का गठन हुआ. प्रयागराज में पहुंचने पर इस अखाड़े में आवाहन और अटल अखाड़े के कई साधु संत शामिल हुए. इसके बाद इस अखाड़े का नाम श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा रखा गया. इस दौरान श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े को शक्ति स्वरूप दो भाले दिए गए.

भालों को कराया जाता है स्नान

शक्ति स्वरूप भाले का नाम भैरव प्रकाश और सूर्य प्रकाश है. दोनों ही भाले शक्ति के स्वरूप माने जाते हैं और अखाड़े में इनको मंदिर के अंदर इष्ट देव के पास रखा जाता है. इष्ट देव के साथ ही शक्ति स्वरूप दोनों भालों की भी पूजा की जाती है. कुम्भ मेले के दौरान शाही स्नान की यात्रा में सबसे आगे अखाड़े के दो संत इन शक्ति स्वरूप भालों को लेकर चलते हैं. सबसे पहले भालों को स्नान कराने की भी परंपरा है.

विक्रम संवत 805 में महानिर्वाणी अखाड़े की स्थापना की गयी.
विक्रम संवत 805 में महानिर्वाणी अखाड़े की स्थापना की गयी.

प्राकृतिक सामानों का होता है इस्तेमाल

श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े में आज भी भंडारे के अंदर खाना बनाने के लिए प्राकृतिक साधनों का इस्तेमाल किया जाता है. अखाड़े की गोशाला की गायों के गोबर से बने कंडे और लकड़ी के इस्तेमाल से चूल्हे में साधु-संतों के लिए भोजन बनाया जाता है. अखाड़े में भंडारे के अंदर साधु-संतों की निगरानी में सात्विक और पौष्टिक भोजन तैयार किया जाता है. अखाड़े के अंदर गोशाला भी बनी हुई है. जहां पर अखाड़े के साधु संत समय-समय पर जाकर गोसेवा करने का कार्य भी करते हैं. यही नहीं इसके अलावा अखाड़े में औषधीय पौधों के साथ ही फल देने वाले पेड़ भी लगाए गए हैं. साधु-संत ही इन पेड़ पौधों की देखभाल करते हैं.

राजाओं ने भी ली है मदद

अखाड़े के सचिव महन्त यमुना पूरी का कहना है कि जिस वक्त अखाड़े की स्थापना की गयी थी, उस वक्त के हालात आज से भिन्न थे. सनातन धर्म पर हमले हो रहे थे. तब अखाड़ों ने ही सनातन धर्म के साथ हिंदुओं की रक्षा के लिए कई युद्ध लड़े और जीते थे. अखाड़ों की ही देन है कि आज देश में सनातन धर्म के साथ ही हिंदू सुरक्षित बचे हुए हैं. अखाड़ों से समय-समय पर राजाओं ने भी मदद ली और कई युद्ध जीते हैं.

गायों के गोबर से बने कंडे पर पकता है खाना.
गायों के गोबर से बने कंडे पर पकता है खाना.

सदस्य बनने के लिए अलग-अलग नियम

उन्होंने बताया कि हर अखाड़े में सदस्य बनने के लिए योग्यता के नियम कायदे अलग-अलग हैं. श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े में शामिल करने से पहले सभी की पूरी तरह से जांच पड़ताल की जाती है. उसके बाद ही किसी को अखाड़े का सदस्य बनाया जाता है. वहीं अखाड़े में किसी भी पद की जिम्मेदारी संभालने के लिए लोकतांत्रिक तरीके से चयन प्रक्रिया की जाती है. हर पद की जिम्मेदारी संभालने के लिए योग्य पदाधिकारी का चयन किया जाता है.

शस्त्रों का भी किया इस्तेमाल

देश में सदियों पहले अखाड़ों का गठन सनातन धर्म की रक्षा करने के लिए किया गया था. जरूरत पड़ने पर अखाड़ों ने शास्त्र के साथ ही शस्त्रों का भी इस्तेमाल कर सनातन धर्म की रक्षा की है. बदलते परिवेश में आज भी अखाड़े सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार कर विस्तार करने का कार्य कर रहे हैं. आज अखाड़ों की तरफ से देश भर में वेद और शास्त्रों की शिक्षा देकर लोगों को सनातन धर्म से जोड़ने का कार्य किया जा रहा है.

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