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...जहां मुस्लिम बहन हिंदू भाई की कलाई पर बांधती हैं राखी

यूपी के मुजफ्फरनगर जिले के दो परिवारों ने धर्म-सम्प्रदायों से उठकर मानवता की मिशाल पेश की है. जिले के एक हिन्दू परिवार का युवक पिछले 10 वर्षों से मुस्लिम बहनों के साथ रक्षाबंधन का पर्व मनाता आ रहा है. इन हिन्दु-मुस्लिम परिवारों ने प्रेम और स्नेह की एक अलग मिशाल पेश की है.

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मुस्लिम बहनों के साथ रितांशु ने मनाया रक्षाबंधन का पर्व.
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Published : Aug 3, 2020, 10:42 PM IST

मुजफ्फरनगर: भारत की संस्कृति इतनी व्यापक है कि तमाम धार्मिक बेड़ियों के बाद भी इसकी छाप हमारे आस-पास देखने को मिल ही जाती है. निश्चित रूप से मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है, इसकी मिशाल पेश की जिले के दो हिन्दु-मुस्लिम परिवारों ने. इन परिवारों ने धर्म-सम्प्रदाय से उठकर मानवता की मिशाल पेश की है. निजी स्वार्थों के लिए धर्म की खाईं बनाने वालों को लोगों को ये परिवार उदाहरण पेश कर उसे पाटने का काम कर रहे हैं. जिले के कस्बा पुरकाजी में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला, जहां एक हिन्दू युवक पिछले करीब 10 वर्षों से मुस्लिम बहनों के साथ रक्षाबंधन का पर्व मनाता आ रहा है.

मुस्लिम बहनों के साथ रितांशु ने मनाया रक्षाबंधन.

मुजफ्फरनगर जनपद के पुरकाजी के मोहल्ला झोझगान निवासी आयशा पुत्री वसीम ने बताया कि वह पिछले 10 साल से फलौदा निवासी रितांशु त्यागी को रक्षाबंधन पर परंपरागत रूप से राखी बांधती आ रही हैं. उन्होंने बताया कि रितांशु को वह अपना भाई मानती हैं. रितांशु भी प्रतिवर्ष रक्षाबंधन के त्यौहार पर राखी बधंवाने के लिए जरूर आता है. वहीं रितांशु त्यागी ने बताया कि वह रक्षाबंधन के दिन कहीं पर भी हो, लेकिन अपनी इन बहनों से राखी बंधवाना नहीं भूलता है.

कैसे शुरू हुआ राखी बंधवाने का सिलसिला ?
रितांशु की मां इन्द्रेश त्यागी ने बताया कि मेरे पुत्र रितांशु और मोहित ने पुरकाजी में वसीम की बेटियों को अपनी बहन माना है. वे प्रत्येक रक्षाबंधन के त्यौहार को वसीम के घर जाकर राखी बंधवाते हैं. दोनों परिवार मिलकर रक्षाबंधन का त्यौकार मनाते हैं.

आयशा के पिता वसीम अहमद ने बताया कि मेरी चार बेटियां हैं और बेटा नहीं है. मेरी दोस्ती फलोदा निवासी बबलू त्यागी से है और हम लोग एक दूसरे परिवार को अपना मानते हैं. बबलू त्यागी के दोनों पुत्र रितांशु त्यागी और मोहित त्यागी प्रत्येक वर्ष घर आते हैं. रक्षाबंधन और भैया दूज के त्योहार को साथ में ही मनाते हैं. हम दोनों परिवार के लोग सभी त्योहार को परंपरागत तरीके से मनाते हैं. जहां एक और लोग जाति धर्म की बात करते हैं, तो दूसरी ओर ये दोनों परिवार सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल कायम कर रहे हैं.

मुजफ्फरनगर: भारत की संस्कृति इतनी व्यापक है कि तमाम धार्मिक बेड़ियों के बाद भी इसकी छाप हमारे आस-पास देखने को मिल ही जाती है. निश्चित रूप से मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है, इसकी मिशाल पेश की जिले के दो हिन्दु-मुस्लिम परिवारों ने. इन परिवारों ने धर्म-सम्प्रदाय से उठकर मानवता की मिशाल पेश की है. निजी स्वार्थों के लिए धर्म की खाईं बनाने वालों को लोगों को ये परिवार उदाहरण पेश कर उसे पाटने का काम कर रहे हैं. जिले के कस्बा पुरकाजी में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला, जहां एक हिन्दू युवक पिछले करीब 10 वर्षों से मुस्लिम बहनों के साथ रक्षाबंधन का पर्व मनाता आ रहा है.

मुस्लिम बहनों के साथ रितांशु ने मनाया रक्षाबंधन.

मुजफ्फरनगर जनपद के पुरकाजी के मोहल्ला झोझगान निवासी आयशा पुत्री वसीम ने बताया कि वह पिछले 10 साल से फलौदा निवासी रितांशु त्यागी को रक्षाबंधन पर परंपरागत रूप से राखी बांधती आ रही हैं. उन्होंने बताया कि रितांशु को वह अपना भाई मानती हैं. रितांशु भी प्रतिवर्ष रक्षाबंधन के त्यौहार पर राखी बधंवाने के लिए जरूर आता है. वहीं रितांशु त्यागी ने बताया कि वह रक्षाबंधन के दिन कहीं पर भी हो, लेकिन अपनी इन बहनों से राखी बंधवाना नहीं भूलता है.

कैसे शुरू हुआ राखी बंधवाने का सिलसिला ?
रितांशु की मां इन्द्रेश त्यागी ने बताया कि मेरे पुत्र रितांशु और मोहित ने पुरकाजी में वसीम की बेटियों को अपनी बहन माना है. वे प्रत्येक रक्षाबंधन के त्यौहार को वसीम के घर जाकर राखी बंधवाते हैं. दोनों परिवार मिलकर रक्षाबंधन का त्यौकार मनाते हैं.

आयशा के पिता वसीम अहमद ने बताया कि मेरी चार बेटियां हैं और बेटा नहीं है. मेरी दोस्ती फलोदा निवासी बबलू त्यागी से है और हम लोग एक दूसरे परिवार को अपना मानते हैं. बबलू त्यागी के दोनों पुत्र रितांशु त्यागी और मोहित त्यागी प्रत्येक वर्ष घर आते हैं. रक्षाबंधन और भैया दूज के त्योहार को साथ में ही मनाते हैं. हम दोनों परिवार के लोग सभी त्योहार को परंपरागत तरीके से मनाते हैं. जहां एक और लोग जाति धर्म की बात करते हैं, तो दूसरी ओर ये दोनों परिवार सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल कायम कर रहे हैं.

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