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'शुगर बाउल' में हो रही स्ट्रॉबेरी की खेती, दो भाइयों ने की थी शुरुआत - मेरठ गन्ने की खेती

गन्ने की फसल के लिए प्रसिद्ध मेरठ अब स्ट्रॉबेरी की खेती की ओर बढ़ रहा है. जिले के दो भाइयों ने यहां स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की है. इन दोनों भाइयों की इस पहल से पूरे जिले के किसानों को सीख मिली है. दूर-दराज से किसान इन दोनों भाइयों की स्ट्रॉबेरी की खेती को देखने आते हैं. यहां एक समय में दूर दूर तक केवल गन्ने की फसल लहराती हुई दिखाई देती थी. अब यहां स्ट्रॉबेरी की फसल भी दिखने लगी है. किसानों की खरीद से दूर यह फल अब उनके खेतों में ही पैदा हो रहा है.

गन्ने से ज्यादा स्ट्रॉबेरी में मुनाफा
गन्ने से ज्यादा स्ट्रॉबेरी में मुनाफा
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Published : Feb 3, 2021, 5:40 PM IST

मेरठ: पश्चिम उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा गन्ने की खेती की जाती है. यही वजह है कि गंगा-जमुना के बीच के इस इलाके को 'चीनी का कटोरा' या 'शुगर बाउल' कहा जाता है. यहां जहां तक नजर जाए, आपको वहां तक लहराती हुई गन्ने की फसल दिखाई देगी. लहराते गन्ने के खेतों के बीच अगर स्ट्रॉबेरी की खेती मिल जाए, तो यह पश्चिमी यूपी के किसानों के लिए आश्चर्य से कम नहीं होगा. मेरठ के अमरपुर गांव में 2 किसान भाइयों ने स्ट्रॉबेरी की खेती कर किसानों के लिए अनोखी मिसाल पेश की है. गन्ने की खेती छोड़ स्ट्राबेरी की खेती कर अपनी आय को दोगुना ही नहीं, चौगुना कर लिया है. एक एकड़ में लगी स्ट्रॉबेरी की फसल को देखने के लिए आसपास के जिलों से भी किसान पहुंच रहे हैं.

किसानों को मिल रहा दुगना मुनाफा
किसानों में दिखाई दे रहा बदलावपश्चमी उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर गन्ने की खेती की जाती है. इसके चलते पश्चमी उत्तर प्रदेश को 'चीनी का कटोरा' कहा जाता है, लेकिन समय के साथ-साथ मेरठ के किसानों में बदलाव देखने को मिल रहा है. किसानों ने गन्ने की फसल को छोड़ कर सब्जियों की फसल करना शुरू कर दिया है. साथ ही किसान उद्यान सबंधी खेती भी रहे हैं. अमरपुर गांव के सेवाराम और राधेश्याम दो भाइयों ने गंगा-यमुना के बीच के वातावरण में स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की है. यह फल कभी किसानों की पहुंच से दूर हुआ करता था, आज वही फल उनके खेतों में पैदा हो रहा है.
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किसान उगा रहे स्ट्रॉबेरी

महाबलेश्वर से लेकर आए हैं पौध

जिले के विकास खंड माछरा इलाके के गांव अमरपुर निवासी सेवा राम कई साल पहले महाराष्ट्र के महाबलेश्वर मंदिर गए थे. महाराष्ट्र के इस इलाके में स्ट्राबेरी की खेती बड़े पैमाने पर होती है. सेवाराम ने उस दौरान न सिर्फ स्ट्राबेरी की फसल के बारे में पूरी जानकारी हासिल की, बल्कि कुछ पौधे लाकर अपने खेत में भी लगा दिए. कुछ दिन देखभाल के बाद पौधों ने फल देना शुरू कर दिया. इसके बाद सेवाराम को विश्वास हो गया कि उनके खेतों में भी महंगे दाम पर बिकने वाली स्ट्राबेरी की खेती की जा सकती है.

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दो भाई कर रहे स्ट्रॉबेरी की खेती

1500 पौधों से की शुरुआत

राधेश्याम ने बताया कि उनके बड़े भाई सेवाराम महाबलेश्वर से पहली बार 1500 पौधे लेकर आए थे. उनसे ही स्ट्रॉबेरी की खेती करना शुरू किया था. पहली बार में ही उनके खेतों में स्ट्रॉबेरी की बेहतरीन खेती हुई थी. स्ट्रॉबेरी के पौधों पर फल भी अच्छी मात्रा में लगे थे. मेरठ की मंडी में स्ट्रॉबेरी को बेचा गया, तो उन्हें बहुत ही अच्छा मुनाफा हुआ. इसके बाद इन्होंने गन्ने की खेती छोड़ के पूरे एक एकड़ में स्ट्रॉबेरी की खेती करने का मन बना लिया.

एक एकड़ में स्ट्रॉबेरी का उत्पादन

राधेश्याम बताते हैं कि करीब 6 साल पहले इन्होंने प्रैक्टिकल के तौर पर स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की थी. आज इन्होंने एक एकड़ में स्ट्रॉबेरी के पौधे लगाए हुए हैं. जानवरों से सुरक्षा के लिए खेत के चारों तरफ तार लगाए हुए हैं. एक एकड़ में उम्मीद से ज्यादा स्ट्रॉबेरी का उत्पादन हो रहा है. सप्ताह में दो बार फल को तोड़ा जाता है. एक एकड़ से हर बार में 4 से 5 क्विंटल से ज्यादा स्ट्रॉबेरी तोड़ कर मंडी में भेजी जा रही हैं. इससे इनकी आय दोगुना ही नहीं, चार गुना बढ़ गई है. ये लोग खेतों में आधुनिक तरीके से पौधे लगाकर मोटा मुनाफा कमा रहे हैं.

गन्ने से ज्यादा हो रहा मुनाफा

ईटीवी भारत की टीम मेरठ के अमरपुर गांव सेवाराम और राधेश्याम के स्ट्रॉबेरी से भरे खेतो में पहुंची. वहां हमने न सिर्फ स्ट्रॉबेरी की फसल और फलों का जायजा लिया, बल्कि किसान राधेश्याम से बात भी की. ईटीवी भारत से बातचीत में राधेश्याम ने बताया कि स्ट्रॉबेरी की खेती में गन्ने से कई गुना ज्यादा मुनाफा हो रहा है. गन्ने का भुगतान एक डेढ़ साल बाद होता है, वहीं स्ट्रॉबेरी की फसल का नगद भुगतान मिल रहा है. हालांकि इस फसल को करने में लागत गन्ने से ज्यादा आती है, लेकिन फसल तैयार होने के बाद लागत का चार से पांच गुना आमदनी हो जाती है.

इस भाव में बिकती है स्ट्रॉबेरी

ईटीवी भारत से बातचीत में राधेश्याम ने बताया कि स्ट्रॉबेरी कई प्रजातियां होती है. ये अलग-अलग मौसम में लगाई जाती है. इन्होंने इस बार अक्टूबर महीने में स्ट्राबेरी के पौधे लगाए थे. ये अब फल दे रहे हैं. सर्दी के मौसम में अच्छी क्वालिटी की स्ट्रॉबेरी 250 से 300 रुपये प्रति किलोग्राम तक बिक जाती है. राधेश्याम के मुताबिक एक एकड़ में करीब 4 लाख रुपये की लागत आ जाती है. वहीं 6 महीनों की फसल 10 लाख से ज्यादा की बिक जाती है. यानि 6 लाख रुपये तक मुनाफा हो रहा है. मेरठ की मंडी में स्ट्रॉबेरी का उठान कम है. बावजूद इसके दोनों भाई इस खेती को मन लगाकर कर रहे हैं.

आसपास के जनपदों से देखने आ रहे किसान

'शुगर बाउल' में लहराते गन्ने की फसल के बीच स्ट्रॉबेरी की खेती लोगों के लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं है. यही वजह है कि गन्ना बैलेट से जुड़े जनपदों के किसान स्ट्रॉबेरी की खेती को देखने पहुंच रहे हैं. किसान सेवाराम और राधेश्याम से इस खेती के बारे में जानकारी ले रहे हैं.


मेरठ: पश्चिम उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा गन्ने की खेती की जाती है. यही वजह है कि गंगा-जमुना के बीच के इस इलाके को 'चीनी का कटोरा' या 'शुगर बाउल' कहा जाता है. यहां जहां तक नजर जाए, आपको वहां तक लहराती हुई गन्ने की फसल दिखाई देगी. लहराते गन्ने के खेतों के बीच अगर स्ट्रॉबेरी की खेती मिल जाए, तो यह पश्चिमी यूपी के किसानों के लिए आश्चर्य से कम नहीं होगा. मेरठ के अमरपुर गांव में 2 किसान भाइयों ने स्ट्रॉबेरी की खेती कर किसानों के लिए अनोखी मिसाल पेश की है. गन्ने की खेती छोड़ स्ट्राबेरी की खेती कर अपनी आय को दोगुना ही नहीं, चौगुना कर लिया है. एक एकड़ में लगी स्ट्रॉबेरी की फसल को देखने के लिए आसपास के जिलों से भी किसान पहुंच रहे हैं.

किसानों को मिल रहा दुगना मुनाफा
किसानों में दिखाई दे रहा बदलावपश्चमी उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर गन्ने की खेती की जाती है. इसके चलते पश्चमी उत्तर प्रदेश को 'चीनी का कटोरा' कहा जाता है, लेकिन समय के साथ-साथ मेरठ के किसानों में बदलाव देखने को मिल रहा है. किसानों ने गन्ने की फसल को छोड़ कर सब्जियों की फसल करना शुरू कर दिया है. साथ ही किसान उद्यान सबंधी खेती भी रहे हैं. अमरपुर गांव के सेवाराम और राधेश्याम दो भाइयों ने गंगा-यमुना के बीच के वातावरण में स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की है. यह फल कभी किसानों की पहुंच से दूर हुआ करता था, आज वही फल उनके खेतों में पैदा हो रहा है.
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किसान उगा रहे स्ट्रॉबेरी

महाबलेश्वर से लेकर आए हैं पौध

जिले के विकास खंड माछरा इलाके के गांव अमरपुर निवासी सेवा राम कई साल पहले महाराष्ट्र के महाबलेश्वर मंदिर गए थे. महाराष्ट्र के इस इलाके में स्ट्राबेरी की खेती बड़े पैमाने पर होती है. सेवाराम ने उस दौरान न सिर्फ स्ट्राबेरी की फसल के बारे में पूरी जानकारी हासिल की, बल्कि कुछ पौधे लाकर अपने खेत में भी लगा दिए. कुछ दिन देखभाल के बाद पौधों ने फल देना शुरू कर दिया. इसके बाद सेवाराम को विश्वास हो गया कि उनके खेतों में भी महंगे दाम पर बिकने वाली स्ट्राबेरी की खेती की जा सकती है.

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दो भाई कर रहे स्ट्रॉबेरी की खेती

1500 पौधों से की शुरुआत

राधेश्याम ने बताया कि उनके बड़े भाई सेवाराम महाबलेश्वर से पहली बार 1500 पौधे लेकर आए थे. उनसे ही स्ट्रॉबेरी की खेती करना शुरू किया था. पहली बार में ही उनके खेतों में स्ट्रॉबेरी की बेहतरीन खेती हुई थी. स्ट्रॉबेरी के पौधों पर फल भी अच्छी मात्रा में लगे थे. मेरठ की मंडी में स्ट्रॉबेरी को बेचा गया, तो उन्हें बहुत ही अच्छा मुनाफा हुआ. इसके बाद इन्होंने गन्ने की खेती छोड़ के पूरे एक एकड़ में स्ट्रॉबेरी की खेती करने का मन बना लिया.

एक एकड़ में स्ट्रॉबेरी का उत्पादन

राधेश्याम बताते हैं कि करीब 6 साल पहले इन्होंने प्रैक्टिकल के तौर पर स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की थी. आज इन्होंने एक एकड़ में स्ट्रॉबेरी के पौधे लगाए हुए हैं. जानवरों से सुरक्षा के लिए खेत के चारों तरफ तार लगाए हुए हैं. एक एकड़ में उम्मीद से ज्यादा स्ट्रॉबेरी का उत्पादन हो रहा है. सप्ताह में दो बार फल को तोड़ा जाता है. एक एकड़ से हर बार में 4 से 5 क्विंटल से ज्यादा स्ट्रॉबेरी तोड़ कर मंडी में भेजी जा रही हैं. इससे इनकी आय दोगुना ही नहीं, चार गुना बढ़ गई है. ये लोग खेतों में आधुनिक तरीके से पौधे लगाकर मोटा मुनाफा कमा रहे हैं.

गन्ने से ज्यादा हो रहा मुनाफा

ईटीवी भारत की टीम मेरठ के अमरपुर गांव सेवाराम और राधेश्याम के स्ट्रॉबेरी से भरे खेतो में पहुंची. वहां हमने न सिर्फ स्ट्रॉबेरी की फसल और फलों का जायजा लिया, बल्कि किसान राधेश्याम से बात भी की. ईटीवी भारत से बातचीत में राधेश्याम ने बताया कि स्ट्रॉबेरी की खेती में गन्ने से कई गुना ज्यादा मुनाफा हो रहा है. गन्ने का भुगतान एक डेढ़ साल बाद होता है, वहीं स्ट्रॉबेरी की फसल का नगद भुगतान मिल रहा है. हालांकि इस फसल को करने में लागत गन्ने से ज्यादा आती है, लेकिन फसल तैयार होने के बाद लागत का चार से पांच गुना आमदनी हो जाती है.

इस भाव में बिकती है स्ट्रॉबेरी

ईटीवी भारत से बातचीत में राधेश्याम ने बताया कि स्ट्रॉबेरी कई प्रजातियां होती है. ये अलग-अलग मौसम में लगाई जाती है. इन्होंने इस बार अक्टूबर महीने में स्ट्राबेरी के पौधे लगाए थे. ये अब फल दे रहे हैं. सर्दी के मौसम में अच्छी क्वालिटी की स्ट्रॉबेरी 250 से 300 रुपये प्रति किलोग्राम तक बिक जाती है. राधेश्याम के मुताबिक एक एकड़ में करीब 4 लाख रुपये की लागत आ जाती है. वहीं 6 महीनों की फसल 10 लाख से ज्यादा की बिक जाती है. यानि 6 लाख रुपये तक मुनाफा हो रहा है. मेरठ की मंडी में स्ट्रॉबेरी का उठान कम है. बावजूद इसके दोनों भाई इस खेती को मन लगाकर कर रहे हैं.

आसपास के जनपदों से देखने आ रहे किसान

'शुगर बाउल' में लहराते गन्ने की फसल के बीच स्ट्रॉबेरी की खेती लोगों के लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं है. यही वजह है कि गन्ना बैलेट से जुड़े जनपदों के किसान स्ट्रॉबेरी की खेती को देखने पहुंच रहे हैं. किसान सेवाराम और राधेश्याम से इस खेती के बारे में जानकारी ले रहे हैं.


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