प्रतापगढ़ः जिले के विश्वनाथगंज बाजार से लगभग 2 किलोमीटर दूर कुशफरा के जंगल में भगवान शनि का प्राचीन और पौराणिक मंदिर है. कहते हैं कि यह ऐसा स्थान है, जहां आते ही भक्त भगवान शनि की कृपा का पात्र बन जाता है. चमत्कारों से भरा हुआ यह स्थान लोगों को सहसा ही अपनी ओर खींच लेता है. अवध क्षेत्र के एक मात्र पौराणिक शनि धाम होने के कारण प्रतापगढ़ (बेल्हा) के साथ-साथ कई जिलों के भक्त दर्शन को आते हैं.
56 प्रकार का लगता है भोग
प्रत्येक शनिवार को भगवान को 56 प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है. शनि धाम एक श्री यन्त्र की तरह है. दक्षिण की तरफ प्रयाग, उत्तर की तरफ अयोध्या, पूर्व में काशी और पश्चिम में तीर्थ गंगा है. इससे इस शनिधाम की मान्यता और भी बढ़ जाती है. इस मन्दिर के संदर्भ में अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्य प्राप्त होते हैं जो इसके चमत्कारों की गाथा और इसके प्रति लोगों की अगाध श्रद्धा को दर्शाते हैं.
मंदिर के विषय में अनेक मान्यताएं प्रचलित
एक मान्यता अनुसार कहा जाता है कि शनि भगवान की प्रतिमा स्वयंभू है जो कि कुशफरा के जंगल में एक ऊंचे टीले पर गड़ा पाया गया था. मंदिर के महंत स्वामी परमा महाराज ने शनि कि प्रतिमा खोज कर मंदिर का निर्माण कराया. बकुलाही नदी के किनारे ऊंचे टीले पर विराजे शनिदेव के दर्शन के लिए प्रत्येक शनिवार श्रद्धालु पहुंचते हैं. हर शनिवार को मंदिर प्रांगण में भव्य मेला का आयोजन होता है. शनिवार के हर मेले में भारी संख्या में भक्त दर्जन पूजन करते हैं.
दर्शनार्थी अंकुश सिंह का मानना है, यहां पर जो भी लोग आते हैं. बाबा शनि देव भगवान की इतनी महिमा है कि जो मनोकामना मांगते हैं. बाबा उनकी मनोकामना को पूर्ण करते हैं. साथ ही जो एक बार दर्शन करने बाबा के दरबार में आता है. वह बार-बार बाबा शनि देव भगवान की महिमा से खिंचा चला आता है.
बकुलाही नदी के किनारे पर मंदिर स्थित है. जोकि रामायण में इसका जिक्र बालकनी नाम से जाना जाता है. अब बकुलाही के नाम से जाना जाता है जो मछलियां बकुलाही नदी में है. मंदिर परिसर के द्वारा मछलियों को चारा डाला जाता है और किसी को भी मछलियां पकड़ने की अनुमति नहीं है.