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तीनों देवियों के दर्शन के बिना अधूरी है विंध्यवासिनी धाम की यात्रा

मिर्जापुर में मां विंध्यवासिनी का अद्भुत जागृत शक्तिपीठ है. पुराणों में कहा गया है कि ऐसा स्थान पूरे विश्व में नहीं है. यहां विंध्यवासिनी देवी त्रिकोण रूप में विराजमान हैं और भक्तों को 3 रूपों के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता है.

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Published : Oct 1, 2019, 1:45 PM IST

Updated : Sep 10, 2020, 12:19 PM IST

तीनों देवियों के दर्शन.

मिर्जापुरः देश के 51 शक्तिपीठों में से एक है विंध्याचल धाम. विंध्य पर्वत श्रृंखला के मध्य पतित पावनी गंगा के कंठ पर विराजमान मां विंध्यवासिनी देवी मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केन्द्र है. कहा जाता है कि जो मनुष्य इस स्थल पर तप करता है, उसकी सिद्धि बेकार नहीं जाती.

विंध्यवासिनी धाम मिर्जापुर.

मां का आशीर्वाद प्राप्त कर भक्त होते हैं धन्य

ऐसी मान्यता है कि विंध्याचल जैसा पवित्र स्थान इस ब्रह्मांड में नहीं है. नवरात्रि के दिनों में मां धरती के निकट आ जाती हैं और अपने भक्तों को सुख-शांति प्रदान करती हैं. जो लोग मां के दर्शन नहीं कर पाते वे मंदिर का पताका दर्शन कर खुद को धन्य मानते हैं और मां का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

लाखों की संख्या में भक्तों की भीड़

नवरात्रि के दिनों में मां के दर्शन के लिए लाखों की संख्या में भक्तों की भीड़ होती है. विंध्यधाम में त्रिकोण यात्रा का विशेष महत्व है. जिसमें लघु और वृहद त्रिकोण यात्रा की जाती है. यहां 3 किलोमीटर के दायरे में तीन प्रमुख देवियां विराजमान हैं. लघु त्रिकोण यात्रा में एक मंदिर परिसर में मां के 3 रूपों के दर्शन होते हैं. तीनों देवियों के त्रिकोण के केंद्र में भगवान शिव विराजमान हैं, जो विंध्य पर्वत को शिव शक्ति बनाकर भक्तों का कल्याण करते हैं.

तीन अलग-अलग रूपों में दर्शन का सौभाग्य

वृहद त्रिकोण यात्रा में तीन अलग-अलग रूपों में मां विंध्यवासिनी, मां महाकाली और मां अष्टभुजी के दर्शनों का सौभाग्य भक्तों को मिलता है. त्रिकोण यात्रा में मां महाकाली के दर्शनों के बाद अगला पड़ाव आता है मां अष्टभुजी का. जहां आठ भुजाओं वाले रूपों में मां अपने भक्तों का कल्याण करती हैं. मां विंध्यवासिनी के निकट ही कालीखोह पहाड़ी पर महाकाली तथा अष्टभुजा पहाड़ी पर अष्टभुजी देवी विराजमान हैं. ऐसा माना जाता है कि तीनों देवियों के दर्शन के बिना विंध्याचल की यात्रा अधूरी है.

मिर्जापुरः देश के 51 शक्तिपीठों में से एक है विंध्याचल धाम. विंध्य पर्वत श्रृंखला के मध्य पतित पावनी गंगा के कंठ पर विराजमान मां विंध्यवासिनी देवी मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केन्द्र है. कहा जाता है कि जो मनुष्य इस स्थल पर तप करता है, उसकी सिद्धि बेकार नहीं जाती.

विंध्यवासिनी धाम मिर्जापुर.

मां का आशीर्वाद प्राप्त कर भक्त होते हैं धन्य

ऐसी मान्यता है कि विंध्याचल जैसा पवित्र स्थान इस ब्रह्मांड में नहीं है. नवरात्रि के दिनों में मां धरती के निकट आ जाती हैं और अपने भक्तों को सुख-शांति प्रदान करती हैं. जो लोग मां के दर्शन नहीं कर पाते वे मंदिर का पताका दर्शन कर खुद को धन्य मानते हैं और मां का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

लाखों की संख्या में भक्तों की भीड़

नवरात्रि के दिनों में मां के दर्शन के लिए लाखों की संख्या में भक्तों की भीड़ होती है. विंध्यधाम में त्रिकोण यात्रा का विशेष महत्व है. जिसमें लघु और वृहद त्रिकोण यात्रा की जाती है. यहां 3 किलोमीटर के दायरे में तीन प्रमुख देवियां विराजमान हैं. लघु त्रिकोण यात्रा में एक मंदिर परिसर में मां के 3 रूपों के दर्शन होते हैं. तीनों देवियों के त्रिकोण के केंद्र में भगवान शिव विराजमान हैं, जो विंध्य पर्वत को शिव शक्ति बनाकर भक्तों का कल्याण करते हैं.

तीन अलग-अलग रूपों में दर्शन का सौभाग्य

वृहद त्रिकोण यात्रा में तीन अलग-अलग रूपों में मां विंध्यवासिनी, मां महाकाली और मां अष्टभुजी के दर्शनों का सौभाग्य भक्तों को मिलता है. त्रिकोण यात्रा में मां महाकाली के दर्शनों के बाद अगला पड़ाव आता है मां अष्टभुजी का. जहां आठ भुजाओं वाले रूपों में मां अपने भक्तों का कल्याण करती हैं. मां विंध्यवासिनी के निकट ही कालीखोह पहाड़ी पर महाकाली तथा अष्टभुजा पहाड़ी पर अष्टभुजी देवी विराजमान हैं. ऐसा माना जाता है कि तीनों देवियों के दर्शन के बिना विंध्याचल की यात्रा अधूरी है.

Intro:नोट- सर एक खबर है जिसमे विजुअल बाईट के साथ है इसमें माँ विंध्यवासिनी का विजुअल रैप से लगाना है।इसके अलावा दो एक्सट्रा विजुअल है जो स्वेता जी मांगा था विंध्याचल पर स्टोरी के लिए।

विंध्य पर्वत पर विराजमान आज शक्ति माता विंध्यवासिनी की महिमा अपरम्पार है। इनके गुणों का बखान देवताओं ने भी किया है मिर्जापुर भक्तों के कल्याण के लिए सिद्ध पीठ विंध्याचल में सशरीर विराजित माता विंध्यवासिनी का धाम मणिदीप के नाम से विख्यात है ।मां के धाम में दर्शन पूजन करने से भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी होती है। विंध्य पर्वत की विशाल शृंखला को विंध्याचल में ही पतित पावनी गंगा स्पर्श करती हैं इसी स्थान पर आज शक्ति माता विंध्यवासिनी अपने पूरे शरीर के साथ विराजमान हैं जबकि देश की आन शक्तिपीठों पर सती के शरीर का एक-एक अंग गिरा है देश के तमाम स्थानों पर शक्तिपीठ है तो विंध्याचल सिद्ध पीठ के नाम से जाना जाता है। यहां माता अपने तीनों रूप महालक्ष्मी महाकाली महासरस्वती के रूपो में तीन कोण पर विराजमान होकर दर्शन देती है तीनों देवियों के त्रिकोण के केंद्र में भगवान शिव विराजमान है जो विंध्य पर्वत को शिव शक्ति में बनाकर भक्तों का कल्याण करते हैं।माता के त्रिकोण का दर्शन और परिक्रमा का विशेष महत्व पुराणों में किया गया है देश के कोने कोने से आने वाले भक्त माता रानी के दर पर माथा टेकते हैं। ऋषि मुनियों के लिए सिद्ध पीठ आदिकाल से सिद्धि पाने के लिए तपस्थली रहा है देवासुर संग्राम के दौरान ब्रह्मा विष्णु और महेश ने माता के दरबार में तपस्या कर मांगा था जगत के कल्याण का वरदान। मां विंध्यवासिनी को महालक्ष्मी मां काली को महाकाली अष्ठभुजा को महासरस्वती कहा जाता है।




Body:यूं तो मां विंध्यवासिनी धाम में हर दिन खास होता है लेकिन नवरात्र में इसकी महत्ता बढ़ जाती है मां के गुणगान प्रथम शैलपुत्री द्वितीय ब्रह्मचारिणी तृतीय चंद्रघंटा चतुर्थ कूष्मांडा पंचम स्कंदमाता षष्ठम कात्यानी सप्तम कालरात्रि अष्टम महागौरी नवम सिद्धिदात्री नवदुर्गा के रूप में पूजा जाता है ।यहां पर देश के कोने कोने से और विदेशों से भक्त माह की एक झलक पाने को आते हैं और अपने मन्नत पूरी होने की कामना करते हैं ऐसी मान्यता है कि विंध्याचल जैसा पवित्र स्थान इस ब्रह्मांड में नहीं है नवरात्रि के दिनों में मां धरती के निकट आ जाती है और अपने भक्तों को सुख शांति प्रदान करती हैं धर्म नगरी काशी प्रयाग के मध्य स्थित विंध्याचल धाम आदिकाल से देवी भक्तों के लिए आस्था का केंद्र रहा है विंध्याचल जाने के लिए उत्तर रेलवे के ट्रेनों सड़क व हवाई मार्ग से जाया जाता है मुंबई कोलकाता रेल मार्ग के बीच स्थित विंध्याचल में सभी ट्रेनों का ठहराव नवरात्र में किया जाता है रेलवे स्टेशन रोडवेज बस अड्डा से मंदिर चंद दूरी पर है। हवाई यात्रा करके माता की धाम में पहुंचने के लिए वाराणसी से बाबतपुर हवाई अड्डा पर उतर कर सड़क मार्ग से करीब 65 किलोमीटर दूरी तय करके विंध्याचल पहुंचा जा सकता है सिद्ध पीठ विंध्याचल की महिमा अनंत है विंध्याचल पर्वत की विशाल शृंखला को विंध्याचल में ही पतित पावनी गंगा अस्वस्थ करती हैं माता के धाम में पहुंचे भक्तों गंगा की पावन धारा में स्नान करके माता के धाम में दर्शन पूजन करते हैं गंगा नदी के तौर पर मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने अपने पिता दशरथ पिंडदान करने के बाद भगवान शिव के स्थापना कर विधिवत पूजा अर्चन किया था राम द्वारा स्थापित विशाल शिवलिंग आज रामेश्वर धाम में के रूप में जाना जाता है सदाशिव अपने संपूर्ण गणों के साथ विराजमान बिंदकी महिमा बढ़ा रहे हैं रामेश्वरम महादेव का दर्शन करने से शिव धाम की प्राप्ति होती है सिद्ध पीठ विंध्याचल आदिकाल से ऋषि-मुनियों के लिए तपस्थली रहा है माता के तंत्र मंत्र करने वाले साधकों का जमावड़ा लगता है माता की पंचोपचार व षोडशोपचार विधि से पूजा की जाती है आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी महालक्ष्मी महाकाली महासरस्वती के रूपों में तीन कोण पर विराजमान होकर भक्तों को दर्शन देते हुए उनका कल्याण कर रही हैं । मां विंध्यवासिनी मणिदीप में विराजमान है इनके सर्वांग की पूजा की जाती है जबकि अन्य पीठों में उनके अंग की पूजा की जाती है पुराणों विंध्य क्षेत्र की महिमा का बखान किया गया है ।

Bite-रश्मि-भक्त
Bite-अजय सिंह-भक्त
Bite-जितेंद्र प्रसाद अग्निहोत्री-भक्त
Bite-राजन गुरु-तीर्थ पुरोहित

जय प्रकाश सिंह
मिर्ज़ापुर
9453881630



Conclusion:
Last Updated : Sep 10, 2020, 12:19 PM IST
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