मुरादाबादः जिले के रहने वाले दिव्यांग सलमान ने वो कर दिखाया, जो बहुतों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन गयी है. उन्होंने दिव्यांगता के बावजूद हार नहीं मानी और खुद की फैक्ट्री खोल आत्मनिर्भर हो गये. इसके साथ ही अपने जैसे सैकड़ों दिव्यांगों को रोजगार भी दिया. जिसके लिए पीएम ने 23 फरवरी, दिन रविवार को जारी मन की बात में इनकी तारीफ भी की. अब उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ भी इन्हें जल्द ही राज्य के सबसे उभरते हुए इंटरप्रेन्योर के खिताब से नवाज सकते हैं.
पहले बात प्रधानमंत्री के तारीफ की
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23 फरवरी 2020 को प्रसारित हुए मन की बात कार्यक्रम में मुरादाबाद के हमीरपुर गांव में रहने वाले दिव्यांग सलमान की कहानी साझा करते हुए कहा था कि मैंने मीडिया में एक ऐसी कहानी पढ़ी, जिसे मैं आपसे जरूर साझा करना चाहता हूं. ये कहानी है मुरादाबाद के हमीरपुर गांव में रहने वाले सलमान की. वे दोनों पैरों से दिव्यांग हैं, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. पीएम ने कहा कि उन्होंने कुछ दिव्यांग साथियों के साथ मिलकर चप्पल और डिटर्जेन्ट का काम शुरू किया. आज वे 30 दिव्यांग साथियों को रोजगार दे रहे हैं. उन्होंने इस साल भी उन्होंने सौ लोगों को रोजगार देने का संकल्प लिया है.
नहीं मिली सरकारी नौकरी तो खोल दी फैक्ट्री
सलमान ने भी आम युवाओं की तरह नौकरी की तलाश की. लेकिन कामयाबी न मिल सकी. इसके बाद उन्होंने खुद नौकरी देने की ठानी और अपनी फैक्ट्री खोल दी. दोनों पैरों से पूरी तरह अक्षम सलमान ने कमजोरी को ही ताकत बना डाला. कुछ करने का जज़्बा ऐसा कि परेशानियों से दो-दो हाथ करने लगे. अब अपने जैसे दूसरे असहाय लोगों के लिए वो सहारा बन गये हैं. उनकी फैक्ट्री में आज करीब 55 दिव्यागों को न केवल रोजगार मिल रहा है. बल्कि उनके भीतर कुछ भी कर गुजरने का वो जज्बा भी भर रहे हैं. सलमान की कोशिश है कि साल की पहली तिमाही तक वे 100 दिव्यांग लोगों को रोज़गार दे सकें.
क्या है दिव्यांग सलमान की कहानी
जिला मुख्यालय से काशीपुर हाईवे पर करीब 22 किमी दूर मौजूद गांव हमीरपुर में रहने वाले सलमान जन्म से ही दोनों पैरों से दिव्यांग हैं. कई साल कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) की परीक्षा उत्तीर्ण करने की कोशिश करते रहे. लेकिन सफलता हाथ नहीं लग सकी. इसके बाद भी सलमान ने अपने हौसलों का पंख फैलाये रखा. साल 2019 के दिसंबर में नौकरी की आस उन्होंने छोड़ दी और खुद काम करने का मन बनाया. इसके साथ ही उन्होंने ठान लिया कि उनकी तरह दिव्यांग लोगों को वो रोजगार देंगे. अपने गांव में ही उन्होंने 5 लाख रुपये लगाकर किराए के मकान में 'टारगेट' नाम की एक कंपनी की शुरुआत की. यहां पर उन्होंने छोटे पैमाने पर चप्पल और डिटर्जेंट बनाने का काम शुरू किया. अब उनके कारखाने में 55 से ज़्यादा दिव्यांग काम करते हैं. जहां दिव्यागों को स्वरोजगार और बिजनेस के गुर भी सिखाए जा रहे हैं.
ये है सलमान की कंपनी की खासियत
सलमान के फैक्ट्री में 20 दिव्यांग एक शिफ्ट में काम करने के लिए आते हैं. दिन भर में ये लोग 150 जोड़ी से ज्यादा चप्पलें तैयार कर देते हैं. इसके साथ ही डिटर्जेंट पाउडर का काम भी होता रहता है. जब माल तैयार हो जाता है, तो उसे बेचने का जिम्मा भी दिव्यांगों की टीम पर ही है. मार्केटिंग के काम में 20 से अधिक दिव्यांग रोजाना 5 हजार रुपये का माल बेच दिया करते हैं. दिव्यांगों की टीम गांवों में डोर-टू डोर जाती है, और चप्पलों व डिटर्जेंट की बिक्री करती है. इस काम में बतौर कमीशन प्रति व्यक्ति 500 रुपये आसानी से बच जाते हैं.
क्या कहते हैं सलमान
सलमान बताते है कि राह इतनी भी आसान नहीं थी. जब नौकरी नहीं मिली, तो हमने अपने जैसों का दर्द समझा. फिर मन में विचार आये कि कुछ अपना किया जाये. इसके बाद कंपनी से 5 लाख रुपए लोन लिए और टारगेट फैक्ट्री की शुरुआत की. सलमान के मुताबिक फैक्ट्री में तैयार चप्पल 100 रुपये में बिकता है. जबकि 10 रुपए में डिटर्जेंट पाउडर की बिक्री होती है. प्रोडक्ट की मार्केंटिंग दिव्यांगों से की करवायी जाती है. काम में थोड़ी परेशानी आती तो है, फिर भी कायदे से सबकुछ हो जाता है.
कई जिलों के दिव्यांग जुड़े हैं हमसे
वे बताते हैं कि मैं दिव्यांगों का दर्द समझता हूं. फैक्ट्री से मुरादाबाद मंडल के अलावा बरेली के भी कुछ दिव्यांग भाई हमसे माल खरीदकर डोर-टू डोर बेच रहे हैैं. हमने दिव्यांगों की एक संस्था के बैनर तले सोशल मीडिया पर अपने काम को शेयर भी किया है. सलमान का कहना है कि अभी काम छोटा है, लेकिन इसे बड़े स्तर पर ले जायेंगे. पूंजी के कम होने की वजह से बैंक लोन के लिए भी आवेदन किया गया है. जैसे ही लोन मिल जायेगा, वैसे ही काम को और भी आगे बढ़ाया जायेगा. काम में मिल रही सफलता की क्रेडिट सलमान पीएम मोदी को देना नहीं भूलते. वे कहते हैं कि पीएम की प्रशंसा के बाद ही उनकी बिक्री तेज हुई है.