मेरठ: जिले के सदर क्षेत्र के बिल्वेश्वर शिव मंदिर (bilveshwar shiva temple) की त्रेता युग से अब तक भी अपनी-अलग पहचान और प्रसिद्धि है. मेरठ की एक पहचान ये भी है कि लंकापति रावण की ससुराल भी यहां है. उस वक्त मयदानव की पुत्री मंदोदरी इसी धर्मस्थल में आकर भगवान शिव की आराधना करती थी. इस बारे में मन्दिर से जुड़े पंडित व विद्वान कहते हैं कि भगवान शिव से मंदोदरी ने इच्छा जताई थी कि वो चाहती थीं कि उनका पति धरती पर सबसे अधिक शक्तिशाली व विद्वान हो. मन्दिर के पुजारी ने बताया कि मंदोदरी ने यहां सच्चे मन से भगवान भोलेनाथ की पूजा की थी, जिसके बाद उन्हें पति के रूप में रावण मिले थे.
बता दें कि प्राचीन काल में मेरठ के नाम मयदानव का खेड़ा हुआ करता था. मयदानव की पुत्री मंदोदरी भगवान शिव की भक्त थीं. पुजारी ने बताया कि इस धर्मस्थल में खासतौर से देखा जा सकता है कि यहां शिवलिंग के अलावा सिर्फ माता पार्वर्ती की मूर्ति है व गणेश जी स्थापित हैं, जबकि आमतौर पर नन्दी जी भी मन्दिरों में होते हैं.
पुजारी पंडित हरिश्चंद्र जोशी ने बताया कि उनके पूर्वजों के बाद अब वो यहां अपनी सेवा दे रहे हैं. उन्होंने बताया कि भगवान बिल्वेश्वरनाथ धर्मस्थल सिद्ध पीठ है. यहां मंदोदरी ने 40 दिन तक विशेष पूजा की थी. अगर कोई लगातार 40 दिन तक यहां आकर दीपक जलाया जाय और स्वयंभू शिवलिंग पर जलाभिषेक करें, तो उसकी हर मुराद यहां अवश्य पूर्ण होती है.
पुजारी हरिश्चंद जोशी ने बताया कि यहां भगवान शिव भक्तों से बहुत जल्दी कनेक्ट हो जाते हैं. यह मेरठ का सबसे प्राचीन शिवालय बिल्वेश्वर धाम है. कहा जाता है कि सबसे पहली भेंट भी रावण और मंदोदरी की इसी जगह हुई थी. 40 दिन की भगवान शिव की आराधना के बाद लंकापति रावण मंदोदरी को पति के रूप में प्राप्त हुए थे.
पुजारी ने बताया कि आमतौर पर लोग मन्दिरों में सीधे दौड़े चले जाते हैं, लेकिन बिल्वेश्वर सिद्ध पीठ पर अगर कोई आता है, तो उसे झुकना ही होता है. मन्दिर का प्राचीन स्वरूप आज भी बरकरार है. हालांकि समय-समय पर कुछ बदलाव या कार्य अवश्य यहां होते रहे हैं.
इस बारे में मन्दिर में आने वाले लोगों का भी कहना है कि जो भी उन्होंने प्रभु से मांगा उनकी हर मुराद पूरी हुई है. नैंसी पांडेय पिछले एक साल से मेरठ में रह रही हैं. वो कहती हैं कि उन्हें भी जब भगवान स्वयंभू शिव के बिल्वेश्वर सिद्ध पीठ की जानकारी हुई, तो उन्होंने भी यहां आना शुरू किया. वो कहती हैं कि यहां के बारे में बहुत सुना है. वो कहती हैं कि जब भी समय मिलता है, वो पूजा-अर्चना करने यहां आती हैं.
शिल्पी गोयल कहती हैं कि वो खुद इस बात की गवाही हैं कि यहां जो मांगा, वो मिला. भगवान से अपने पसन्द से शादी करने की मुराद लेकर भगवान की पूजा की थी. भगवान की कृपा से उन्हें मनचाहा वर प्राप्त हुआ.
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