मेरठ : मेडिकल कॉलेज में एक ऐसा वार्ड भी है जहां उपचाराधीन मरीजों का नामकरण करता है मेडिकल कॉलेज का स्टाफ. सुनने में जरूर अटपटा सा लगेगा, लेकिन यूपी वेस्ट के मेरठ में स्थित लाला लाजपत राय मेडिकल कॉलेज के एक वार्ड में आने वाले मरीजों का नामकरण वहां के स्टाफ के द्वारा ही किया जाता है. जी हां उस वार्ड में आने मरीजों को सेवा देने वाला स्टाफ ही उनका अपनी सहूलियत के हिसाब से मरीजों का नामकरण करता है. इतना ही नहीं मरीजों के नाम भी ऐसे कि सुनने वाला भी खुश हो जाए. ऐसा ही करीब एक दशक से होता आ रहा है. ऐसा होता है मेडिकल कॉलेज के लावारिश वार्ड में.
आखिर ऐसा क्यों यहां करना पड़ता है. इस बारे में मेडिकल कॉलेज के मीडिया प्रभारी वीडी पांडेय ने कि दरअसल जो भी मरीज मेडिकल कॉलेज आते हैं. उनमें कई बार ऐसे भी मरीज मेडिकल कॉलेज में आते हैं जो बेहद गंभीर हालात में होते हैं और उनके साथ भी कोई नहीं होता. वह मरीज अपनी पहचान तक नहीं बता पाते. भले ही कारण जो भी रहें, जबकि कुछ लोग तो ऐसे होते हैं जिन्हें खुद का होश तक भी नहीं रहता. वह बताते हैं कि क्योंकि ऐसे सभी मरीज जिनका एड्रेस कन्फर्म नहीं हो पाता है उन सभी को लावारिश वार्ड में एडमिट कर उपचार किया जाता है. इन मरीज़ों को समय समय पर जो भी आवश्यकता पड़ती है. उसके लिए यह भी जरूरी है कि उनकी एक पहचान हो. स्टाफ अपनी सहूलियत के लिए ऐसे मरीजों की पहचान खुद से रखने और उनकी केयर करने के लिए खुद से ही उनके नाम रख लेते हैं.
सीनियर नर्स तारावती देवी बताती हैं कि कोई भी नाम बहुत सोच समझकर देते हैं. उन्होंने बताया कि एक मरीज पकौड़ी पकौड़ी बहुत बोलता है तो उसे पकौड़ी नाम दे दिया है. इसी तरह एक मरीज बांग्ला बोलता है तो उसे बंगाली. एक मरीज लड्डू लड्डू बोलते हैं तो उन्हें लडडू के नाम से ही पहचाना जाता है. ऐसे ही सभी को कुछ न कुछ पहचान देते हुए नामकरण किया गया है. वह कहती हैं कि इससे मेडिकल स्टाफ उपचार और सेवा करने में आसानी होती है. बहरहाल गंभीर और चिंता वाली बात यह है कि कई मरीज तो पिछले पांच साल से यहीं हैं. उनकी देखभाल मेडिकल स्टाफ, नर्स, वार्ड बॉय करते आ रहे हैं. कोई इन लोगों की सुध लेने नहीं आता. मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य आरसी गुप्ता बताते हैं कि लावारिश वार्ड भर्ती मरीजों की तीमारदारी में और उपचार में कहीं कोई कमी न रहे इस पर खास ध्यान वहां तैनात स्टाफ देता है. इसके लिए उन्हें 26 जनवरी पर सम्मानित भी किया गया. इस वार्ड में कई लोग ऐसे भी हैं जिन्हें देखकर लगता है कि जब वे अपने परिवार पर बोझ हो गए होंगे तो शायद अपने ही उन्हें गुमनामी की जिंदगी बसर करने को रास्तों में दर दर की ठोकरें खाने को भटकने को छोड़कर चले गए होंगे.