मिर्जापुरः देश के 51 शक्तिपीठों में से एक है विंध्याचल धाम. विंध्य पर्वत श्रृंखला के मध्य पतित पावनी गंगा के कंठ पर विराजमान मां विंध्यवासिनी देवी मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केन्द्र है. कहा जाता है कि जो मनुष्य इस स्थल पर तप करता है, उसकी सिद्धि बेकार नहीं जाती.
मां का आशीर्वाद प्राप्त कर भक्त होते हैं धन्य
ऐसी मान्यता है कि विंध्याचल जैसा पवित्र स्थान इस ब्रह्मांड में नहीं है. नवरात्रि के दिनों में मां धरती के निकट आ जाती हैं और अपने भक्तों को सुख-शांति प्रदान करती हैं. जो लोग मां के दर्शन नहीं कर पाते वे मंदिर का पताका दर्शन कर खुद को धन्य मानते हैं और मां का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
लाखों की संख्या में भक्तों की भीड़
नवरात्रि के दिनों में मां के दर्शन के लिए लाखों की संख्या में भक्तों की भीड़ होती है. विंध्यधाम में त्रिकोण यात्रा का विशेष महत्व है. जिसमें लघु और वृहद त्रिकोण यात्रा की जाती है. यहां 3 किलोमीटर के दायरे में तीन प्रमुख देवियां विराजमान हैं. लघु त्रिकोण यात्रा में एक मंदिर परिसर में मां के 3 रूपों के दर्शन होते हैं. तीनों देवियों के त्रिकोण के केंद्र में भगवान शिव विराजमान हैं, जो विंध्य पर्वत को शिव शक्ति बनाकर भक्तों का कल्याण करते हैं.
तीन अलग-अलग रूपों में दर्शन का सौभाग्य
वृहद त्रिकोण यात्रा में तीन अलग-अलग रूपों में मां विंध्यवासिनी, मां महाकाली और मां अष्टभुजी के दर्शनों का सौभाग्य भक्तों को मिलता है. त्रिकोण यात्रा में मां महाकाली के दर्शनों के बाद अगला पड़ाव आता है मां अष्टभुजी का. जहां आठ भुजाओं वाले रूपों में मां अपने भक्तों का कल्याण करती हैं. मां विंध्यवासिनी के निकट ही कालीखोह पहाड़ी पर महाकाली तथा अष्टभुजा पहाड़ी पर अष्टभुजी देवी विराजमान हैं. ऐसा माना जाता है कि तीनों देवियों के दर्शन के बिना विंध्याचल की यात्रा अधूरी है.