मिर्जापुर: जिले के गंगा तट पर बना नक्काशीदार प्रसिद्ध पक्का घाट नारियों के सम्मान का प्रतीक माना जाता है. 200 वर्ष पहले प्रसिद्ध व्यापारी नबालक साव ने इस पक्के घाट का निर्माण कराया था. 200 वर्ष से ज्यादा बीत जाने के बाद भी यह ऐतिहासिक पक्का घाट का लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.
नबालक साव ने पक्का घाट 200 वर्ष पूर्व 1 लाख 82 हजार की लागत से बनवाया था. वैसे तो इस पक्का घाट को सुबह-शाम दूर-दूर से लोग देखने आते हैं, लेकिन यहां की शाम की आरती भव्य मानी जाती है. आरती में शामिल लोगों का कहना है कि ऐसी नक्काशीदार खूबसूरती अभी तक कहीं नहीं देखी है.
यहां होती है नारी की पूजा
कहा जाता है कि जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता वास करते हैं. महिलाओं को स्नान करने के बाद गंगा में कपड़ा बदलने को लेकर काफी समस्याएं होती थी. इस समस्या को देखते हुए नबालक साव ने पक्के घाट का निर्माण करवाया था. इस घाट पर कपड़ा बदलने के लिए घाट के दोनों तरफ तीन-तीन कमरे बनवाए गए हैं, जिसमें महिलाएं वस्त्र बदला करती हैं.
शक्ति साधना का केंद्र
इस घाट की नक्काशी देखने के लिए लोग दूर-दूर से यहां आते हैं. नबालक साव को मध्य प्रदेश में पूजा पाठ करने में परेशानियां हो रही थी. मुगल शासन में वह विंध्य क्षेत्र में आकर बस गए. विंध्य क्षेत्र आदिकाल से शक्ति साधना का केंद्र रहा है. माता विंध्यवासिनी के भक्त नबालक साव अपनी पत्नी तुलसी देवी के अपमान से इतना व्यथित हुए कि उन्होंने मां गंगा के तट पर नक्काशी वाले पक्का घाट का निर्माण बेजोड़ पत्थरों से करवाया.
जनपदों के पथरों से कराया गया निर्माण
लाख एवं चपड़ा के प्रमुख व्यापारी नबालक साव तबेला में रहते थे. पक्का घाट के निर्माण में जनपद के ही पत्थरों का प्रयोग किया गया है. 3 वर्ष तक चले पक्का घाट के निर्माण कार्य में कुल 18,2,000 की लागत आई है. बेजोड़ शिल्पकारी से चित्रित पत्थरों का पक्का घाट बारहदरी से चलकर आने वाली मां गंगा नदी का दिव्य दर्शन आज भी यहां पर आने वालों को सुकून प्रदान करता है.
200 साल बाद भी ज्यों का त्यों
करीब 200 साल बाद भी नगर का प्रसिद्ध पक्का घाट ज्यों का त्यों बना हुआ है. हालांकि रख-रखाव के अभाव में कुछ जीर्णशीर्ण होने लगा है. पक्का घाट में आज भी महिलाओं का बाजार है, जहां महिलाएं वस्त्र, आभूषण आदि खरीदती हैं.
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