मेरठ: देश की आजादी के लिए क्रांति की शुरुआत 1857 में मेरठ से हुई थी. पहली क्रांति का आगाज 10 मई 1857 को हुआ था, हालांकि उस वक्त ये क्रांति पूरी तरह सफल नहीं हो सकी थी, लेकिन यही चिंगारी धीरे-धीरे सुलगती रही और 1947 में देश को आजादी मिली. 1857 की क्रांति की यादें, मेरठ में राजकीय संग्रहालय की फोटो गैलरी को देखकर ताजा हो जाती हैं.
चर्बी लगे कारतूस चलाने से मना करने पर दी गई थी सजा
अंग्रेजों के खिलाफ देशभर में विरोध के स्वर फूट रहे थे. विरोध के स्वर मेरठ में उस वक्त और मुखर हो गए जब यहां देसी पलटन के सैनिकों ने चर्बी लगे कारतूस चलाने से मना कर दिया था. जिसके बाद अंग्रेजी हुकूमत ने उनका कोर्ट मार्शल कर दिया. देसी पलटन के 85 सैनिकों को कोर्ट मार्शल के तहत 10 साल की सजा सुनाई गई. तीन दिन तक कोर्ट मार्शल की सुनवाई चली जिसके बाद उन्हें जेल में बंद कर दिया गया था. बताया जाता है कि किसी फकीर ने देसी पलटन के सैनिकों को चर्बी लगे कारतूसों के बारे में जानकारी देकर क्रांति का बीज बोया था.
सदर बाजार से फूटी क्रांति की पहली चिंगारी
सदर बाजार से 10 मई 1857 क्रांति की जो पहली चिंगारी भड़की वो पूरे देश में फैल गई थी. मेरठ क्रांति की यादें ताजा करने वाले स्थल और अन्य धरोहर आज भी यहां मौजूद हैं. राजकीय स्वतंत्रता संग्रहालय के रिकॉर्ड के अनुसार 10 मई 1857 को शाम 5 बजे जब गिरजाघर का घंटा बजा, तब लोग घरों से निकलकर सड़कों पर आ गए. सदर बाजार में अंग्रेजों की फौज पर लोगों की भीड़ ने हमला बोल दिया. 11 मई की सुबह यहां से भारतीय सैनिक दिल्ली के लिए रवाना हुए और 14 मई को उन्होंने दिल्ली पर हमला बोल दिया.
फोटो गैलरी में मौजूद क्रांति की कहानी
यहां के राजकीय स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय में 1857 की क्रांति को फोटो गैलरी के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है. फोटो गैलरी में दिखाया गया है कि कैसे सैनिकों को बंदी बनाकर कोर्ट मार्शल किया गया और कैसे आक्रोश भड़कने पर उन्होंने अंग्रेजों पर हमला किया गया. मेरठ क्रांति के अलावा देश के अन्य स्थानों पर हुई क्रांति की फोटो भी इस संग्रहालय में मौजूद हैं. यहां एक शहीद स्मारक भी बनाया गया है, जहां हर साल 10 मई को शहीद क्रांतिकारियों को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है.