मिर्जापुर: चुनार में सैकड़ों साल से गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां यहां के कारोबारी बनाते हैं. यहां की मूर्तियां देश में छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश जैसे कई प्रदेशों में बिक्री के लिए जाती हैं. लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति की मांग नेपाल में भी है. 50 हजार से लेकर 10 लाख रुपये तक लगाकर कारोबारी दीपावली पर लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति बनाते हैं. यहां पर लगभग 300 मूर्ति बनाने की यूनिट है, जो अभी काम कर रही हैं. इसमें छोटे-बड़े हर तरह के कारोबारी शामिल हैं.
हजारों परिवारों की है रोजी-रोटी
चुनार में हजारों परिवार 11 महीने रात-दिन मिलकर काम करते हैं और एक महीने में सभी मूर्तियां बेच देते हैं. दीपावली के 10 दिन के बाद फिर से यह व्यापारी और कारीगर मूर्तियां बनाने में जुट जाते हैं. साल भर काम करने के बाद फिर दीपावली का इंतजार करते हैं.
दीपावली पर होती है लक्ष्मी-गणेश की मांग
दीपावली के त्योहार पर धन की देवी लक्ष्मी और बुद्धि के देवता गणपति की पूजा की जाती है. पूजा से जुड़ा एक और विधान है कि दीपावली पर लक्ष्मी और गणेश की नई मूर्ति की पूजा होती है. इसके लिए धनतेरस के दिन लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति खरीदना अधिक शुभ माना गया है. धनतेरस और दीपावली में लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों की मांग अधिक होने के चलते दुकानदार मूर्तियों को अंतिम रूप दे रहे हैं.
बाहर से आए दुकानदार चुनार की बनी मूर्तियां ज्यादा पसंद कर रहे हैं. यहां की मूर्ति ले जाकर अपने शहर और बाजारों में बेचते हैं. चुनार की बनी लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति खरीद रहे प्रदीप ने बताया कि टूर पर घूमने चुनार आता-जाता था, तो यहां की मूर्तियां बहुत अच्छी दिखती थीं. हमारे क्षेत्र में इस तरह की कोई दुकान नहीं थी तो हमने वहां पर दुकान खोली है. 50,000 रुपये की यहां से मूर्तियां ले जा रहे हैं. बेचने का काम करेंगे. दीपावली पर दो दिन के लिए लक्ष्मी-गणेश की डिमांड अधिक रहती है. यह सभी मूर्तियां दो दिन में बिक जाएंगी. यहां की जैसी मूर्तियां और कहीं प्रदेशों में नहीं मिलती हैं.
हजारों कारोबारी करते हैं काम
व्यापारी विजय वर्मा का कहना है कि चुनार की मूर्तियां बनाने वाले लोगों का यह पारंपरिक उद्योग है. साल भर यहां के व्यापारी मूर्तियां बनाते हैं. यहां की बनी मूर्तियों की पूरे भारत में सप्लाई होती है. हजारों परिवार इस कारोबार में लगे हुए हैं, जो लक्ष्मी-गणेश के साथ और धार्मिक मूर्तियां बनाने का काम करते हैं.
कोरोना काल में भी है मूर्तियों की डिमांड
चुनार में कुटीर उद्योग का रूप ले चुकी प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनने वाली लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों का उद्योग कोरोना संकट में भी कम नहीं हुआ है. शुरुआत में तो लगा धंधा इस बार चौपट हो जाएगा, लेकिन लॉकडाउन खुलने के बाद व्यापारियों ने अपने साधन से आकर यहां की बनी मूर्तियों को अपने बाजारों में ले जाना शुरू कर दिया है.
पहले यहां पर होता था यह उद्योग
चुनार में पत्थर और चीनी मिट्टी के बर्तन का कारोबार बहुत पुराना है, लेकिन आधुनिकता के चलते अब यह समाप्ति के कगार पर पहुंच गया है. वहीं सैकड़ों साल पुराना लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां और धार्मिक मूर्ति का कारोबार आज भी जीवित है. पहले यहां पर लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति कुम्हार लाल मिट्टी से बनाया करते थे. कोयले की सप्लाई न होने और रॉ मटेरियल न मिलने से धीरे-धीरे यह उद्योग पूरी तरह से बंद हो गया. उसकी जगह प्लास्टर ऑफ पेरिस ने ले ली है. प्लास्टर ऑफ पेरिस से मूर्तियां और खिलौने का कारोबार किया जा रहा है.