मिर्जापुर: हथकरघा उद्योग प्राचीन काल से ही भारत में उन्नति और बुनकरों की आजीविका के लिए आधार माना जाता है. इसके अंतर्गत साड़ी ड्रेश मैटेरियल और दुपट्टा जैसी तमाम वस्तुएं बनाई जाती थीं. हथकरघा उद्योग से निर्मित सामानों का विदेशों में भी निर्यात किया जाता था, लेकिन वर्तमान पीढ़ी हथकरघा उद्योग से नहीं जुड़ना चाह रही है.
वाराणसी जिले के पास सीखड़ नारायणपुर और मझवां ब्लॉकों के गांव में हैंडलूम पर बुनकर काम करते हैं. कार्वी कंसलटेंसी सर्विसेज 2017-18 के सर्वे से पता चला कि जनपद में हथकरघा बुनकर परिवारों की कुल संख्या 2,600 है. इसमें 1,250 बुनकर हैं. वहीं 1,850 सहयोगी बुनकर भी हैं. बता दें कि जनपद में 1,400 बुनकर हथकरघा से काम कर रहे हैं, लेकिन उत्पादन किए माल की बिक्री न होने और मैटेरियल न मिलने से हथकरघा अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है.
पुरानी मशीनों पर काम कर रहे बुनकर
ये बुनकर अभी भी पुरानी मशीनों पर काम कर रहे हैं. इससे बुनकर एक दिन में महज 100 से 125 रुपये तक की कमाई कर पा रहे हैं. बुनकरों का कहना है कि इतनी कमाई में घर खर्च भी नहीं चल रहा है तो अपने बच्चों को कैसे इस व्यवसाय में आने दें. वहीं हैंडलूम अधिकारियों की मानें तो हैंडलूम की जगह पावरलूम ले रहा है, जिसके चलते हथकरघा बुनकरों में कमी आई है. अधिकारियों को कहना है कि हैंडलूम पर ज्यादा समय में कम उत्पादन होता है तो वहीं पावर लूम पर कम समय में ज्यादा उत्पादन किया जा रहा है.
देश आजाद होने के बाद हालात बदले तो देश के बुनकरों की उम्मीद जगी कि कारोबार को बढ़ावा मिलेगा और उनके दिन बहूरेंगे, लेकिन आजादी के 74 सालों बाद भी बुनकरों की हालत जस की तस बनी हुई है. वर्तमान में हथकरघा की जगह बड़ी आधुनिक मशीनें ले रही हैं. यही नहीं हाथ से बने कपड़े के शौकीन भी अब मशीनों से बने मुलायम कपडों को तरजीह दे रहे हैं. इससे हथकरघा उद्योग हाशिये पर चला गया है.
हथकरघा से बनी वाराणसी की साड़ियां बाजार में आकर्षण केंद्र जरूर बनी हुई हैं, लेकिन रॉ मैटेरियल न मिलने और उत्पादन होने के बाद माल की बिक्री न होने से अब इनकी चमक फीकी पड़ रही है. बाजार में मशीनों से बने उत्पादों की भरमार है, जिससे हथकरघा के सहारे जीवन चलाने वाले हाथ अब बेकार हो रहे हैं.
बता दें कि इन्हीं बेकार हाथों का मिर्जापुर के सीखड़ ब्लॉक, मझवां ब्लाक और नारायणपुर ब्लॉक के कई गांव हैं. वाराणसी जिले से सटे मिर्जापुर के ब्लॉकों में हथकरघा पर बुनकर कई पीढ़ियों से काम करते चले आ रहे हैं. नारायणपुर सीखड़ और मझवां ब्लॉक के गांव में आज भी हथकरघा बुनकर काम कर रहे हैं. इनमें से कुछ बुनकर धन के अभाव में वाराणसी के व्यापारियों से कच्चा माल लेकर मजदूरी पर कपड़ा तैयार करते हैं. वहीं कुछ बुनकर अपनी पूंजी से निर्मित वस्तुओं को वाराणसी को बाजारों में बिक्री करते हैं. इन इलाकों में गांव के लोग पीढ़ियों से घर पर हथकरघा पर काम कर परिवार का भरण पोषण करते आ रहे हैं, लेकिन मशीनों की मार के कारण और रॉ मैटेरियल न मिलना और उत्पादन की बिक्री न होने से अब इनके सामने रोजी रोटी के लाले पड़ गए हैं. हालात यह है कि बुनकर पारंपरिक काम में अपने पीढ़ियों को नहीं जोड़ना चाह रहे हैं.
सरकार के प्रयास नाकाफी
बुनकरों का कहना है कि दिन भर मेहनत करने के बाद 100 से 125 रुपये तक की कमाई हो पाती है. इससे परिवार का गुजारा होना भी मुश्किल है. आधुनिक भारत में हम आज भी पुरानी मशीनों पर काम करने को मजबूर हैं. सरकार ने इस उद्योग को संजीवनी देने की कोशिश जरूर की, लेकिन कोई सार्थक परिणाम नजर नहीं आया.
बता दें कि मिर्जापुर में पहले 2,600 से अधिक परिवार हथकरघा चलाते थे, अब महज 1,400 बुनकर इस काम को कर रहे हैं. हथकरघा का व्यवसाय वाराणसी में होता है. वहीं हैंडलूम का ऑफिस भी है. वाराणसी नजदीक होने के कारण पास के ब्लॉकों में बुनकर यहां से कच्चा माल लाकर काम करते हैं फिर तैयार साड़ियों या दुपट्टा को वाराणसी में ही बेचते हैं.
हैंडलूम अधिकारी ने दी जानकारी
हैंडलूम अधिकारी मनोज कुमार ने बताया कि वाराणसी की सीमा से लगे मिर्जापुर के कई गांवों में उच्च कोटि के रेशमी साड़ी ड्रेस मैटेरियल का उत्पादन होता है. इन गांवों की सीमाएं वाराणसी से सटी हैं. इसीलिए इन्हें कच्चे माल और उत्पादित पक्के माल को बेचने के लिए बाजार भी सहज उपलब्ध हो जाता है. अब हैंडलूम की जगह पावर लूम ले रहा है. इससे बुनकरों की संख्या में कमी आ रही है.
मनोज कुमार ने बताया कि सरकार इन्हें प्रधानमंत्री हैंडलूम बुनकर मुद्रा योजना की सुविधा दे रही है. इसके तहत बुनकरों को 51 हजार से 10 लाख तक का ऋण मात्र 6 प्रतिशत की ब्याज दर पर दिया जाता है. वहीं अवशेष अधिकतम 7 परसेंट का ब्याज उत्पादन केंद्र सरकार की ओर से दिया जाता है. वहीं केंद्र सरकार की ओर से 10 हजार तक की सहायता राशि मार्जिन मनी के रूप में दी जाती है.
बुनकरों को किया जाता है सम्मानित
कताई बुनाई विषय में इंटरमीडिएट उत्तीर्ण विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति योजना का लाभ दिया जा रहा है. इंटरमीडिएट उत्तीर्ण करने पर 10 माह तक 500 रुपये प्रति छात्रों को दिया जाता है. वर्ष 2018-19 में 71 वर्ष 2019-20 में 65 छात्रों को छात्रवृत्ति दी गई है. इसके साथ ही संत कबीर राज्य हथकरघा पुरस्कार योजना भी संचालित है. बुनकरों को प्रोत्साहित करने के लिए उत्कृष्ट कार्यों को करने वाले बुनकरों को पुरस्कार दिया जाता है.
इसके साथ ही राज्य स्तरीय पुरस्कार चार चरणों में दिए जाने का प्रावधान है. प्रथम साड़ी ड्रेस मैटेरियल, द्वितीय सूती दरी उलन, तृतीय बेडशीट बेड कवर और चौथा स्टोल स्कार्फ गमछा है. प्रथम पुरस्कार पाने वाले को एक लाख रुपये की राशि दी जाती है. द्वितीय पुरस्कार पाने वाले को 50 हजार रुपये, तृतीय पुरस्कार वाले को 25 हजार रुपये की राशि दी जाती है.
केंद्र सरकार और राज्य सरकार की ओर से समय-समय पर प्रदर्शनी का आयोजन होता है. यहां पर बुनकर अपने उत्पादित माल की बिक्री और प्रदर्शन करते हैं. केंद्र सरकार की ओर से आयोजित दिल्ली हाट पर वर्ष पर्यंत चलता है. यहां पर व्यक्तिगत बुनकर भी भाग ले सकता है. प्रदेश सरकार की ओर से हैंडलूम एक्सपो का आयोजन होता है, यहां भी बुनकर जाते हैं.
वर्ष 2019 -20 उत्तर प्रदेश सरकार बुनकरों की हथकरघा उत्पाद की बिक्री प्रत्येक वर्ष प्रदेश के बाहर चार हथकरघा प्रदर्शनी और विदेशों में दो प्रदर्शनी लगाने का निर्णय लिया है. यहां बुनकरों को प्रदर्शनी दो बुनकर तक आने-जाने का खर्च और प्रदर्शनी में रहने और खाने का सरकार करती है. इसके साथ ही 8 हजार तक के माल भाड़ा की भी प्रतिपूर्ति की जाती है. हथकरघा के जगह पावर लूम ले रहा है. इनकी नई पीढ़ी इसमें आ नहीं रही है. माल की बिक्री कम हो रही है जैसे तमाम वजह से अब हथकरघा कम हो रहा है.