मेरठ : अगले साल लोकसभा चुनाव है. इसके लिए सभी राजनीतिक दलों ने तैयारियां शुरू कर दी हैं. बीजेपी भी कमर कसे हुए है. वेस्टर्न यूपी की बात करें तो यहां पूर्व में भी भाजपा विपक्ष की एकजुटता के सामने करिश्मा नहीं कर पाई थी. ऐसे में इस बार बीजेपी के सामने कई चुनौतियां हैं. पश्चिम में फतह पाना भारतीय जनता पार्टी के लिए आसान नहीं होगा. ईटीवी भारत की टीम ने इस बारे में कई राजनीतिक विश्लेषकों से बातचीत की. इस पर उन्होंने खुलकर अपनी बात रखी. पढ़िए रिपोर्ट...
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक शादाब रिजवी का कहना है कि 2014 से 2019 और यूपी के 2022 के विधानसभा चुनाव तक राजनीति में काफी परिवर्तन हुआ है. पुराने आंकड़ों और तथ्यों के आधार पर देख सकते हैं कि वेस्टर्न यूपी में बीजेपी कमजोर हुई है. बीजेपी का 2014 में लोकसभा चुनावों में यूपी में जो प्रदर्शन था, उस करिश्मे को पार्टी 2019 में नहीं कर पाई. 2014 लोकसभा चुनाव में जिस बीजेपी ने मोदी लहर में वेस्टर्न उप्र की सभी 14 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि 2019 में सपा-बसपा और रालोद का गठबंधन था. इस तिकड़ी ने तब भाजपा को बिजनौर, नगीना, सहारनपुर, मुरादाबाद, संभल, अमरोहा एवं रामपुर में रोक दिया था. मेरठ समेत और भी कई ऐसी लोकसभा सीट थीं, जहां विपक्षी एकजुटता के सामने बीजेपी के प्रत्याशियों के माथे पर तब तक चिंता की लकीरें थीं, जब तक नतीजे नहीं घोषित हुए.
विपक्षी एकजुटता से गिर रहा बीजेपी का ग्राफ : 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में भी सपा-रालोद गठबंधन ने यहां भाजपा को कड़ी चुनौती दी. कुछ माह पूर्व हुए निकाय चुनावों में बीजेपी भले ही अपने सभी मेयर जिताने में कामयाब रही, वहीं रालोद की भी शक्ति यहां बढ़ गई है. यही वजह है कि निकाय चुनाव में गठबंधन की एकजुटता छिन्न-भिन्न होने के बावजूद रालोद अपने प्रदर्शन से यहां संतुष्ट है. अब बीजेपी 2024 में होने वाले चुनावों को लेकर पार्टी संगठन को मजबूत करने के लिए काम कर रही है. पश्चिम यूपी में अपनी कमजोरी दूर करने के लिए पार्टी के सामने बड़ी चुनौती है. हालांकि यहां जातीय समीकरण को साधते हुए पार्टी ने प्रदेश बीजेपी की कमान तक पार्टी के जाट लीडर भूपेंद्र चौधरी को सौंपी हुई है.
जयंत के कई निर्णयों की हो रहीं चर्चाएं : शादाब रिजवी का मानना है उन्हें नहीं लगता कि बीजेपी के साथ रालोद अध्यक्ष जयंत जा सकते हैं, हालांकि वह कहते हैं कि कुछ बातें ऐसी भी हो रही हैं जो कि चर्चा की वजह बन जाती हैं. शादाब रिजवी ने बताया कि ये देखा गया है कि निकाय चुनाव में जयन्त ने प्रचार नहीं किया. बिहार में विपक्षी दलों की बैठक में भी वह नहीं शामिल हुए. हालांकि पत्र लिखकर अपने न पहुंचने की वजह उन्होंने साझा की थी. सियासी गलियारों में चर्चाएं तो यहां तक भी हैं कि भाजपा शीघ्र मंत्रिमंडल का विस्तार करने जा रही है, उसमें रालोद चीफ को मौका मिल सकता है. शादाब रिजवी का कहना है कि वेस्टर्न में रालोद के अलावा कोई दूसरी पार्टी बीजेपी को मजबूत नहीं कर सकती है.
बीजेपी के साथ जाने का कोई सवाल ही नहीं : राष्ट्रीय लोकदल की राष्ट्रीय प्रवक्ता मनीषा अहलावत का कहना है कि रालोद चुनावों की तैयारी कर रही है. कुछ अफवाहें चल रहीं हैं कि हम बीजेपी के साथ जा रहे हैं. मनीषा अहलावत का कहना है कि जयन्त चौधरी पश्चिमी यूपी में विपक्ष का एक मजबूत चेहरा बनकर उतर रहे हैं. बीजेपी में जाने का कोई सवाल ही नहीं है. विपक्ष का जो गठबंधन है हम उसमें सभी के साथ हैं. इस महीने जो विपक्ष की बैठक होगी उसमें जयन्त चौधरी शमिल होंगे.
महाराष्ट्र घटना के बाद क्षेत्रीय दल टेंशन में : वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हरिशंकर जोशी का कहना है कि महाराष्ट्र में जो अभी हुआ उससे अन्य राज्यों में बीजेपी की विचारधारा से अलग पार्टियों को भी टूट-फूट होने का डर सता रहा है. वरिष्ठ पत्रकार हरिशंकर जोशी कहते हैं कि हाल ही में बीजेपी के सहयोगी आरपीआई के नेता रामदास अठावले का रालोद अध्यक्ष जयन्त चौधरी के बारे में दिया गया बयान और महाराष्ट्र में अजित पंवार का स्टैंड, सुभासपा चीफ ओपी राजभर की बीजेपी से नजदीकी और उसके साथ ही सपा के विधायक नेताओं का बीजेपी में आने के लिए आतुर होने वाला बयान देना कि अखिलेश यादव की पार्टी के नेता बीजेपी के सम्पर्क में हैं, वे लोकसभा चुनाव का बीजेपी से टिकट पाने के लिए आतुर हैं. यह क्षेत्रीय दलों को कमजोर कर सकती है. वह कहते हैं कि निश्चित तौर पर जितना मजबूत संगठन बीजेपी का है, इतना मजबूत संगठन इस वक्त किसी पार्टी का नहीं है. वह मानते हैं कि बीजेपी के लिए पश्चिमी यूपी में राह आसान नहीं है. उन्हें नहीं लगता कि रालोद मुखिया बीजेपी के साथ कदमताल करना चाहेंगे. हालांकि वह कहते हैं कि सपा-रालोद का गठबंधन बरकरार रहेगा या और मजबूत होगा, यह कहना अभी जल्दबाजी होगी.
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