मेरठ: सम्पूर्ण देश में 1857 में सबसे चर्चित यूपी का मेरठ स्थान था, क्योंकि स्वतंत्रता संग्राम के लिए जो चिंगारी मेरठ से उठी थी और तब से मेरठ को क्रान्तिधरा के नाम से जाना जाता है, लेकिन इस विद्रोह के पीछे महानायक की भूमिका में एक साधु थे, जो कि 1857 अप्रैल महीने में अचानक मेरठ पहुंचे थे. इसके तमाम प्रमाण भी मिलते हैं. इतना ही नहीं रोटी और कमल का भी क्रांति से कनेक्शन है. देखिए ये विशेष रिपोर्ट.
अंग्रेजी शासन के खिलाफ़ माहौल तब बनना शुरू हुआ. जब स्वतंत्रता संग्राम का पहली बार 1857 में मेरठ से बिगुल फूंका गया था. मेरठ से क्रांति की ऐसी ज्वाला धधकी की समूचे देश में उसका असर हुआ और एक दिन ऐसा आया कि अंग्रेजी हुकूमत को भारत को आजाद करना पड़ा. लेकिन ये बात सभी को शायद ही मालूम हो कि इस महान क्रांति के पीछे एक साधु फकीर की साधना जुड़ी थी, जो कि अचानक मेरठ पहुंचे थे और उन्होंने आम जनमानस से लेकर भारतीय सैनिकों में ऊर्जा का संचार करते हुए क्रांति की अलख जगाई. इसी तरह गुलामी की जंजीरों से मुक्ति को स्वतंत्रता संग्राम में रोटी और कमल की भी भूमिका बेहद अहम थी.
इस बार 10 मई को देश क्रांति की 165वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है. मेरठ के स्वतंत्रता संग्राम राजकीय संग्रहालय में बकायदा एक साधु का जिक्र है. राजकीय संग्रहालय के अधीक्षक पी मौर्य बताते हैं कि संग्रहालय में कई इतिहासकारों के हवाले से ये पुष्टि की गई है कि एक साधु अम्बाला छावनी से कालका होते हुए मेरठ पहुंचे थे, जो कि देश प्रेम के लिए धर्मिक भावना जागृत करने का कार्य करते थे.
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जिक्र ये भी है कि मेरठ के सूरजकुंड में ये साधु फकीर निवास करते थे. तत्कालीन मजिस्ट्रेट को कुछ सन्देह हुआ, क्योंकि आम आदमी के अलावा उनके पास बड़ी संख्या में फौजी भी पहुंचने शुरू हो गए थे, उनका स्थान परिवर्तन करा दिया गया. लेकिन ये स्थान परिवर्तन का निर्णय किसी अवसर की तरह साधु को मिला और वे 20वीं पैदल सेना की लाइन में रहते हुए और भी कारगर ढंग से फौजियों और लोगों को क्रांति लाने और विद्रोह करने के लिए तैयार कर रहे थे.
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