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सूरदास के हाथों में ऐसा हुनर कि बड़े-बड़े कुम्हार हो जाते हैं धराशाई

मिर्जापुर जिले में अहरौरा बाजार के रहने वाले बुजुर्ग सूरदास को बचपन से ही आंखों से कुछ दिखाई नहीं देता. पड़ोसी उन्हें सूरदास कहकर बुलाते हैं, लेकिन इनके हाथों में ऐसा हुनर है कि इनके आगे बड़े-बड़े कुम्हार धराशाई हो जाते हैं.

बसंतु सूरदास
बसंतु सूरदास
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Published : Nov 13, 2020, 7:10 PM IST

मिर्जापुर: अहरौरा बाजार के रहने वाले बुजुर्ग सूरदास की आंखों में रोशनी नहीं है. फिर भी 50 सालों से हर दिवाली में दीये बनाकर दूसरों के घरों को रोशन करते आ रहे हैं. इनके हाथों में ऐसा हुनर है कि अच्छे-अच्छे कुम्हार फेल हो जाएं. लोग इनको बसन्तु कोहार उर्फ सूरदास के नाम से जानते हैं. ये जब 10 साल के थे तब अपने नाना के काम में हाथ बंटाते थे.

बसंतु सूरदास.

50 साल से कर रहे काम
सूरदास बताते हैं कि 50 सालों से मिट्टी के सामानों को बनाकर बाजार में बेचते हैं. इससे अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं. दिवाली में इनको ज्यादा उम्मीद होती है. हर साल दिवाली पर दीये, खिलौने बेचकर चार से पांच हजार कमाई कर लेते हैं.

नाना ने सिखाई थी कला
सूरदास अपने नाना से मिट्टी के पात्र बनाने को लेकर जिद करने लगे. ये जानते हुए कि सूरदास कुछ देख नहीं सकते. इसके बावजूद नाना ने इनका हाथ पकड़कर दीये, घड़े, बर्तन और खिलौने बनाना सिखाना शुरू कर दिया. करीब 18 साल की अवस्था मे मिट्टी के बर्तन बनाने का हुनर सूरदास ने अपने नाना से हासिल कर लिया. कुछ दिनों बाद इनके सिर से नाना का साया भी हट गया और ये बिल्कुल अकेले पड़ गए.

73 साल के हैं सूरदास
रिश्तेदारों ने किसी तरह अपाहिज लड़की से इनकी शादी करा दी. इनका एक लड़का भी है जो अर्द्धविक्षिप्त है. वह भी थोड़ा बहुत काम में सहयोग करता है. सूरदास बसन्तु इस वक्त 73 साल के हैं. दिवाली इनके लिए कुछ खास अहमियत रखती है. यह हर साल दिवाली पर दीये और खिलौने बेचकर घर का खर्च चलाते हैं.

मिर्जापुर: अहरौरा बाजार के रहने वाले बुजुर्ग सूरदास की आंखों में रोशनी नहीं है. फिर भी 50 सालों से हर दिवाली में दीये बनाकर दूसरों के घरों को रोशन करते आ रहे हैं. इनके हाथों में ऐसा हुनर है कि अच्छे-अच्छे कुम्हार फेल हो जाएं. लोग इनको बसन्तु कोहार उर्फ सूरदास के नाम से जानते हैं. ये जब 10 साल के थे तब अपने नाना के काम में हाथ बंटाते थे.

बसंतु सूरदास.

50 साल से कर रहे काम
सूरदास बताते हैं कि 50 सालों से मिट्टी के सामानों को बनाकर बाजार में बेचते हैं. इससे अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं. दिवाली में इनको ज्यादा उम्मीद होती है. हर साल दिवाली पर दीये, खिलौने बेचकर चार से पांच हजार कमाई कर लेते हैं.

नाना ने सिखाई थी कला
सूरदास अपने नाना से मिट्टी के पात्र बनाने को लेकर जिद करने लगे. ये जानते हुए कि सूरदास कुछ देख नहीं सकते. इसके बावजूद नाना ने इनका हाथ पकड़कर दीये, घड़े, बर्तन और खिलौने बनाना सिखाना शुरू कर दिया. करीब 18 साल की अवस्था मे मिट्टी के बर्तन बनाने का हुनर सूरदास ने अपने नाना से हासिल कर लिया. कुछ दिनों बाद इनके सिर से नाना का साया भी हट गया और ये बिल्कुल अकेले पड़ गए.

73 साल के हैं सूरदास
रिश्तेदारों ने किसी तरह अपाहिज लड़की से इनकी शादी करा दी. इनका एक लड़का भी है जो अर्द्धविक्षिप्त है. वह भी थोड़ा बहुत काम में सहयोग करता है. सूरदास बसन्तु इस वक्त 73 साल के हैं. दिवाली इनके लिए कुछ खास अहमियत रखती है. यह हर साल दिवाली पर दीये और खिलौने बेचकर घर का खर्च चलाते हैं.

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