मेरठ: यूं तो दोस्ती को लेकर तमाम फिल्में बनी हैं और ऐसी फिल्में पसंद भी समाज में खूब की गई हैं. शोले फ़िल्म में जय-वीरू की जोड़ी सभी को याद है. ऐसी ही एक जोड़ी मेरठ में भी है. इस जोड़ी ने एक नई शुरुआत मेरठ में की है. दोनों दोस्तों की उम्र 60 के पार है और वर्षों से उनकी दोस्ती है. उसी दोस्ती को बरकरार रखने के लिए उन्होंने ऐसा काम कर दिया कि अब दोस्ती की मिशाल तो पेश कर ही रहे हैं, साथ ही युवाओं को रोजगार भी दे रहे हैं.
दरअसल, मेरठ के रहने वाले सुशील गुप्ता और मदन मोहन कपिल दोनों ही काफी समय से अच्छे दोस्त हैं. जिस उम्र में लोगों का रिटायरमेंट नौकरी से हो जाता है, उस उम्र में दोनों दोस्तों ने एक ढाबा खोला है. इतना ही नहीं जो ढाबा दोनों ने मिलकर दोस्ती की बुनियाद पर शुरू किया है, उसको दोनों दोस्त बेहद ही सेवाभाव के इरादे के साथ चला रहे हैं.
UP 15 नाम लोगों को रहा लुभा
दोनों दोस्तों की जोड़ी की चर्चा ढाबे के नाम को लेकर भी हो रही है. क्योंकि, ढाबे का नाम यूपी 15 रखा गया है. बता दें कि यूपी 15 मेरठ का आरटीओ कोड़ है, जोकि जिले के वाहनों की पहचान कराता है. ढाबे की शुरुआत करने वाले मदन मोहन कपिल बताते हैं कि उनकी और सुशील गुप्ता की बहुत गहरी दोस्ती है. वह बताते हैं कि दोनों मित्रों ने मिलकर यह योजना बनाई थी कि कुछ ऐसा किया जाए जिससे पब्लिक को सहयोग मिले. दोनों एक साथ रहें और लोगों को नौकरी पेशा भी दे सकें. साथ ही खुद को भी काम मिल जाए. इसके बाद यही निर्णय लिया कि एक ढाबा चलाया जाए. मेरठ के वाहनों की पहचान कराने वाले यूपी 15 नंबर के नाम से ही शुरुआत की गई. दोनों दोस्त बताते हैं कि नो प्रॉफिट नो लॉस पर वह लोगों के लिए भोजन का इंतजाम करते हैं.
ढाबे में मिलती है मेरठ के हर प्रमुख स्थान की झलक
सुशील गुप्ता कहते हैं कि वह और मदन मोहन कपिल दोनों अच्छे दोस्त हैं. इस दोस्ती के साथ अपने दोस्त का बेहद सम्मान भी करते हैं. वह बताते हैं कि दोनों दोस्तों ने ढाबे को बेहद ही अलग लुक भी देने की कोशिश की है. वह बताते हैं कि क्योंकि मेरठ के ऐतिहासिक, पौराणिक और धार्मिक महत्व भी हैं तो अपने ढाबे को उन्होंने क्रान्तिधरा मेरठ से जुड़े मुख्य स्थानों की तश्वीरों से सजाया है, ताकि यहां जो भी आएं उन्हें मेरठ को करीब से समझने और जानने का भी अवसर मिल जाए.
कई परिवारों के लिए रोजी-रोटी का कर दिया इंतजाम
मेरठ से जुड़ी हर छोटी बड़ी जानकारी इस ढाबे की दीवारें बयां करती हैं. मदन मोहन कपिल बताते हैं कि उन्होंने अपने ढाबे में करीब 90 युवाओं को तो स्टाफ के तौर पर रखकर अलग-अलग जिम्मेदारी देकर नौकरी दी है. वहीं, इनके अलावा लगभग सवा सौ लोगों को अप्रत्यक्ष तौर पर काम दिया है. वह कहते हैं कि उन्हें खुशी भी है कि दोनों दोस्त करीब दो सौ से सवा दो सौ लोगों को इस ढाबे के संचालन से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर काम दे रहे हैं.
मेरठ है टूरिस्ट के लिए सेंटर पॉइंट
सुशील गुप्ता बताते हैं कि क्योंकि मेरठ यात्रियों ले लिए एक ऐसा केंद्र है, जहां से दिल्ली की तरफ से आने वाले यात्री या फिर दूसरी तरफ हरिद्वार, ऋषिकेश, चारधाम की यात्रा पर जाने वाले टूरिस्ट बहुत गुजरते हैं. ऐसे में तीर्थ यात्रियों की सेवा भी हो सकती है और लोगों को रोजगार भी दिया जा सकता है. देश की राजधानी दिल्ली से मेरठ की सीमा में प्रवेश करते ही सबसे पहले दो दोस्तों की दोस्ती के गवाह के तौर पर स्थापित ढाबा अपने नाम की वजह से बेहद ही पॉपुलर होता जा रहा है. दोनों दोस्तों का कहना है कि उन्होंने इसकी शुरुआत से पहले मेरठ में हाईवे पर पड़ने वाले सभी ढाबों, रेस्टोरेंट और होटल्स के मेन्यू से लेकर सुविधाएं, व्यवस्थाएं परखीं और उसके बाद उन्होंने यह खास शुरुआत की.
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