मेरठ: मुजफ्फरनगर के 27 साल पुराने रामपुर तिराहा कांड की सुनवाई अब फास्ट ट्रैक कोर्ट में होगी. मुख्य न्यायिक मैजिस्ट्रेट ने इससे जुड़े 4 मुकदमों के ट्रायल के लिए सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक को अधिकृत किया है और पैरवी के लिए दो अधिवक्ताओं की कमिटी भी बनाई गई है. गौरलतब है कि ये आंदोलन उत्तराखंड निर्माण के दौरान हुआ था.
ये था मामला
9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड का गठन हुआ था. इससे पहले 1 अक्टूबर 1994 को अलग राज्य की मांग के लिए देहरादून से आंदोलनकारी दिल्ली जा रहे थे. रात में मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा पर पुलिस ने आंदोलनकारियों को रोक दिया था, उस दिन टकराव हो गया था, जिसमें पुलिस ने फायरिंग कर दी. गोली लगने से 7 आंदोलनकारियों देहरादून निवासी रविंद्र रावत उर्फ गोलू, सतेंद्र चौहान, गिरीश भदरी, राजेश लखेड़ा, ऋषिकेश निवासी सूर्य प्रकाश थपलियाल, ऊखीमठ निवासी अशोक कुमार और भानियावाला निवासी राजेश नेगी की जान चली गई थी.
आंदोलन के दौरान महिलाओं के साथ भी अभद्रता की गई थी. साल 1995 में इस केस की सीबीआई जांच के आदेश दिए गए थे. सीबीआई ने जांच कर एफआईआर लिखाई थी. तत्कालीन डीएम अनंत कुमार सिंह और एसएसपी आरपी सिंह भी एक केस में नामजद किए गए थे.
इस संबंध में 4 मुकदमे सीबीआई बनाम मिलाप सिंह, राधा मोहन द्विवेदी, एसपी मिश्रा और सीबीआई बनाम ब्रजकिशोर सिंह मुजफ्फरनगर में विचाराधीन हैं. एसीजेएम द्वितीय कोर्ट में लंबे वक्त तक इन मुकदमों की सुनवाई नहीं हो सकी है. सीजेएम ने अब चारों केस की सुनवाई के लिए सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक को अधिकृत किया है. इसके लिए वकील अनुराग वर्मा और नैनीताल में प्रैक्टिस कर रहे वकील रजनीश चौहान का पैनल गठित किया गया है.
इस मामले में सीबीआई की ओर से आरोपी बनाए गए तत्कालीन प्रभारी निरीक्षक मोती सिंह, तत्कालीन थानाध्यक्ष राजवीर सिंह और एक अन्य मामले में आरोपियों की मौत होने के कारण खत्म हो गए हैं.
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