मिर्जापुर: शान-शौकत और विलासिता का प्रतीक कहे जाने वाले पीतल के बर्तन जो कभी मिर्जापुर जिले का प्रतिनिधित्व करते थे, आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने को मजबूर हैं. जनपद के कसरहट्टी मोहल्ले में सैकड़ों सालों से लोग बर्तन बनाने का काम कर रहे हैं. इससे हजारों लोगों की रोजी-रोटी चलती थी, लेकिन आज यह उद्योग सिमटने की कगार पर है.
व्यापारियों के पास आर्डर न होने कारण कारीगर भुखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं. ऐसे में कारीगर काम की तलाश में अन्य जिलों के लिए पलायन कर रहे हैं. यदि यही हाल रहा तो वह समय दूर नहीं जब पीतल उद्योग नाम मात्र का रह जाएगा.
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मिर्जापुरी बर्तनों के नाम से है मशहूर
मिर्जापुरी पीतल बर्तनों का पूरे देश में अपना स्थान है. यहां शादी-विवाह के साथ अन्य सामाजिक कार्यक्रमों में उपयोग किए जाने वाले प्राचीन डिजाइन के बर्तन बनाए जाते हैं. यह बर्तन अपने सौंदर्य और कलात्मकता के लिए देश भर में मशहूर हैं. बिहार, मध्य प्रदेश, उड़ीसा आदि राज्यों में ये बर्तन मिर्जापुरी बर्तनों के नाम से जाने जाते हैं.
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10 हजार करीगरों को मिलता है रोजगार
इस क्षेत्र में लगभग 480 इकाइयां स्थापित हैं, जिसमें से 2800 श्रमिक कार्यरत हैं. इसका उत्पाद चार पांच चरणों में होता है. सभी चरणों की एक अलग इकाई स्थापित होती है. इस उद्योग में लगभग 1,500 परिवार विभिन्न औद्योगिक इकाइयों द्वारा उत्पादित यूटेंसिल लगाकर जॉब वर्क कर फिनिश्ड उत्पाद व्यापारियों को देते हैं. इस कार्य में प्रत्यक्ष रूप से 4,300 और अप्रत्यक्ष रूप से 10 हजार व्यक्ति कार्य में लगे हैं.
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काम न मिलने की वजह से ज्यादातर कारीगर पलायन को मजबूर हैं. नोटबंदी और जीएसटी के बाद से माल नहीं निकल रहा है. शादी-विवाह के समय लोग थोड़ी बहुत खरीदारी करते हैं. नहीं तो पीतल उद्योग पहले से बहुत कम हो गया है.
-मुन्ना लाल, कारीगर
मिर्जापुर के पीतल उद्योग को बढ़ाने के लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है. पीतल उद्योग में लगभग 200 से ज्यादा छोटी-बड़ी इकाई कार्यरत है. सरकार इन लोगों को भी लाभान्वित करने का प्रयास कर रही है. सरकार विभिन्न योजनाएं ला रही है, जिससे कारीगरों और व्यापारियों को दिक्कत न हो. एनजीटी पॉल्यूशन से एनओसी न मिलने से थोड़ी प्रॉब्लम होती है. इसके लिए शहर से इस उद्योग को लालगंज चुनार हलिया जैसे क्षेत्र में लगाने को कहा जा रहा है.
-वी के चौधरी, ग्राम उद्योग अधिकारी