मेरठ: 2024 के चुनाव को लेकर लगातार देखा जा रहा है कि तमाम राजनीतिक दल पूरी तरह से सक्रिय हो चुके हैं. यूपी में तो इस वक्त भारतीय जनता पार्टी ने अपने नए नेताओं की टीम को अलग-अलग जिलों की जिम्मेदारी दे दी है. वहीं, कांग्रेस ने भी पार्टी के प्रदेश के मुखिया को हाल ही में बदलकर अजय राय को पार्टी की कमान सौंप दी है. पश्चिमी यूपी में ताकतवर मानी जाने वाली राष्ट्रीय लोकदल ने भी फिर से भाईचारा सम्मेलनों के जरिए जनता के बीच जाने की योजना तैयार की है.
यूपी की सियासत में ऐसी कई क्षेत्रीय पार्टियां हैं, जोकि बड़े दलों को अपनी तरफ खूब आकर्षित करती हैं. पश्चिमी यूपी में राष्ट्रीय लोकदल को तमाम दल मजबूत मानते हैं. इस बारे में राजनीतिक विश्लेषक सादाब रिज़वी कहते हैं कि रालोद भाईचारा सम्मेलन ऐसे वक़्त पर कर रहा है, जब 2023 का चुनाव मुहाने पर है. वह कहते हैं कि 2013 में यूपी दंगों के बाद सामाजिक ताना-बाना जो टूट गया था, उसे मजबूत करने की राष्ट्रीय लोकदल के तत्कालीन अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह ने काफी कौशिश की थी. भाईचारा अभियान चलाया था. भाईचारा सम्मेलन किए थे. लोगों को मिलाया था. उसी क्षेत्र में जहां हिंदू-मुस्लिम के बीच खाई पैदा हो गई थी, उन्होंने वहां रातों को रुककर भी एकजुट किया था.
वह कहते हैं कि इस हिंसा के बाद सियासी तौर पर राष्ट्रीय लोकदल बहुत पीछे चला गया था. लेकिन, उसी भाईचारे के चलते वह अब बहुत आगे आ गया है. वरिष्ठ पत्रकार सादाब रिज़वी कहते हैं कि जयंत चौधरी यह चाहते हैं कि वेस्ट यूपी में जो ताना-बाना 2013 से पहले से था, वही सामाजिक ताना-बाना फिर एक बार मजबूत हो. वह कहते हैं कि इसके पीछे एक वजह यह भी है कि अभी रालोद इंडिया गठबंधन का सहयोगी है. सपा और आजाद समाज पार्टी से रालोद का गठबंधन है. ऐसे में रालोद 12 लोकसभा सीटों पर तो पहले ही अपनी दावेदारी दिखा ही रहा है. उन्हें लगता है कि भाईचारा सम्मेलनों के माध्यम से रालोद पश्चिम में हो सकता है कि और भी ज्यादा सीटें अपने लिए मांग करे.
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हरिशंकर जोशी कहते हैं कि यह सही है कि 2013 में जो यूपी में दंगे हुए उसके बाद तत्कालीन सरकारों को उसका खामियाजा उठाना पड़ा और जो सामाजिक हिंदू-मुस्लिम भाईचारा कायम था वह बिखर गया था. जाट भी जो रालोद के कोर वोटर कहे जाते थे, वह भी बीजेपी के साथ चले गए थे. इससे बीजेपी को यूपी वेस्ट में भी बहुत फायदा हुआ. हरिशंकर जोशी कहते हैं कि भले ही 2019 में बीजेपी ने फिर से यूपी में सर्वाधिक सीटें क्यों न पाई हो. लेकिन, पश्चिमी यूपी में तब के विपक्षी गठबंधन के सामने आने से 9 लोकसभा सीटें भाजपा की कम हुई थीं. उसके बाद पश्चिमी यूपी में राष्ट्रीय लोकदल भी अपनी खोई हुई सियासी जमीन फिर से हासिल करता आ रहा है.
वरिष्ठ पत्रकार हरिशंकर जोशी कहते हैं कि एक कहावत है कि जिसके साथ जाट उसके राजनीति में ठाठ. जयंत चौधरी को बीजेपी बार-बार अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करती रही है. वह तो यह भी दावा करते हैं कि यह कोशिशें अभी भी जारी है. हरिशंकर जोशी कहते हैं कि तमाम दलों को यह मालूम है कि पश्चिमी यूपी में रालोद महत्वपूर्ण दल है. जयंत को यह मालूम है कि उनकी स्थायी जीत का जो रास्ता है, वह भाईचारे से होकर गुजरता है. इसीलिए जयंत अपने पिता स्वर्गीय अजित सिंह (छोटे चौधरी के नाम से प्रसिद्ध) के नक्शेकदम पर चलते हुए भाईचारा सम्मेलनों की शुरुआत फिर से कर रहे हैं. वरिष्ठ पत्रकार मानते हैं कि अगर रालोद ने जो भाईचारा सम्मेलन करने की योजना बनाई है, इसमें जाट, मुस्लिम और जाटव अगर एकजुट हो जाते हैं तो फिर ये पश्चिम में बेहद मजबूत विपक्ष हो जाएंगे.
रालोद के राष्ट्रीय प्रवक्ता रोहित जाखड़ का कहना है कि राष्ट्रीय लोकदल युवाओं से लेकर किसानों, कामगारों के मुद्दों पर लगातार जनता की आवाज बनकर उनकी आवाज उठा रहा है. ऐसे में पार्टी की विचारधारा से लगातार हर वर्ग जुड़ रहा है. वह कहते हैं कि पश्चिम में हिंदू हों या मुस्लिम सभी को साथ लेकर पार्टी मुखिया भाईचारा कायम करने में यकीन रखते हैं.
रालोद प्रवक्ता आतिर रिजवी कहते हैं कि वह भाईचारा कायम रखने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी लगातार जनता के बीच शहर से लेकर गांवों तक में जाकर उनकी जरूरतों और समस्याओं को समझकर उनके साथ खड़े हैं. उनकी आवाज बन रहे हैं. भाईचारा सम्मेलनों के माध्यम से न सिर्फ पार्टी और मजबूत होगी, बल्कि 2024 में रालोद बड़ी ताकत बनकर गठबंधन में उभरेगी. गौरतलब है कि रालोद की तरफ अगर पश्चिम में तमाम दल देख रहे हैं तो इसकी वजह यही है कि इस वक़्त वही पश्चिम में एक ऐसे नेता के तौर पर दिखाई देते हैं, जिन्हें मिस्टर भरोसेमंद और खेवनहार माना जा रहा है.
यह भी पढ़ें: कांग्रेस नेता प्रमोद कृष्णम बोले, बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर को अपना नाम "चिरकुट शेखर" रख लेना चाहिए