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चंदौली: कहीं कोरोना काल में सेहत पर भारी न पड़ जाए केमिकल से पके आम - carbide ripen mangoes

मार्केट में इस समय फलों के राजा आम का लगा हुआ ढ़ेर देख सभी का मन ललचा जाता है. आपको पता है, कि ये आम पेड़ से चलकर आपकी थाली तक की लंबी यात्रा के बावजूद आखिर इतने नज़र फरेब कैसे बने रहते हैं? बता दें कि ये मुमकिन होता है बेचने वालों की कीमियागरी से, और इसके लिए इस्तेमाल होता है एक खास रसायन, जिसका नाम है कैल्शियम कार्बाइट. ये लोगों के स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक भी है.

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कैल्शियम कार्बाइट लोगों के स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है.
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Published : Jun 18, 2020, 4:07 PM IST

चन्दौली: कोरोना काल में जहां चारों तरफ डॉक्टर इम्यूनिटी पॉवर बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं, तो वहीं कार्बाइट से पकाये हुए आम मार्केट में धड़ल्ले से बिक रहे हैं. इसका सीधा असर इंसान के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है. आम को फलों का राजा माना जाता है और इस समय आमों के बिक्री अपने अधिकतम उठान पर है. लेकिन सच्चाई यह है कि बाजार में बिकने वाले आम लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं. क्योंकि मार्केट में उपलब्ध आम नेचुरली पके हुए न होकर का कार्बाइट से पके हैं.

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कैल्शियम कार्बाइट लोगों के स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है.

क्या होता है कार्बाइट
कार्बाइट का पूरा केमिकल नाम कैल्शियम कार्बाइट होता है. इसका उपयोग इंडस्ट्रीयल वेस्ट हार्वेस्ट मैनेजमेंट में किया जाता है. वहीं फल व्यापारी इसका उपयोग आम समेत कई फलों को पकाने में कर रहे हैं. यह कच्चे आम में एथिलीन की मात्रा को पूरा कर उसे अप्राकृतिक तरीके से पकाता है. 10 किलो आम को पकाने के लिए मात्र 25 ग्राम कार्बाइट काफी है, जो उसे पांच दिनों में पका देगा.

कैल्शियम कार्बाइट लोगों के स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है.


ऐसे पकाया जाता है आम
कार्बाइट से आमों को पकाने के लिए पेपर की मोटी परत के ऊपर कच्चे आमों को कैरेट में रखकर आमों के बीच-बीच में दो से तीन जगह कार्बाइट का टुकड़ा रखा जाता है. कार्बाइट को पूरी तरह कागज में लपेटकर रखा जाता है, नहीं तो सीधे इसके संपर्क में आने से इसकी गर्मी के चलते आम सड़ जाएगा. इस तरीके से 4-5 दिनों में यह कच्चा आम पूरी तरह पक जाएगा.

सेहत के लिए नुकसानदायक
कृषि वैज्ञानिक डॉ. दिनेश यादव का कहना है कि कैल्शियम कार्बाइड से पके आमों को खाने के बाद काफी ज्यादा प्यास लगती है, क्योंकि कार्बाइट दिमाग की इंद्री हाईपोथेलम्स पर सीधा प्रभाव डालता है. इससे हार्मोन्स का श्रावण बढ़ जाता है और शरीर में पानी की अत्यधिक मात्रा की आवश्यकता महसूस होती है. इसके अलावा मिचली आना, सांस लेने में तकलीफ, सीने में जलन होने समेत कई तरह की परेशानियां हो सकती हैं. कार्बाइड से पके फलों को अधिक दिनों तक सेवन से पाचन तंत्र में गड़बड़ी के साथ-साथ लिवर, किडनी की बीमारियों के अलावा कैंसर जैसी घातक बीमारी भी हो सकती है.

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कैल्शियम कार्बाइट लोगों के स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है.
स्वाद में होता है अंतर
पेड़ के तरीके से पके आमों और कार्बाइट से पके आमों के स्वाद में भी अंतर होता है. पेड़ के पके आम में खास किस्म की मिठास होती है, जबकि कार्बाइट से पके आम स्वादहीन के साथ कहीं खट्टा तो कहीं मीठा होता है.
आम की बिक्री पर लॉकडाउन का असर
गर्मी में शायद ही ऐसा कोई परिवार हो जहां आम की खपत न हो. 20 लाख की आबादी वाला चन्दौली आम का बड़ा बाजार है. जहां बिहार के तटवर्ती जिलों भभुआ, सासाराम, डेहरी से लंगड़ा, दशहरी, तोता परी समेत आमों की तमाम वेरायटी आती है. इसके अलावा रायबरेली, ऊंचाहार, प्रतापगढ़ समेत अन्य जिलों से आम की आपूर्ति की जाती है. आम व्यापारी अशोक सोनकर का कहना है कि अकेले मुगलसराय में हर महीने 5 करोड़ का व्यापार होता है. वहीं सीजन में इसकी मांग पांच छह गुना बढ़ जाती है, लेकिन लॉकडाउन के चलते पिछले दो सालों की तुलना में बिक्री कम हुई है. 2018 और 2019 की बात करें तो दोनों साल आम का व्यापार 10 करोड़ के पार था.


कार्बाइट से पके आमों की है भरमार
आम के थोक व्यापारी अशोक सोनकर ने बताया कि मार्केट में मिलने वाले सभी आम कार्बाइट से पके हैं. यह नेचुरल तरीके पके आमों तुलना में अधिक अच्छे दिखते हैं. इसे यदि दो घण्टे तक पानी में डालकर रखें तो कार्बाइट असर बेहद कम हो जाता है.

चन्दौली: कोरोना काल में जहां चारों तरफ डॉक्टर इम्यूनिटी पॉवर बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं, तो वहीं कार्बाइट से पकाये हुए आम मार्केट में धड़ल्ले से बिक रहे हैं. इसका सीधा असर इंसान के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है. आम को फलों का राजा माना जाता है और इस समय आमों के बिक्री अपने अधिकतम उठान पर है. लेकिन सच्चाई यह है कि बाजार में बिकने वाले आम लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं. क्योंकि मार्केट में उपलब्ध आम नेचुरली पके हुए न होकर का कार्बाइट से पके हैं.

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कैल्शियम कार्बाइट लोगों के स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है.

क्या होता है कार्बाइट
कार्बाइट का पूरा केमिकल नाम कैल्शियम कार्बाइट होता है. इसका उपयोग इंडस्ट्रीयल वेस्ट हार्वेस्ट मैनेजमेंट में किया जाता है. वहीं फल व्यापारी इसका उपयोग आम समेत कई फलों को पकाने में कर रहे हैं. यह कच्चे आम में एथिलीन की मात्रा को पूरा कर उसे अप्राकृतिक तरीके से पकाता है. 10 किलो आम को पकाने के लिए मात्र 25 ग्राम कार्बाइट काफी है, जो उसे पांच दिनों में पका देगा.

कैल्शियम कार्बाइट लोगों के स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है.


ऐसे पकाया जाता है आम
कार्बाइट से आमों को पकाने के लिए पेपर की मोटी परत के ऊपर कच्चे आमों को कैरेट में रखकर आमों के बीच-बीच में दो से तीन जगह कार्बाइट का टुकड़ा रखा जाता है. कार्बाइट को पूरी तरह कागज में लपेटकर रखा जाता है, नहीं तो सीधे इसके संपर्क में आने से इसकी गर्मी के चलते आम सड़ जाएगा. इस तरीके से 4-5 दिनों में यह कच्चा आम पूरी तरह पक जाएगा.

सेहत के लिए नुकसानदायक
कृषि वैज्ञानिक डॉ. दिनेश यादव का कहना है कि कैल्शियम कार्बाइड से पके आमों को खाने के बाद काफी ज्यादा प्यास लगती है, क्योंकि कार्बाइट दिमाग की इंद्री हाईपोथेलम्स पर सीधा प्रभाव डालता है. इससे हार्मोन्स का श्रावण बढ़ जाता है और शरीर में पानी की अत्यधिक मात्रा की आवश्यकता महसूस होती है. इसके अलावा मिचली आना, सांस लेने में तकलीफ, सीने में जलन होने समेत कई तरह की परेशानियां हो सकती हैं. कार्बाइड से पके फलों को अधिक दिनों तक सेवन से पाचन तंत्र में गड़बड़ी के साथ-साथ लिवर, किडनी की बीमारियों के अलावा कैंसर जैसी घातक बीमारी भी हो सकती है.

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कैल्शियम कार्बाइट लोगों के स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है.
स्वाद में होता है अंतर
पेड़ के तरीके से पके आमों और कार्बाइट से पके आमों के स्वाद में भी अंतर होता है. पेड़ के पके आम में खास किस्म की मिठास होती है, जबकि कार्बाइट से पके आम स्वादहीन के साथ कहीं खट्टा तो कहीं मीठा होता है.
आम की बिक्री पर लॉकडाउन का असर
गर्मी में शायद ही ऐसा कोई परिवार हो जहां आम की खपत न हो. 20 लाख की आबादी वाला चन्दौली आम का बड़ा बाजार है. जहां बिहार के तटवर्ती जिलों भभुआ, सासाराम, डेहरी से लंगड़ा, दशहरी, तोता परी समेत आमों की तमाम वेरायटी आती है. इसके अलावा रायबरेली, ऊंचाहार, प्रतापगढ़ समेत अन्य जिलों से आम की आपूर्ति की जाती है. आम व्यापारी अशोक सोनकर का कहना है कि अकेले मुगलसराय में हर महीने 5 करोड़ का व्यापार होता है. वहीं सीजन में इसकी मांग पांच छह गुना बढ़ जाती है, लेकिन लॉकडाउन के चलते पिछले दो सालों की तुलना में बिक्री कम हुई है. 2018 और 2019 की बात करें तो दोनों साल आम का व्यापार 10 करोड़ के पार था.


कार्बाइट से पके आमों की है भरमार
आम के थोक व्यापारी अशोक सोनकर ने बताया कि मार्केट में मिलने वाले सभी आम कार्बाइट से पके हैं. यह नेचुरल तरीके पके आमों तुलना में अधिक अच्छे दिखते हैं. इसे यदि दो घण्टे तक पानी में डालकर रखें तो कार्बाइट असर बेहद कम हो जाता है.

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