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मेरठ: होली के अगले दिन लगता है मेला, 'बाबा बिहारी दास' पूरी करते हैं मन्नतें

उत्तर प्रदेश के मेरठ स्थित बाबा बिहारी दास की माढ़ी पर होली के अगले दिन मेले का आयोजन होता है. बुधवार को लगने वाले इस मेले में सुबह से ही श्रद्धालुओं का आगमन होता रहा. बाबा की माढ़ी पर माथा टेकने हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचे.

baba bihari das madhi temple
श्रद्धालुओं ने टेका माथा
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Published : Mar 14, 2020, 6:33 PM IST

मेरठ: बाबा बिहारी दास की माढ़ी पर बुधवार को हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने माथा टेका और मन्नत मांगी. बाबा की माढ़ी पर सुबह से देर शाम तक श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला जारी रहा.

श्रद्धालुओं ने टेका माथा.

गांव की रक्षा करते हैं 'बाबा'
जिले के गांव मटौर में स्थित बाबा बिहारी दास की माढ़ी पर हर साल होली से अगले दिन मेला लगता है. दूर दूर से आए श्रद्धालु बाबा की माढ़ी पर प्रसाद चढ़ाते हैं और माथा टेकते हैं. ग्रामीणों की मान्यता है कि अगर बाबा को याद न किया जाए तो बनते काम भी बिगड़ जाते हैं. बाबा गांव की रक्षा करते हैं, इसीलिए किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने से पहले बाबा को याद किया जाता है.

शुभ कार्य से पहले याद किया जाता है
मेले में पहुंचने वाले श्रद्धालु मन्नत पूरी होने पर प्रसाद चढ़ाते और वितरित करते हैं. ग्रामीण सबसे पहले दुधारू पशु का दूध बाबा की माढी पर ही चढ़ाते हैं. ग्रामीणों का मानना है कि यदि ऐसा नहीं किया जाता तो वह पशु दूध नहीं देता.

इसे भी पढ़ें:- मेरठ: बाजार में बढ़ी मोदी के मुखौटों की मांग, लोगों पर चढ़ा होली का खुमार

मेरठ: बाबा बिहारी दास की माढ़ी पर बुधवार को हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने माथा टेका और मन्नत मांगी. बाबा की माढ़ी पर सुबह से देर शाम तक श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला जारी रहा.

श्रद्धालुओं ने टेका माथा.

गांव की रक्षा करते हैं 'बाबा'
जिले के गांव मटौर में स्थित बाबा बिहारी दास की माढ़ी पर हर साल होली से अगले दिन मेला लगता है. दूर दूर से आए श्रद्धालु बाबा की माढ़ी पर प्रसाद चढ़ाते हैं और माथा टेकते हैं. ग्रामीणों की मान्यता है कि अगर बाबा को याद न किया जाए तो बनते काम भी बिगड़ जाते हैं. बाबा गांव की रक्षा करते हैं, इसीलिए किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने से पहले बाबा को याद किया जाता है.

शुभ कार्य से पहले याद किया जाता है
मेले में पहुंचने वाले श्रद्धालु मन्नत पूरी होने पर प्रसाद चढ़ाते और वितरित करते हैं. ग्रामीण सबसे पहले दुधारू पशु का दूध बाबा की माढी पर ही चढ़ाते हैं. ग्रामीणों का मानना है कि यदि ऐसा नहीं किया जाता तो वह पशु दूध नहीं देता.

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