मिर्जापुर : ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज निर्देशक सतीष कौशिक की फिल्म 'कागज' इन दिनों दर्शकों को खूब पसंद आ रही है. सरकारी तंत्र की लापरवाही से जिंदा व्यक्ति को कागजों में मुर्दा दिखाने वाली यह फिल्म भले ही आजमगढ़ के लाल बिहारी पर बनी हो. मगर आज भी मिर्जापुर जनपद में एक नहीं तीन-तीन लाल बिहारी हैं. कोई 20 सालों से तो कोई सालों से अपने को जिंदा साबित करने के लिए दर-दर भटक रहे हैं. अधिकारियों से कह रहे हैं 'साहब मैं जिंदा हूं, साहब हम आदमी हैं भूत नहीं'. खुद को जिंदा साबित करने के लिए लाचार गरीब बुजुर्गों की फाइलें लालफीताशाही के मकड़जाल में उलझी पड़ी हैं.
जिंदा साबित करने के लिए दर-दर भटक रहे बुजुर्ग
सच्ची घटना पर आधारित आजमगढ़ के लाल बिहारी मृतक पर बनी फिल्म 'कागज' दर्शकों को खूब पसंद आ रही है. सरकारी तंत्र की लापरवाही से जिंदा व्यक्ति को कागज में मुर्दा का मुद्दा फिल्म में दिखाया गया है. मगर इस तरह की हकीकत मिर्जापुर में आज भी एक नहीं तीन-तीन लाल बिहारी अधिकारियों के यहां सालों से चक्कर लगा रहे हैं. वो कह रहे हैं 'साहब मैं जिंदा हूं, साहब हम आदमी हैं भूत नहीं'.
दरअसल, अमोई के भोला सिंह पिछले 20 सालों से राजस्व निरीक्षक और लेखपाल द्वारा खतौनी में मृत दिखाने पर अपने को जिंदा साबित करने के लिए भटक रहे हैं. दूसरा चील्ह के रहने वाले 70 वर्षीय रघुनाथ गुप्ता है, जो बैंक में पेंशन के पैसे निकालने गए तो कैश काउंटर पर बैठे कर्मचारी ने बताया कि आप तो मर चुके हैं. तीसरे बुजुर्ग बौता विशेषर सिंह गांव के रहने वाले 72 वर्षीय कबीर दास बिंद हैं, जिन्हें ग्रामसभा के भ्रष्टाचार की जांच कराना महंगा पड़ गया. उन्हें सिगेटरी व ग्राम प्रधान ने कागजों में मृतक बता दिया, ताकि ये आवास से वंचित हो जाएं. यह तीनों व्यक्ति सदर तहसील के रहने वाले हैं. जब ईटीवी भारत ने सदर तहसील के उपजिलाधिकारी गौरव श्रीवास्तव से बात की तो बोले कि मामला संज्ञान में आते ही कार्रवाई की जाती है. अमोई गांव के भोला के प्रकरण को लेकर उनके गांव टीम को भेजा गया था, मगर वो नहीं मिले. टीम को पता चला कि वो लालगंज में रहते हैं. अधिकारी का कहना था कि उनसे मिलकर उनकी बात जानने की कोशिश की जाएगी. जो भी होगा उचित निस्तारण किया जाएगा. साथ ही उन्होंने कहा कि मामला तहसील न्यायालय में वरासत को लेकर विचाराधीन है. फिर भी मामले की जांच कराकर पीड़ित को न्याय दिलाया जायेगा. साथ ही उनका कहना था कि चील्ह और बौता विशेषर सिंह गांव का मामला सामने नहीं आया है.
पहले हम आपको जिला अधिकारी कार्यालय के सामने पोस्टर लेकर धरने पर बैठे बुजुर्ग भोला सिंह की कहानी बताते हैं. यह 1999 से लेकर अब तक अपने आप को जिंदा साबित करने के लिए अधिकारियों के कार्यालय चक्कर लगा रहे हैं. अंत में थक हारकर जिला मुख्यालय पहुंचकर डीएम कार्यालय परिसर में धरने पर बैठ गए हैं. दरअसल, भोला सिंह के पिता के खत्म होने के बाद वारिस में भोला सिंह और भाई राज नारायण का नाम होना चाहिए था. मगर राजस्व निरक्षक शहर व लेखपाल ने भोला सिंह को मुर्दा दिखाकर भाई राज नारायण के नाम कर दिया गया. यह सब हुआ भाई राज नारायण और राजस्व निरक्षक शहर व लेखपाल की मिलीभगत से. एक बीघा 15 बिस्वा 12 धुर जमीन भाई राज नारायण अपने नाम करा लिया. अब भाई उस खेत को जोतने-बोने नहीं देता है, जिसको लेकर अब सरकारी ऑफिस का चक्कर काट रहे हैं.
'बैंक कर्मचारी ने कहा कि आप तो मर चुके हैं'
दूसरी कहानी है कोन विकासखंड के चील्ह गांव के रहने वाले रघुनाथ गुप्ता की. सरकारी मशीनरी ने इनको भी कागजों में मार डाला. ये एक सप्ताह पहले जब इंडियन बैंक चील्ह के शाखा पर अपने पेंशन को निकलवाने पहुंचे तो वहां मौजूद कैश काउंटर पर कर्मचारी ने कहा कि आप तो मर चुके हैं, और इस वजह से आपका खाता बंद कर दिया गया है. तब रघुनाथ गुप्ता हताश हो गए और अपने को जिंदा साबित करने के लिए सरकारी विभागों का चक्कर लगाना शुरू कर दिए. बुजुर्ग का आरोप है कि सरकारी कागजों में मार डाला गया है और सलाह दी जा रही है कि ऊपर के अधिकारियों से अपने को जिंदा होने का सबूत प्रार्थना पत्र के माध्यम से दें. इसको लेकर रघुनाथ कोन ब्लॉक पर एसडीएम अमित शुक्ला को प्रार्थना देकर अपने को जिंदा घोषित करवाने और पेंशन चलाने चालू करा कर खाते में डलवाने की मांग की है. इस मामले में अमित शुक्ला ने बताया कि पीड़ित व्यक्ति ने प्रार्थना पत्र दिया है, जिसकी जांच कराई जाएगी. मृत्यु घोषित किए जाने के मामले में जो भी दोषी होगा उनके खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी.
'ग्राम प्रधान और पंचायत सचिव ने बुजुर्ग को दिखाया मृत'
तीसरी कहानी है छानबे ब्लॉक के बौता विशेषर सिंह गांव के रहने कबीरदास बिंद की. यहां भी सरकारी अमला पंगु हो चुका है. जीवित गरीब को कागजों पर मृत इसलिए बता दिया कि वो आवास योजना के लाभ से वंचित हो जाए. अब यह बुजुर्ग खुद को जिंदा साबित करने के लिए अधिकारियों के यहां भटक रहा है. दरअसल, 72 वर्षीय कबीर दास बिंद को ग्राम सभा में भ्रष्टाचार और ग्राम प्रधान के कार्यों व संपत्तियों की जांच कराना महंगा पड़ गया. कबीर दास का आरोप है कि सिगरेटरी और प्रधान ने मिलकर उन्हें आवास सूची से बाहर कर मृतक दिखा दिया. इसकी शिकायत जब ब्लॉक से लेकर जिला अधिकारी तक की गई, तो अब कहा जा रहा है कि आवास सर्वे के दौरान लिपिकीय त्रुटि होने से ऐसा हो गया था. यही बात अधिकारियों से कहकर अपना बचाव ग्राम प्रधान और पंचायत सचिव ने कर लिया. मगर सवाल उठता है कि एक आवास न देने के लिए किसी को मृत दिखा देने वाले सचिव और ग्राम प्रधान को अधिकारी क्यों बचा रहे हैं.