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Republic Day 2023 : जानिए देशभक्तों के इन खास झंडों के बारे में, जो क्रांति के लिए देते थे ऊर्जा - saffron flag

इतिहास साक्षी है कि 1857 की क्रांति से लेकर देश की आजादी तक देश में खूब संघर्ष हुआ. देश के शूरवीरों योद्धाओं ने क्रांति की ज्वाला को जागृत रखने के क्रांतिकारी झंडों का इस्तेमाल किया. जानिए ऐसे ही क्रांतिकारी झंडों के बारे में..

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Published : Jan 24, 2023, 1:19 PM IST

देशभक्ति की ज्वाला जागृत करते थे क्रांतिकारी झंडे

मेरठः देश में क्रांति धरा का बिगुल मेरठ से बिगुल फूंका गया था. ब्रिटश हुकूमत के जुल्म और ज्यादतियों से हर तरफ देशवासी परेशान थे, कोई भी आवाज उठती तो उसे कुचल दिया जाता था. इस दौरान जब क्रांति की चिंगारियां धीरे-धीरे शोला बनकर देशभक्तों के सीने में धधक रही थी. बताया जाता है कि उस दौरान पहली बार क्रांतिकारियों ने एक झंडे को अपना झंडा बनाया था. वह एक हरे रंग का झंडा था, जिसके ऊपर कमल था.

आजाद हिंदुस्तान की पहली लड़ाई के लिए यही वो झंडा था, जिसे उस वक्त क्रांतिकारी झंडा कहा गया. मेरठ के संग्रहालय में ऐसे ही कई झंडों का जिक्र मिलता है, जो अंग्रेजी हुकूमत से लोहा लेने के लिए क्रांतिकारियों के द्वारा इस्तेमाल किए गए थे. मेरठ में स्थित स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की सेना के झंडे से लेकर कई झंडों का रिकॉर्ड दर्ज हैं. सबसे पहले बात करते हैं उस झंडे की जिस पर 1857 के दौरान एक छोर पर रोटी तो दूसरे छोर पर कमल का निशान हुआ करता था. इस झंडे का क्रांति से सीधा कनेक्शन था.

इसी तरह गुलामी की जंजीरों से मुक्ति को स्वतंत्रता संग्राम में रोटी और कमल की भी भूमिका बेहद अहम थी. इस बारे में स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय के अधीक्षक पतरु मौर्य ने बताया कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को लेकर स्थापित राजकीय संग्रहालय में 1867 में कमल और रोटी का विवरण दर्ज है. इस झंडे के साथ लोग एकजुट होकर अंग्रेजों के खिलाफ जगह-जगह विद्रोह कर रहे थे.

पतरु मौर्य ने बताया कि उस वक्त कमल और रोटी वितरित किये जाते थे, जो वह रोटी ले लेता था तो माना जाता था कि वह परिवार क्रांतिकारियों के साथ है. वह बताते हैं कि उस वक्त जो क्रांतिकारी संघठित होकर विद्रोह करते उनके पास जो झंडा था उसमें भी कमल और रोटी ही थी. कमल की पंखुड़ियों और रोटी के वितरण से ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लोगों को संगठित करने का ये एक अचूक प्रमुख माध्यम था, क्योंकि भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम में रोटी और कमल के जरिए क्रांति के लिए तैयार किया जा रहा था. इस अभियान को अंग्रेज भी नहीं समझ पाते थे.

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई जब अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध के मैदान में पहुंची थी, तो एक खास झंडा वहां सैनिकों का मनोबल बढ़ा रहा था. उस भगवा रंग के इस झंडे पर हनुमान जी की तश्वीर थी. खासकर बुंदेलखंड में क्रांतिकारियों का जो उस वक्त झंडा था, वह यही झंडा था. इस झंडे पर हनुमान जी का पर्वत हाथ में उठाते हुए चित्र बना होता था. यही झंडा झांसी की रानी का भी था. इसका रिकॉर्ड मेरठ के खास म्यूजियम में दर्ज है. मेरठ के संग्रहालय में क्रांतिकारी झंडों की एक गैलरी में भी इसका उल्लेख है.

चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रमुख प्रोफेसर विघ्नेश से भी ईटीवी भारत ने बातचीत की. उन्होंने बताया कि क्रांति की ज्वाला को चिंगारी और फिर शोला बनाने में झंडों का निश्चित तौर पर विशेष महत्व रहा है. गौरतलब है कि अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ माहौल तब बनना शुरू हुआ था, जब स्वतंत्रता संग्राम का पहली बार 1857 में मेरठ से बिगुल फूंका गया था. मेरठ से क्रांति की ऐसी ज्वाला धधकी कि समूचे देश में उसका असर हुआ और एक दिन ऐसा आया कि अंग्रेजी हुकूमत को भारत से जाना ही पड़ा.

देशभक्ति की ज्वाला जागृत करते थे क्रांतिकारी झंडे

मेरठः देश में क्रांति धरा का बिगुल मेरठ से बिगुल फूंका गया था. ब्रिटश हुकूमत के जुल्म और ज्यादतियों से हर तरफ देशवासी परेशान थे, कोई भी आवाज उठती तो उसे कुचल दिया जाता था. इस दौरान जब क्रांति की चिंगारियां धीरे-धीरे शोला बनकर देशभक्तों के सीने में धधक रही थी. बताया जाता है कि उस दौरान पहली बार क्रांतिकारियों ने एक झंडे को अपना झंडा बनाया था. वह एक हरे रंग का झंडा था, जिसके ऊपर कमल था.

आजाद हिंदुस्तान की पहली लड़ाई के लिए यही वो झंडा था, जिसे उस वक्त क्रांतिकारी झंडा कहा गया. मेरठ के संग्रहालय में ऐसे ही कई झंडों का जिक्र मिलता है, जो अंग्रेजी हुकूमत से लोहा लेने के लिए क्रांतिकारियों के द्वारा इस्तेमाल किए गए थे. मेरठ में स्थित स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की सेना के झंडे से लेकर कई झंडों का रिकॉर्ड दर्ज हैं. सबसे पहले बात करते हैं उस झंडे की जिस पर 1857 के दौरान एक छोर पर रोटी तो दूसरे छोर पर कमल का निशान हुआ करता था. इस झंडे का क्रांति से सीधा कनेक्शन था.

इसी तरह गुलामी की जंजीरों से मुक्ति को स्वतंत्रता संग्राम में रोटी और कमल की भी भूमिका बेहद अहम थी. इस बारे में स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय के अधीक्षक पतरु मौर्य ने बताया कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को लेकर स्थापित राजकीय संग्रहालय में 1867 में कमल और रोटी का विवरण दर्ज है. इस झंडे के साथ लोग एकजुट होकर अंग्रेजों के खिलाफ जगह-जगह विद्रोह कर रहे थे.

पतरु मौर्य ने बताया कि उस वक्त कमल और रोटी वितरित किये जाते थे, जो वह रोटी ले लेता था तो माना जाता था कि वह परिवार क्रांतिकारियों के साथ है. वह बताते हैं कि उस वक्त जो क्रांतिकारी संघठित होकर विद्रोह करते उनके पास जो झंडा था उसमें भी कमल और रोटी ही थी. कमल की पंखुड़ियों और रोटी के वितरण से ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लोगों को संगठित करने का ये एक अचूक प्रमुख माध्यम था, क्योंकि भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम में रोटी और कमल के जरिए क्रांति के लिए तैयार किया जा रहा था. इस अभियान को अंग्रेज भी नहीं समझ पाते थे.

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई जब अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध के मैदान में पहुंची थी, तो एक खास झंडा वहां सैनिकों का मनोबल बढ़ा रहा था. उस भगवा रंग के इस झंडे पर हनुमान जी की तश्वीर थी. खासकर बुंदेलखंड में क्रांतिकारियों का जो उस वक्त झंडा था, वह यही झंडा था. इस झंडे पर हनुमान जी का पर्वत हाथ में उठाते हुए चित्र बना होता था. यही झंडा झांसी की रानी का भी था. इसका रिकॉर्ड मेरठ के खास म्यूजियम में दर्ज है. मेरठ के संग्रहालय में क्रांतिकारी झंडों की एक गैलरी में भी इसका उल्लेख है.

चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रमुख प्रोफेसर विघ्नेश से भी ईटीवी भारत ने बातचीत की. उन्होंने बताया कि क्रांति की ज्वाला को चिंगारी और फिर शोला बनाने में झंडों का निश्चित तौर पर विशेष महत्व रहा है. गौरतलब है कि अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ माहौल तब बनना शुरू हुआ था, जब स्वतंत्रता संग्राम का पहली बार 1857 में मेरठ से बिगुल फूंका गया था. मेरठ से क्रांति की ऐसी ज्वाला धधकी कि समूचे देश में उसका असर हुआ और एक दिन ऐसा आया कि अंग्रेजी हुकूमत को भारत से जाना ही पड़ा.

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