ETV Bharat / state

गंगा किनारे की महिलाएं अपने हुनर से बनीं आत्मनिर्भर, परिवार चलाने के लिए शुरू किया ये काम

मेरठ में पांडव नगरी के नाम से विख्यात हस्तिनापुर में बिना कोई पैसा लगाएं महिलाएं अब आत्मनिर्भर बनने की राह पर निकल पड़ी हैं और आगे भी बढ़ रही हैं. दरअसल, महिलाएं गंगा के खादर क्षेत्र में आसानी से मिलने वाली सामग्री के इस्तेमाल से मूढा बनाने का कार्य कर रही हैं.

mudda industry
mudda industry
author img

By

Published : Apr 1, 2023, 1:04 PM IST

Updated : Apr 1, 2023, 2:20 PM IST

मेरठ में मूढा उद्योग से महिलाएं बनीं आत्मनिर्भर

मेरठ: जिले की मवाना तहसील के हस्तिनापुर क्षेत्र में ग्रामीण महिलाएं अब घर की चारदीवारी लांघकर आत्मनिर्भर बनने निकल पड़ी हैं. इन महिलाओं ने अब गंगा किनारे खादर क्षेत्र में पाई जाने वाली वनस्पति की मदद से अपना रोजगार शुरू कर दिया है. इस काम को समूह बनाकर महिलाओं ने शुरू किया है. अब तो महिलाएं अपने हुनर से कमाई भी कर रही हैं. बाजारों में भी इनके उत्पादों को पसंद किया जा रहा है.

गंगा के खादर क्षेत्र की रहने वाली महिलाएं स्वयं सहायता समूह के माध्यम से गंगा के खादर में मिलने वाली सामग्री से मूढा तैयार कर रही हैं. खास बात यह है कि यह सभी सामग्री उन्हें खादर क्षेत्र में निशुल्क उपलब्ध हो जाती है. सिर्फ जंगल से एकत्र करके उनके परिवार के लोगों को जरूरत की लकड़ियों, घास-फूंस को एकत्र करके लाना होता है. उसके बाद घर में बैठकर आराम से महिलाएं अलग-अलग तरह के मूढे तैयार करती हैं.

मेरठ
मेरठ में मूढा बनातीं महिलाएं

ईटीवी भारत ने कई ऐसी महिलाओं से बातचीत की, जोकि इस काम में दिलचस्पी ले रही हैं. उनका कहना है कि माल तैयार करने के बाद बिक्री के लिए बाजार की भी कोई समस्या नहीं है. क्योंकि, पौराणिक और ऐतिहासिक नगरी होने की वजह से हस्तिनापुर में काफी संख्या में सैलानी आते हैं. वे उनके द्वारा बनाए गए एक से बढ़कर एक उत्पादों को काफी पसंद भी करते हैं और खरीद कर भी ले जाते हैं. कई महिलाओं ने बताया कि उनके लिए इस काम में नाबार्ड की तरफ से बड़ा सहयोग मिला है. क्योंकि, उन्हें नाबार्ड की तरफ से प्रशिक्षण दिया गया. इसके बाद अब वे आत्मनिर्भर बन रही हैं. यही नहीं अपने घर परिवार को आर्थिक रूप से संपन्न बनाने में सहभागी बन रही हैं.

ईटीवी भारत से नाबार्ड के जिला विकास प्रबंधक रचित उप्पल ने बताया कि कृषि और ग्रामीण विकास बैंक नाबार्ड द्वारा सूक्षम उद्यमिता विकास कार्यक्रम के अंतर्गत हस्तिनापुर के गंगा किनारे बसे चैतावाला गांव और उसके आसपास के गांवों की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकंडा बांस के स्टूल, कुर्सी और मूढे बनाने का प्रशिक्षण दिया गया था. उन्होंने कहा कि शुरुआत में जरूर महिलाओं में कुछ संकोच था. लेकिन, बाद में जब सभी को प्रेरित किया गया तो लोग जुड़ते चले गए.

मेरठ
मेरठ में महिलाओं का हुनर

उन्होंने कहा कि मंशा यही है कि महिलाएं सशक्त होकर आत्मनिर्भर बनें. यही सरकार भी चाहती है. हस्तिनापुर ब्लॉक की रहने वाली राजकुमारी कहती हैं कि अब तक तो वह सिर्फ इतना ही जानती थीं कि बस चूल्हा और चौका ही करना है और वही सब कुछ है. लेकिन, मूढा बनाने का प्रशिक्षण लेने के बाद उन्हें रोजगार भी मिल गया है और कमाई भी होने लगी है, जिससे वह बेहद खुश हैं.

गंगा खादर क्षेत्र के चेतावाला गांव में मूढ़ा बनाने के काम में जुटीं पिंकी बताती हैं कि पहले उनके पास कोई काम ही नहीं था. सिर्फ खेती पर ही परिवार निर्भर था. खादर होने की वजह से गंगा में अगर जलस्तर बढ़ जाए तो फसल भी बर्बाद होने का खतरा रहता था. अब जबसे उन्होंने बांस के मूढे समेत अन्य उत्पाद बनाने शुरू किए हैं तो उन्हें भी खुशी होती है कि अब वह परिवार के लिए कुछ कर पा रही हैं.

नाबार्ड के जिला विकास प्रबंधक रचित उप्पल ने बताया कि हस्तिनापुर के गंगा किनारे बसे गांवों में स्वयं सहायता समूह बनवाए गए. उसके बाद समूह की महिलाओं को ट्रेनिंग दी गई. इनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो, यही सोचकर इस योजना पर कार्य किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि गंगा किनारे बसे गांवों का चयन इसीलिए किया गया. क्योंकि, यहां पर गंगा किनारे आसपास जो पेड़ लगे हैं, उनके बांस और लकड़ी से यह सामान तैयार किया जा रहा है. यहां महिलाओं को कच्चा माल आसानी से उपलब्ध हो जाता है, जिससे वे ट्रेनिंग ले रही हैं और आगे अपना रोजगार स्थापित कर आत्मनिर्भर बनने की ओर बढ़ रही हैं.

यह भी पढ़ें: आगरा में इंटरनेशनल पोटेटो सेंटर की यूनिट का किसान कर रहे थे इंतजार, सरकार ने किया निराश


मेरठ में मूढा उद्योग से महिलाएं बनीं आत्मनिर्भर

मेरठ: जिले की मवाना तहसील के हस्तिनापुर क्षेत्र में ग्रामीण महिलाएं अब घर की चारदीवारी लांघकर आत्मनिर्भर बनने निकल पड़ी हैं. इन महिलाओं ने अब गंगा किनारे खादर क्षेत्र में पाई जाने वाली वनस्पति की मदद से अपना रोजगार शुरू कर दिया है. इस काम को समूह बनाकर महिलाओं ने शुरू किया है. अब तो महिलाएं अपने हुनर से कमाई भी कर रही हैं. बाजारों में भी इनके उत्पादों को पसंद किया जा रहा है.

गंगा के खादर क्षेत्र की रहने वाली महिलाएं स्वयं सहायता समूह के माध्यम से गंगा के खादर में मिलने वाली सामग्री से मूढा तैयार कर रही हैं. खास बात यह है कि यह सभी सामग्री उन्हें खादर क्षेत्र में निशुल्क उपलब्ध हो जाती है. सिर्फ जंगल से एकत्र करके उनके परिवार के लोगों को जरूरत की लकड़ियों, घास-फूंस को एकत्र करके लाना होता है. उसके बाद घर में बैठकर आराम से महिलाएं अलग-अलग तरह के मूढे तैयार करती हैं.

मेरठ
मेरठ में मूढा बनातीं महिलाएं

ईटीवी भारत ने कई ऐसी महिलाओं से बातचीत की, जोकि इस काम में दिलचस्पी ले रही हैं. उनका कहना है कि माल तैयार करने के बाद बिक्री के लिए बाजार की भी कोई समस्या नहीं है. क्योंकि, पौराणिक और ऐतिहासिक नगरी होने की वजह से हस्तिनापुर में काफी संख्या में सैलानी आते हैं. वे उनके द्वारा बनाए गए एक से बढ़कर एक उत्पादों को काफी पसंद भी करते हैं और खरीद कर भी ले जाते हैं. कई महिलाओं ने बताया कि उनके लिए इस काम में नाबार्ड की तरफ से बड़ा सहयोग मिला है. क्योंकि, उन्हें नाबार्ड की तरफ से प्रशिक्षण दिया गया. इसके बाद अब वे आत्मनिर्भर बन रही हैं. यही नहीं अपने घर परिवार को आर्थिक रूप से संपन्न बनाने में सहभागी बन रही हैं.

ईटीवी भारत से नाबार्ड के जिला विकास प्रबंधक रचित उप्पल ने बताया कि कृषि और ग्रामीण विकास बैंक नाबार्ड द्वारा सूक्षम उद्यमिता विकास कार्यक्रम के अंतर्गत हस्तिनापुर के गंगा किनारे बसे चैतावाला गांव और उसके आसपास के गांवों की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकंडा बांस के स्टूल, कुर्सी और मूढे बनाने का प्रशिक्षण दिया गया था. उन्होंने कहा कि शुरुआत में जरूर महिलाओं में कुछ संकोच था. लेकिन, बाद में जब सभी को प्रेरित किया गया तो लोग जुड़ते चले गए.

मेरठ
मेरठ में महिलाओं का हुनर

उन्होंने कहा कि मंशा यही है कि महिलाएं सशक्त होकर आत्मनिर्भर बनें. यही सरकार भी चाहती है. हस्तिनापुर ब्लॉक की रहने वाली राजकुमारी कहती हैं कि अब तक तो वह सिर्फ इतना ही जानती थीं कि बस चूल्हा और चौका ही करना है और वही सब कुछ है. लेकिन, मूढा बनाने का प्रशिक्षण लेने के बाद उन्हें रोजगार भी मिल गया है और कमाई भी होने लगी है, जिससे वह बेहद खुश हैं.

गंगा खादर क्षेत्र के चेतावाला गांव में मूढ़ा बनाने के काम में जुटीं पिंकी बताती हैं कि पहले उनके पास कोई काम ही नहीं था. सिर्फ खेती पर ही परिवार निर्भर था. खादर होने की वजह से गंगा में अगर जलस्तर बढ़ जाए तो फसल भी बर्बाद होने का खतरा रहता था. अब जबसे उन्होंने बांस के मूढे समेत अन्य उत्पाद बनाने शुरू किए हैं तो उन्हें भी खुशी होती है कि अब वह परिवार के लिए कुछ कर पा रही हैं.

नाबार्ड के जिला विकास प्रबंधक रचित उप्पल ने बताया कि हस्तिनापुर के गंगा किनारे बसे गांवों में स्वयं सहायता समूह बनवाए गए. उसके बाद समूह की महिलाओं को ट्रेनिंग दी गई. इनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो, यही सोचकर इस योजना पर कार्य किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि गंगा किनारे बसे गांवों का चयन इसीलिए किया गया. क्योंकि, यहां पर गंगा किनारे आसपास जो पेड़ लगे हैं, उनके बांस और लकड़ी से यह सामान तैयार किया जा रहा है. यहां महिलाओं को कच्चा माल आसानी से उपलब्ध हो जाता है, जिससे वे ट्रेनिंग ले रही हैं और आगे अपना रोजगार स्थापित कर आत्मनिर्भर बनने की ओर बढ़ रही हैं.

यह भी पढ़ें: आगरा में इंटरनेशनल पोटेटो सेंटर की यूनिट का किसान कर रहे थे इंतजार, सरकार ने किया निराश


Last Updated : Apr 1, 2023, 2:20 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.