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1857 की क्रांति की चिंगारी में साधु थे महानायक तो कमल और रोटी थे सन्देशवाहक

1857 में मेरठ क्रांति की वो गौरवगाथा, जिसमें एक साधु ने जलाई क्रांति की ज्वाला, रोटी और कमल ने सन्देशवाहक का काम किया.

1857 की क्रांति की चिंगारी
1857 की क्रांति की चिंगारी
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Published : May 9, 2022, 8:41 PM IST

मेरठ: सम्पूर्ण देश में 1857 में सबसे चर्चित यूपी का मेरठ स्थान था, क्योंकि स्वतंत्रता संग्राम के लिए जो चिंगारी मेरठ से उठी थी और तब से मेरठ को क्रान्तिधरा के नाम से जाना जाता है, लेकिन इस विद्रोह के पीछे महानायक की भूमिका में एक साधु थे, जो कि 1857 अप्रैल महीने में अचानक मेरठ पहुंचे थे. इसके तमाम प्रमाण भी मिलते हैं. इतना ही नहीं रोटी और कमल का भी क्रांति से कनेक्शन है. देखिए ये विशेष रिपोर्ट.

अंग्रेजी शासन के खिलाफ़ माहौल तब बनना शुरू हुआ. जब स्वतंत्रता संग्राम का पहली बार 1857 में मेरठ से बिगुल फूंका गया था. मेरठ से क्रांति की ऐसी ज्वाला धधकी की समूचे देश में उसका असर हुआ और एक दिन ऐसा आया कि अंग्रेजी हुकूमत को भारत को आजाद करना पड़ा. लेकिन ये बात सभी को शायद ही मालूम हो कि इस महान क्रांति के पीछे एक साधु फकीर की साधना जुड़ी थी, जो कि अचानक मेरठ पहुंचे थे और उन्होंने आम जनमानस से लेकर भारतीय सैनिकों में ऊर्जा का संचार करते हुए क्रांति की अलख जगाई. इसी तरह गुलामी की जंजीरों से मुक्ति को स्वतंत्रता संग्राम में रोटी और कमल की भी भूमिका बेहद अहम थी.

1857 की क्रांति की चिंगारी

इस बार 10 मई को देश क्रांति की 165वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है. मेरठ के स्वतंत्रता संग्राम राजकीय संग्रहालय में बकायदा एक साधु का जिक्र है. राजकीय संग्रहालय के अधीक्षक पी मौर्य बताते हैं कि संग्रहालय में कई इतिहासकारों के हवाले से ये पुष्टि की गई है कि एक साधु अम्बाला छावनी से कालका होते हुए मेरठ पहुंचे थे, जो कि देश प्रेम के लिए धर्मिक भावना जागृत करने का कार्य करते थे.

1857 की क्रांति की चिंगारी
1857 की क्रांति की चिंगारी

यह भी पढ़ें- राकेश टिकैत बोले, किसानों के खिलाफ दर्ज हुए मुकदमे को वापस ले सरकार

जिक्र ये भी है कि मेरठ के सूरजकुंड में ये साधु फकीर निवास करते थे. तत्कालीन मजिस्ट्रेट को कुछ सन्देह हुआ, क्योंकि आम आदमी के अलावा उनके पास बड़ी संख्या में फौजी भी पहुंचने शुरू हो गए थे, उनका स्थान परिवर्तन करा दिया गया. लेकिन ये स्थान परिवर्तन का निर्णय किसी अवसर की तरह साधु को मिला और वे 20वीं पैदल सेना की लाइन में रहते हुए और भी कारगर ढंग से फौजियों और लोगों को क्रांति लाने और विद्रोह करने के लिए तैयार कर रहे थे.

1857 की क्रांति की चिंगारी
1857 की क्रांति की चिंगारी
कालिपल्टन मन्दिर में रहने के दौरान इस महान साधु ने हिन्दू और मुस्लिम दोनों को चर्बी वाले कारतूस न चलाने को तैयार कर दिया था. जब विद्रोह बढा और क्रांति को मेरठ से दिल्ली कुच किया गया तब भी साधु उस दौरान देखे गए. चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रमुख प्रोफेसर विघ्नेश का कहना है कि इस क्रांति की ज्वाला को चिंगारी और फिर शोला बनाने में साधु का अहम रोल रहा है. क्रान्तिधरा मेरठ में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को लेकर स्थापित राजकीय संग्रहालय में 1867 में एक साधु के आगमन की जानकारी मिलती है. वहीं साथ ही कमल और रोटी का भी विवरण मिलता है. कमल चपाती के माध्यम अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह को देश में जगह जगह लोगों को एकजुट करने और उन्हें तैयार करने को ये खास तरीका इश्तेमाल में लाया गया था. वे बताते हैं कि उस वक्त कमल और चपाती वितरित किये जाते थे. वे बताते हैं कि उस वक्त जो क्रांतिकारी संघठित होकर विद्रोह करते उनके पास जो झंडा था उसमें भी कमल और चपाती ही था..
1857 की क्रांति की चिंगारी
1857 की क्रांति की चिंगारी
यानी कहा जा सकता है कि एक साधु ने क्रांति के महानायक की अग्रणी भूमिका निभाई, जिसके बाद अंग्रेजी शासन के विरुद्ध विद्रोह की ऐसी ज्वाला भड़की कि अंग्रेजी हुकूमत के दांत खट्टे कर दिए. वहीं कमल और चपाती के वितरण से ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लोगों को संगठित करने का ये एक अचूक प्रमुख माध्यम था, क्योंकि भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम में चपातियों और कमल के जरिए क्रांति के लिए तैयार किया जा रहा था और इस अभियान को अंग्रेज भी नहीं समझ पाते थे.
1857 की क्रांति की चिंगारी
1857 की क्रांति की चिंगारी

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मेरठ: सम्पूर्ण देश में 1857 में सबसे चर्चित यूपी का मेरठ स्थान था, क्योंकि स्वतंत्रता संग्राम के लिए जो चिंगारी मेरठ से उठी थी और तब से मेरठ को क्रान्तिधरा के नाम से जाना जाता है, लेकिन इस विद्रोह के पीछे महानायक की भूमिका में एक साधु थे, जो कि 1857 अप्रैल महीने में अचानक मेरठ पहुंचे थे. इसके तमाम प्रमाण भी मिलते हैं. इतना ही नहीं रोटी और कमल का भी क्रांति से कनेक्शन है. देखिए ये विशेष रिपोर्ट.

अंग्रेजी शासन के खिलाफ़ माहौल तब बनना शुरू हुआ. जब स्वतंत्रता संग्राम का पहली बार 1857 में मेरठ से बिगुल फूंका गया था. मेरठ से क्रांति की ऐसी ज्वाला धधकी की समूचे देश में उसका असर हुआ और एक दिन ऐसा आया कि अंग्रेजी हुकूमत को भारत को आजाद करना पड़ा. लेकिन ये बात सभी को शायद ही मालूम हो कि इस महान क्रांति के पीछे एक साधु फकीर की साधना जुड़ी थी, जो कि अचानक मेरठ पहुंचे थे और उन्होंने आम जनमानस से लेकर भारतीय सैनिकों में ऊर्जा का संचार करते हुए क्रांति की अलख जगाई. इसी तरह गुलामी की जंजीरों से मुक्ति को स्वतंत्रता संग्राम में रोटी और कमल की भी भूमिका बेहद अहम थी.

1857 की क्रांति की चिंगारी

इस बार 10 मई को देश क्रांति की 165वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है. मेरठ के स्वतंत्रता संग्राम राजकीय संग्रहालय में बकायदा एक साधु का जिक्र है. राजकीय संग्रहालय के अधीक्षक पी मौर्य बताते हैं कि संग्रहालय में कई इतिहासकारों के हवाले से ये पुष्टि की गई है कि एक साधु अम्बाला छावनी से कालका होते हुए मेरठ पहुंचे थे, जो कि देश प्रेम के लिए धर्मिक भावना जागृत करने का कार्य करते थे.

1857 की क्रांति की चिंगारी
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जिक्र ये भी है कि मेरठ के सूरजकुंड में ये साधु फकीर निवास करते थे. तत्कालीन मजिस्ट्रेट को कुछ सन्देह हुआ, क्योंकि आम आदमी के अलावा उनके पास बड़ी संख्या में फौजी भी पहुंचने शुरू हो गए थे, उनका स्थान परिवर्तन करा दिया गया. लेकिन ये स्थान परिवर्तन का निर्णय किसी अवसर की तरह साधु को मिला और वे 20वीं पैदल सेना की लाइन में रहते हुए और भी कारगर ढंग से फौजियों और लोगों को क्रांति लाने और विद्रोह करने के लिए तैयार कर रहे थे.

1857 की क्रांति की चिंगारी
1857 की क्रांति की चिंगारी
कालिपल्टन मन्दिर में रहने के दौरान इस महान साधु ने हिन्दू और मुस्लिम दोनों को चर्बी वाले कारतूस न चलाने को तैयार कर दिया था. जब विद्रोह बढा और क्रांति को मेरठ से दिल्ली कुच किया गया तब भी साधु उस दौरान देखे गए. चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रमुख प्रोफेसर विघ्नेश का कहना है कि इस क्रांति की ज्वाला को चिंगारी और फिर शोला बनाने में साधु का अहम रोल रहा है. क्रान्तिधरा मेरठ में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को लेकर स्थापित राजकीय संग्रहालय में 1867 में एक साधु के आगमन की जानकारी मिलती है. वहीं साथ ही कमल और रोटी का भी विवरण मिलता है. कमल चपाती के माध्यम अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह को देश में जगह जगह लोगों को एकजुट करने और उन्हें तैयार करने को ये खास तरीका इश्तेमाल में लाया गया था. वे बताते हैं कि उस वक्त कमल और चपाती वितरित किये जाते थे. वे बताते हैं कि उस वक्त जो क्रांतिकारी संघठित होकर विद्रोह करते उनके पास जो झंडा था उसमें भी कमल और चपाती ही था..
1857 की क्रांति की चिंगारी
1857 की क्रांति की चिंगारी
यानी कहा जा सकता है कि एक साधु ने क्रांति के महानायक की अग्रणी भूमिका निभाई, जिसके बाद अंग्रेजी शासन के विरुद्ध विद्रोह की ऐसी ज्वाला भड़की कि अंग्रेजी हुकूमत के दांत खट्टे कर दिए. वहीं कमल और चपाती के वितरण से ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लोगों को संगठित करने का ये एक अचूक प्रमुख माध्यम था, क्योंकि भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम में चपातियों और कमल के जरिए क्रांति के लिए तैयार किया जा रहा था और इस अभियान को अंग्रेज भी नहीं समझ पाते थे.
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