मेरठ: कई मुस्लिम महिलाओं ने इस बार करवाचौथ का व्रत रखा तो लोगों ने इसे गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक बताते हुए तारीफ की. लेकिन, कई इस्लामिक धर्मगुरुओं को मुस्लिम महिलाओं का करवाचौथ मनाना पसंद नहीं आया. मुस्लिम धर्मगुरुओं का कहना है कि यह काम इस्लाम के अनुसार जायज नहीं. मुस्लिम धर्म को मानने वालों को गैर इस्लामिक त्योहारों में शामिल नहीं होना चाहिए.
मुस्लिम महिलाओं ने रखा था व्रत
गौरतलब है कि पति-पत्नी के प्रेम का प्रतीक करवाचौथ बुधवार को पूरे रीति-रिवाज से लोगों ने मनाया. इस बार उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मुस्लिम महिला गुलनाज अंजुम खान और सहारनपुर की सुनैना आलम ने भी करवाचौथ का व्रत रखा. उन्होंने पति के दीर्घायु होने की कामना की और चांद दिखने पर व्रत खोला. इसे तमाम लोगों ने हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल बताकर तारीफ की थी.
मुस्लिम धर्मगुरुओं ने कहा गैर इस्लामिक
मुस्लिम महिलाओं के करवाचौथ का व्रत रखने पर इस्लामिक धर्म गुरुओं ने नाराजगी जताई है. देवबंदी उलेमा मुफ्ती असद कासमी ने कहा कि इस्लाम को मानने वाले केवल रमजान माह में रोजे रखते हैं, वो भी इस्लामी रीति रिवाज के हिसाब से रखे जाते हैं. दूसरे धर्मों के त्योहारों को मनाना और व्रत रखना इस्लाम में जायज नहीं है. साथ ही उन्होंने कहा कि हर मुसलमान को इस्लामिक जानकारी है. इस्लाम इसके लिए किसी को बाध्य नहीं करता, बावजूद इसके कोई मुसलमान अपनी मनमर्जी से गैर इस्लामिक क्रिया करता है तो वह उनकी अपनी आजादी है. वहीं मौलाना कारी इशहाक गोरा ने बताया कि सभी धर्मों के अपने अपने कायदे कानून होते हैं. करवाचौथ का त्योहार इस्लाम में नहीं मनाया जाता. जो लोग इसको अपनाते हैं या अपना रहे हैं उनका इस्लाम से कोई ताल्लुक नहीं है.