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नक्सल प्रभावित इलाके में गर्मी शुरू होते ही पानी की समस्या

मिर्जापुर के मड़िहान तहसील के गांवों में पानी की किल्लत होने लगी है. कई गांव टैंकर की पानी पर निर्भर हैं. टैंकर से पानी न मिलने के कारण मड़िहान तहसील से कोसों दूर जाकर पीने का पानी लाना पड़ता है.

मिर्जापुर
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Published : Mar 13, 2021, 5:42 PM IST

मिर्जापुर : गर्मी का मौसम शुरू होते ही जिले की मड़िहान तहसील के अंतर्गत आने वाले गांवों में पानी की किल्लत होने लगी है. यह इलाका नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में गिना जाता है. यहां कई गांव टैंकर की पानी पर निर्भर हैं. टैंकर से पानी न मिलने के कारण मड़िहान तहसील से कोसों दूर जाकर पीने का पानी लाना पड़ता है. कई औरतें पूरे दिन इसी में लगी रहती हैं. यहां तक कि मड़िहान तहसील के पास पानी लेने पर दुकानदार भी मना करते हैं. कमाल है कि 80 के दशक से तहसील में यह हाल है. हर साल जनवरी-फरवरी के बाद पानी की किल्लत शुरू हो जाती है.

ये है हाल
जिले में मड़िहान तहसील में सबसे ज्यादा पानी की समस्या होती है. यहां जनवरी-फरवरी महीने से ही पानी की किल्लत शुरू हो जाती है. इस बार भी जल संकट की शुरुआत हो गई है. इसका कारण भूजल स्तर का गिरना और इलाके में पीने के पानी का बंदोबस्त नहीं होना बताया जा रहा है. इलाके के कई गांव ऐसे हैं जहां मई और जून महीने में तो पीने का पानी पूरी तरह से खत्म हो जाता है. ईटीवी भारत की टीम ने देवरी कला गांव के लोगों से बात की तो उन्होंने बताया कि गर्मी शुरू होते ही आसपास के क्षेत्रों में पेयजल की किल्लत होने लगती है. सप्लाई का पानी कभी-कभी आ जाता है तो काम चल जाता है. वह भी पर्याप्त नहीं रहता है. कोसों दूर पानी के लिए भटकना पड़ता है. कई लोगों का तो कहना था कि चार पीढ़ियों से पानी की समस्या देख रहे हैं.

इसे भी पढ़ेंः अधिकारी पी रहे बोतलबंद पानी, आंगनबाड़ी के बच्चों को सादा भी नसीब नहीं

बोरिंग से भी नहीं मिला पानी
पानी की समस्या से निजात पाने के लिए मजदूर अब्दुल कलाम ने पत्थर तोड़कर कमाए हुए पैसे से बोरिंग कराने के लिए मन बना लिया. कुछ पैसे मालिक से कर्ज लेकर 500 फिट गहरी बोरिंग कराई. इसमें करीब एक लाख पांच हजार रुपये खर्च हुए पर पानी नहीं मिला. कर्ज में डूबे अब्दुल कलाम ने बताया कि 65 सालों से हम यहां पर आ रहे हैं. हमारी चार पीढ़ियां गुजर चुकी हैं मगर अभी तक यहां पर पानी की व्यवस्था नहीं हो पाई है. किसी तरह ठेले से तहसील के पास से या अन्य गांव में जाकर पीने के पानी की व्यवस्था की जाती है. पशुओं के लिए तो 500 रुपए प्रति टैंकर के हिसाब से पानी मंगा रहा हूं. यही हाल आसपास पटेहरा कला, राजगढ़ ,पहाड़ी ब्लाक, हलिया लालगंज में है.

महिलाओं का जीना मुहाल
पेयजल की समस्या का सबसे ज्यादा असर महिलाओं के जीवन पर पड़ा है. ज्यादातर जगह पानी लाने का काम महिलाएं करती हैं. महिलाएं पूरा दिन पानी लाने में अपना समय लगा देती हैं, तब कहीं जाकर बच्चों और परिवार के लिए इंतजाम कर पाती हैं.

अधिकारी और मंत्री भी नहीं करा पाए समाधान
हरिराम बताते हैं कि बोरिंग कराई है पर पर्याप्त पानी नहीं है. जनप्रतिनिधि कहते हैं की महाबोर हो जाएगा तो पानी की समस्या दूर हो जाएगी मगर अब तक कोई समस्या का निजात नहीं मिल पाया है. कई बार अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों तक अपनी समस्या बताई है मगर समस्या का हल आज तक नहीं हो पाया है.

मिर्जापुर : गर्मी का मौसम शुरू होते ही जिले की मड़िहान तहसील के अंतर्गत आने वाले गांवों में पानी की किल्लत होने लगी है. यह इलाका नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में गिना जाता है. यहां कई गांव टैंकर की पानी पर निर्भर हैं. टैंकर से पानी न मिलने के कारण मड़िहान तहसील से कोसों दूर जाकर पीने का पानी लाना पड़ता है. कई औरतें पूरे दिन इसी में लगी रहती हैं. यहां तक कि मड़िहान तहसील के पास पानी लेने पर दुकानदार भी मना करते हैं. कमाल है कि 80 के दशक से तहसील में यह हाल है. हर साल जनवरी-फरवरी के बाद पानी की किल्लत शुरू हो जाती है.

ये है हाल
जिले में मड़िहान तहसील में सबसे ज्यादा पानी की समस्या होती है. यहां जनवरी-फरवरी महीने से ही पानी की किल्लत शुरू हो जाती है. इस बार भी जल संकट की शुरुआत हो गई है. इसका कारण भूजल स्तर का गिरना और इलाके में पीने के पानी का बंदोबस्त नहीं होना बताया जा रहा है. इलाके के कई गांव ऐसे हैं जहां मई और जून महीने में तो पीने का पानी पूरी तरह से खत्म हो जाता है. ईटीवी भारत की टीम ने देवरी कला गांव के लोगों से बात की तो उन्होंने बताया कि गर्मी शुरू होते ही आसपास के क्षेत्रों में पेयजल की किल्लत होने लगती है. सप्लाई का पानी कभी-कभी आ जाता है तो काम चल जाता है. वह भी पर्याप्त नहीं रहता है. कोसों दूर पानी के लिए भटकना पड़ता है. कई लोगों का तो कहना था कि चार पीढ़ियों से पानी की समस्या देख रहे हैं.

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बोरिंग से भी नहीं मिला पानी
पानी की समस्या से निजात पाने के लिए मजदूर अब्दुल कलाम ने पत्थर तोड़कर कमाए हुए पैसे से बोरिंग कराने के लिए मन बना लिया. कुछ पैसे मालिक से कर्ज लेकर 500 फिट गहरी बोरिंग कराई. इसमें करीब एक लाख पांच हजार रुपये खर्च हुए पर पानी नहीं मिला. कर्ज में डूबे अब्दुल कलाम ने बताया कि 65 सालों से हम यहां पर आ रहे हैं. हमारी चार पीढ़ियां गुजर चुकी हैं मगर अभी तक यहां पर पानी की व्यवस्था नहीं हो पाई है. किसी तरह ठेले से तहसील के पास से या अन्य गांव में जाकर पीने के पानी की व्यवस्था की जाती है. पशुओं के लिए तो 500 रुपए प्रति टैंकर के हिसाब से पानी मंगा रहा हूं. यही हाल आसपास पटेहरा कला, राजगढ़ ,पहाड़ी ब्लाक, हलिया लालगंज में है.

महिलाओं का जीना मुहाल
पेयजल की समस्या का सबसे ज्यादा असर महिलाओं के जीवन पर पड़ा है. ज्यादातर जगह पानी लाने का काम महिलाएं करती हैं. महिलाएं पूरा दिन पानी लाने में अपना समय लगा देती हैं, तब कहीं जाकर बच्चों और परिवार के लिए इंतजाम कर पाती हैं.

अधिकारी और मंत्री भी नहीं करा पाए समाधान
हरिराम बताते हैं कि बोरिंग कराई है पर पर्याप्त पानी नहीं है. जनप्रतिनिधि कहते हैं की महाबोर हो जाएगा तो पानी की समस्या दूर हो जाएगी मगर अब तक कोई समस्या का निजात नहीं मिल पाया है. कई बार अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों तक अपनी समस्या बताई है मगर समस्या का हल आज तक नहीं हो पाया है.

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