मेरठः हाल ही में संपन्न हुए निकाय चुनावों में खासतौर से वेस्टर्न यूपी में इस बार राजनीति का पावर पॉइंट कहे जाने वाले मेरठ की राजनीति एकदम बदल गई है. समाजवादी पार्टी की तो यहां पार्टी में आपसी कलह और फूट इस कदर चुनाव में हावी रही कि अखिलेश यादव भी अपने मेयर प्रत्याशी को चुनाव की फाइट तक में नहीं ला पाए. हश्र भी यह हुआ जिसके बारे में कभी सपा के मुखिया या उनके सलाहकारों ने भी नहीं सोचा होगा.
अखिलेश यादव मेरठ में रोड शो से हुए थे गदगदः समाजवादी पार्टी मुखिया का वह दावा जिसमें उन्होनें कहा था कि मेरठ में बीजेपी से ज्यादा ताकतवर गठबंधन है. इसके बावजूद सपा का प्रत्याशी AIMIM के प्रत्याशी से भी पीछे रह गया. हालांकि जीत का सेहरा भारतीय जनता पार्टी के सिर बंधा है. निकाय चुनावों से पहले अपनी मेयर प्रत्याशी के पक्ष में रोड शो में उमड़ी भीड़ को देखकर अखिलेश यादव ने मीडिया को बयान दिया था कि रोड शो में मिले जनसमर्थन से तय हो गया है कि मेरठ में मेयर सपा का होगा.
दूसरे नम्बर पर रही पतंग और तीसरे पर साइकिलः असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM के मेयर के प्रत्याशी को मेरठ की जनता ने 1 लाख 28 हजार 547 वोट दे डाले. सपा की मेयर प्रत्याशी सीमा प्रधान को 1,15,964 वोट हासिल हुए हैं. इसके अलावा बसपा के प्रत्याशी को 54076 और कांग्रेस के नसीम कुरैशी को 15473 वोट मिले. इतना ही नहीं जहां 2017 में AIMIM का रक पार्षद मेरठ में जीता था, इस बार 11 जीते हैं.
उत्साहित हैं मेरठ में पतंग वालेः मेयर प्रत्याशी रहे अनस का कहना है कि लोकसभा चुनाव में और भी मजबूती से हम लड़ेंगे और जीतेंगे. वह कहते हैं कि हम पर बी टीम का टैग लगता है. लेकिन बी टीम बीजेपी की समाजवादी पार्टी है. बकौल अनस अगर समाजवादी पार्टी चुनाव न लड़ती तो एआईएमआईएम यहां चुनाव जीत जाती.
बीजेपी सांसद मानते हैं सपा के पिछड़ने का कारण पार्टी में फूटः राज्यसभा सांसद बाजपेयी ने AIMIM के मेरठ में सपा बसपा से आगे निकलने पर कहा कि अखिलेश मेरठ आए तो विधायक के घर चाय पीकर चले गए. इनके पार्टी के विधायक तक चुनाव में घर के बाहर निकलकर नहीं आए. अखिलेश खुद सीमित एरिया में गाड़ी में बैठकर चले गए. इसमें हैरानी की कोई बात ही नहीं है. मृतप्रायः पार्टियों पर अब कौन भरोसा करेगा. राज्यसभा सांसद लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने कहा कि हमने भी मुस्लिमों की तरफ हाथ बढ़ाया है . 'सबका साथ,सबका विकास, सबका प्रयास' इस थीम पर भारतीय जनता पार्टी काम कर रही है. हमने तो मुस्लिम कैंडिडेट भी लड़ाए थे. हमने हाथ बढ़ाया है अगर वह हाथ पकड़ लेंगे तो हम कलाई भी उनकी पकड़ लेंगे. हाथ नहीं पकड़ेंगे तो हम अपना हाथ नीचे ले आएंगे. हमने अपनी तरफ से पहल की है, अब पहल उधर से होनी है.
सपा नहीं जीत पाई कभी मेरठ में मेयर का चुनावः हालांकि यहां यह भी नहीं भूलना चाहिए कि सपा प्रदेश में कहीं अपना मेयर पहले भी नहीं जीता पाई थी. जबकि पिछली बार 16 में से 2 पर बसपा का जादू चला था. मेरठ के अलावा अलीगढ़ में भी बीएसपी ने जीत दर्ज की थी. खतौली मॉडल पर चुनाव लड़ने वाले सपा रालोद गठबंधन एक साथ वहुनाव लड़ते दिखाई नहीं दिए बल्कि दोनों दल आपास में जरूर लड़ाई लड़ते दिखे. इस बार कहीं न कहीं सपा रालोद गठबंधन के लिए भी है साख का सवाल था लेकिन दोनों दलों में तल्ख़ियां देखने को मिलीं और रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष की तरफ से प्रचार से दूरी बनाने की बात कहकर सपा को टेंशन दे दी थी.
अखिलेश ने अकेले किया था रोड शोः मेरठ में महापौर की प्रत्याशी सीमा प्रधान के समर्थन में अखिलेश यादव ने रोड शो किया तो उस वक्त बहुत कुछ बदला हुआ था. तब न हीं तो उसमें कोई रालोद का नेता था और न ही आजाद समाज पार्टी के नेता चंद्रशेखर. जिसके बाद से यहां माना जा रहा था कि अब सपा के लिए यह सीट जीतना आसान नहीं होगा. रालोद सपा गठबंधन की तरफ से निकाय चुनाव को लेकर खतौली मॉडल पर निकाय चुनाव लड़ने की बातें हो रही थीं, लेकिन वह फ्लॉप ही रहा.
जिले के नेताओं की अनदेखी ले डूबी सपा कोः खास बात यह भी है की समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष तो जरूर मेरठ में रोड शो करने आए, लेकिन उनके किठौर से विधायक शाहिद मंजूर और शहर के विधायक रफीक अंसारी ने भी मेयर प्रत्याशी के समर्थन में प्रचार तक नहीं किया. इतना ही नहीं पूर्व विधायक और पार्टी के जिले के बड़े दलित नेता खुद को बताने वाले योगेश वर्मा तक ने सपा के मेयर प्रत्याशी के लिए वोट तक नहीं मांगे. जबकि 2017 में योगेश की पत्नी सुनीता वर्मा ही बीएसपी से महापौर चुनी गई थीं. वह भी कहीं वोट मांगने नहीं आईं. गौरतलब है कि 2022 से पहले बीएसपी का साथ छोड़कर पति पत्नी ने सपा जॉइन कर ली थी. पार्टी ने भी योगेश वर्मा को तब हस्तिनापुर से टिकट देकर चुनाव लड़ाया था. सरधना से पार्टी के विधायक अतुल प्रधान की पत्नी सीमा समाजवादी पार्टी की तरफ से बतौर मेयर प्रत्याशी लोगों के बीच अपने पति के साथ ही सिर्फ अपना प्रचार करती रहीं.
वो कारण जिनसे सपा से मुस्लिम प्रेम हुआ कमः वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक शादाब रिजवी कहते हैं कि यहां कई ऐसे कारण है जिस वजह से समाजवादी पार्टी को जनता का साथ मेरठ में नहीं मिला और ओवैसी की तरफ लोगों का ध्यान चला गया. उन्होंने बताया कि एक तो पिछले कुछ समय से देखा जा रहा है कि अखिलेश यादव मुस्लिमों के मुद्दों को ठीक से नहीं उठा रहे हैं. मुस्लिमों को लगता है कि अतीक समेत अन्य कई मुस्लिम नेताओं का विधानसभा में अखिलेश यादव का जिक्र करना मुस्लिमों को नागवार गुजरा. मुस्लिमों को लगता है कि अगर अखिलेश यादव अतीक या अन्य का जिक्र विधानसभा में न करते तो उनके खिलाफ इतना बड़ा एक्शन न होता.
शदाब रिजवी कहते हैं कि प्रचार के दौरान में एक सीमित क्षेत्र में रोड शो करके बिना किसी कार्यकर्ता से मिले घूम कर चले जाना और कार्यकर्ताओं से संवाद तक ना करना इससे भी मुस्लिमों में गुस्सा था. मुस्लिमों का यह बदला व्यवहार एक पानी के बुलबुले की तरह है, जो जल्द ही समाप्त हो जाएगा. हालांकि पतंग को मेरठ बढ़त मिली है, लेकिन यह कंटिन्यू रहेगी ऐसा उन्हें नहीं लगता. शादाब रिजवी मानते हैं कि उन्हें लगता है कि लोकसभा चुनाव में मुस्लिम अब कांग्रेस की तरफ बदलाव के लिए देख सकता है.
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