मेरठ : हिंदुस्तान में बीमारों के स्वस्थ होने के लिए एक कहावत मशहूर है, जहां दवा काम नहीं आती, वहां दुआ काम आती है. एक सच यह भी है कि ज्यादातर लोग अपने और अपने परिवार के लिए सलामती की दुआ करते हैं. मगर मेरठ के लाला लाजपत राय मेडिकल कॉलेज में दो सगे भाई वहां आने वाले मरीजों की सलामती के लिए 18 साल से प्रार्थना कर रहे हैं. दोनों भाई दुनिया को अपनी आंखों से देख नहीं पाते मगर ढोलक और हारमोनियम पर उनके सधे सुर लोगों को धैर्य देते हैं.
मेरठ के लाला लाजपतराय मेडिकल कॉलेज में कम से कम 6 जिलों से मरीज उपचार को आते हैं. यहां दोनों भाई सगे भाई बीरपाल और नरेंद्र हर दिन सुबह से लेकर शाम तक रहते हैं और मेडिकल कॉलेज में आने वाले मरीजों के जल्द स्वस्थ होने की दुआएं दिनभर हैं. विडंबना यह है कि ये दोनों ही भाई जन्म से ही देख नहीं सकते. इन दुआओं की वजह से वह अपने परिवार की परवरिश भी कर रहे हैं, जबकि वह लोगों से खैरात नहीं मांगते.
45 साल के नरेंद्र ने बताया कि वे मेरठ जिले के गांव नंगलामल के रहने वाले हैं, जो मेडिकल कॉलेज से 25 किलोमीटर दूर है. उनके भाई वीरपाल की उम्र करीब 35 वर्ष है. बीरपाल बताते हैं कि वह दोनों भाई ईश्वर से बस यही प्रार्थना करते हैं कि जो भी मरीज मेडिकल कॉलेज आ रहे हैं वह जल्द से जल्द स्वस्थ हों और अपने परिवार के बीच पहुंचे. यहां मरीजों के तीमारदार उनके पास आकर अपने अजीजों के लिए दुआ करने को कहते हैं, फिर दोनों भाई अपने भजनों से अरदास करते हैं और लोगों के स्वस्थ होने की कामना करते हैं.
बीरपाल ने बताया कि पिछले 18 साल से चाहे गर्मी हो या सर्दी या फिर चाहे बरसात, वे नियमित आते हैं. मेडिकल कॉलेज के गेट के नजदीक ही दिनभर बैठकर ईश्वर को याद करके सभी के शुभ के लिए कामनाएं करते हैं. इसी से उनका परिवार भी पलता है क्योंकि लोग बिना मांगे ही उन्हें बहुत कुछ दे भी देते हैं. कोई कुछ सामान दे जाता है तो कोई रुपये पैसे देता है.
नरेंद्र ने और बीरपाल ने बताया कि उन लोगों ने पहले टेपरेकॉर्डर की मदद से भजन और गीत याद किए. अभी उन्हें खुशी है कि वह अपने परिवार पर बोझ नहीं हैं और परिवार की परवरिश करने के लिए अपनी क्षमता के हिसाब से काम कर रहे हैं. दृष्टिहीन नरेंद्र और बीरपाल के बारे में लोग बताते हैं कि दोनों भाई नियमित पूरे दिन भजन दुआएं पढ़ते हैं और सभी की सलामती को मरीजों के लिए ईश्वर से दुआ करते हैं. इसका दूसरा असर है यह है कि उनसे मिलने वाले तीमारदार भी तकलीफ बर्दाश्त करने की प्रेरणा लेते हैं.
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