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महिलाएं खेतों में संभाल रहीं मोर्चा, जरूरत पड़ने पर दिल्ली के लिए करेंगी कूच - किसान घर की महिलाएं खेतों में मेरठ

केंद्र की मोदी सरकार द्वारा कृषि संबंधित तीन विधेयक बिल पारित करने के बाद जहां देश का किसान आंदोलन करके दिल्ली में अपने हक की लड़ाई लड़ रहा है. वहीं, बर्बाद होती फसल को देखकर घर की महिलाओं और बच्चों ने खेती-बाड़ी का मोर्चा संभाल लिया है.

महिलाओं और बेटियों ने संभाली खेतीबाड़ी
महिलाओं और बेटियों ने संभाली खेतीबाड़ी
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Published : Dec 6, 2020, 6:29 PM IST

मेरठ: केंद्र की मोदी सरकार द्वारा कृषि संबंधित तीन विधेयक बिल पारित करने के बाद जहां देश का किसान आंदोलन करके दिल्ली में अपने हक की लड़ाई लड़ रहा है. वहीं, बर्बाद होती फसल को देखकर घर की महिलाओं और बच्चों ने खेती-बाड़ी का मोर्चा संभाल लिया है. बेटियां न सिर्फ फावड़ा चला रही हैं, बल्कि ट्रैक्टर चलाकर खेतों की जुताई भी कर रही हैं. गन्ना काटकर चीनी मिलों में भेज रही हैं. गेहूं की फसलों में पानी की सिंचाई कर रही हैं. जिन हाथों में कलम-पेन होना चाहिए आज उन कोमल हाथों में फावड़ा आ गया. ऐसी तस्वीरें मेरठ जिले के गेसुपुर बसावत गांव में देखने को मिल रही है. जहां पुरुषों की अनुपस्तिथि में महिलाएं और बेटियां खेती कर रही हैं.

महिलाएं खेतों में संभाल रहीं मोर्चा.

दिल्ली कूच के लिए भी तैयार
इस पूरे मामले में गांव की महिलाओं का कहना है कि जब तक घर के पुरुष दिल्ली में आंदोलन करते रहेंगे. वे गांव में अपनी खेती-बाड़ी को संभालेगी. कृषि विधेयक के खिलाफ किसानों का आंदोलन 4-6 महीने चले या फिर साल भर चले. वे पुरुषों की ही तरह खेती और फसलों की देखभाल करेंगी. हालांकि खेती का काम इनके लिए बहुत मुश्किल हो रहा है. बावजूद इसके खराब होती फसल उनकी हिम्मत बनी हुई है. ट्रैक्टर चलाकर खेत की जुताई कर रही छात्रा निशु का कहना है कि अगर जरूरत पड़ी तो गांव की सभी छात्राएं और महिलाएं दिल्ली में चल रहे आंदोलन के लिए भी कूच करने को तैयार हैं.


कृषि विधेयकों के विरोध में चल रहा आंदोलन
केंद्र सरकार ने करीब चार माह पहले कृषि सबन्धित तीन विधेयक पारित किए थे. किसानों ने इन कृषि विधेयकों का विरोध कर वापस लेने की मांग की थी. इसके लिए सरकार ने तीन महीने का वक्त मांगा था, लेकिन तीन महीने बाद भी सरकार ने न तो कृषि संबंधी विधेयक वापस लिए और न ही कोई संशोधन किया. इसके बाद एक बार फिर किसानों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. पिछले कई दिनों से कई राज्यों के किसान दिल्ली बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे हैं. किसान आंदोलन को देखकर सरकार किसानों के साथ बैठक कर रही है, लेकिन किसानों के मुताबिक बात नहीं होने पर बैठक भी बेनतीजा निकल रही है, जिससे किसानों का आंदोलन उग्र होने की संभावना बनी हुई है.

एक सप्ताह से आंदोलन में शामिल हैं बसावत के किसान
क्रांतिकारियों की नगरी कहे जाने वाले मेरठ जिले के बसावत गांव के किसान भी पिछले एक सप्ताह से किसान आंदोलन में डटे हुए हैं. किसान लगातार इस काले कानून का विरोध कर रहे हैं. किसान अपनी तैयार फसल को खेतों में खड़ी छोड़ अपने हक की लड़ाई लड़ रहा है. किसानों के खेतों में गन्ने की फसल तैयार खड़ी है और खेत खाली होने पर गेहूं की बुआई की जानी है. इतना ही नहीं बुवाई हो चुकी गेहूं की फसल के साथ अन्य फसलों की सिंचाई भी होनी है. इसके बावजूद देश के किसान फसलों और परिवार की चिंता करे बिना दिन-रात आंदोलन कर रहे हैं.

बेटियों और महिलाओं ने संभाली खेती-बाड़ी
पुरुषों के किसान आंदोलन में जाने के बाद खेतों में तैयार हो चुकी फसल खराब होने लगी तो गांव की बेटियों और महिलाओं ने मोर्चा संभाल लिया. पढ़ाई और घर के काम के बाद खेतों में बेटियां खेती-बाड़ी के कठिन काम को जिम्मेदारी के साथ निभा रही हैं. किसान जशबीर चौधरी की बेटी निशु चौधरी भी अपने पिता और भाई की अनुपस्तिथि में न सिर्फ खेतों में पानी से सिंचाई कर रही है, बल्कि ट्रैक्टर चलाकर जुताई भी कर रही है.

गन्ना काट रहीं घर की महिलाएं
ETV भारत की टीम ने उन किसान घर की महिलाओं से बात की जो खेतो में काम कर रही हैं. सभी महिलाएं गन्ना काट कर छील रही हैं. घर की महिला मुखिया महेन्द्री ने बताया कि उनके पति, देवर, जेठ और बेटे सब किसान आंदोलन में गए हुए हैं. घर पर कोई पुरुष नहीं है. इसके चलते घर की महिलाओं ने गन्ने की कटाई शुरू कर दी है. मिलों से पर्ची आई हुई है अगर समय पर मिलों में गन्ना नहीं गया तो पर्चियां कैंसिल हो जाएंगी, जिससे न सिर्फ उनकी गन्ने की फसल खराब हो सकती है, बल्कि गन्ना मिल में नहीं जाने से उनके सामने आर्थिक संकट भी आ सकता है.

ट्रैक्टर चलाकर कर रहीं जुताई
बसावत गांव की बेटी निशु चौधरी ट्रैक्टर चलाकर खेतों की जुताई कर रही है. महिलाएं गन्ने से खाली हुए खेतों में गेहूं की बुवाई करने की तैयारी कर रही हैं. खेतों में पानी की सिंचाई कर रही हैं. हाथों में फावड़ा लेकर ट्यूबवेल से पानी निकासी के लिए मिट्टी का भराव कर रही हैं. ETV भारत से बातचीत में निशु चौधरी ने बताया कि उसके पापा, चाचा और भाई सब भारतीय किसान यूनियन के नेतृत्व में किसान आंदोलन कर रहे हैं. पिता जसबीर चौधरी के साथ उसके दोनों भाई खेती करते हैं, लेकिन दिल्ली आंदोलन में जाने के बाद उनकी फसल खराब होने लगी तो उन्होंने अपनी मां और बहन के साथ खेती को संभाल लिया है. निशु का कहना है कि अगर उनकी फसल खराब हो गई तो उनका परिवार भुखमरी के कगार पर पहुंच जाएगा इसलिए उनसे जितना बन पा रहा है फसलों को बचाने की कोशिश की जा रही है. निशु के मुताबिक गांव की ज्यादातर महिलाएं और छात्राएं अपनी खेती-बाड़ी संभाल रही हैं.

जरूरत पड़ने पर दिल्ली करेंगी कूच
दिल्ली बॉर्डर पर किसान अपने हक की लड़ाई लड़ रहा है. घर की महिलाओं ने खेतों में काम करना शुरू कर दिया है. गांव की महिलाओं का कहना है कि जब तक उनके घर के पुरुष दिल्ली में आंदोलन करते रहेंगे, तब तक वे खेतों में काम करते हुए सरकार द्वारा बनाए गए कृषि विधेयकों के खिलाफ आंदोलन करती रहेंगी. हालांकि उनके लिए खेती करना बहुत कठिन हो रहा है. खेतो में काम कर रही महिलाओं का कहना है कि सरकार को कृषि विधेयक को वापस ले लेना चाहिए. साथ ही न्यूनतम मूल्य निर्धारित कर ऐसा कानून बनाना चाहिए, जिससे निर्धारित मूल्य से कम दाम पर फसल खरीदने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जा सके. इतना ही नहीं गांव की इन महिलाओं ने जरूरत पड़ने पर दिल्ली कूच करने का भी मन बना लिया है.

मेरठ: केंद्र की मोदी सरकार द्वारा कृषि संबंधित तीन विधेयक बिल पारित करने के बाद जहां देश का किसान आंदोलन करके दिल्ली में अपने हक की लड़ाई लड़ रहा है. वहीं, बर्बाद होती फसल को देखकर घर की महिलाओं और बच्चों ने खेती-बाड़ी का मोर्चा संभाल लिया है. बेटियां न सिर्फ फावड़ा चला रही हैं, बल्कि ट्रैक्टर चलाकर खेतों की जुताई भी कर रही हैं. गन्ना काटकर चीनी मिलों में भेज रही हैं. गेहूं की फसलों में पानी की सिंचाई कर रही हैं. जिन हाथों में कलम-पेन होना चाहिए आज उन कोमल हाथों में फावड़ा आ गया. ऐसी तस्वीरें मेरठ जिले के गेसुपुर बसावत गांव में देखने को मिल रही है. जहां पुरुषों की अनुपस्तिथि में महिलाएं और बेटियां खेती कर रही हैं.

महिलाएं खेतों में संभाल रहीं मोर्चा.

दिल्ली कूच के लिए भी तैयार
इस पूरे मामले में गांव की महिलाओं का कहना है कि जब तक घर के पुरुष दिल्ली में आंदोलन करते रहेंगे. वे गांव में अपनी खेती-बाड़ी को संभालेगी. कृषि विधेयक के खिलाफ किसानों का आंदोलन 4-6 महीने चले या फिर साल भर चले. वे पुरुषों की ही तरह खेती और फसलों की देखभाल करेंगी. हालांकि खेती का काम इनके लिए बहुत मुश्किल हो रहा है. बावजूद इसके खराब होती फसल उनकी हिम्मत बनी हुई है. ट्रैक्टर चलाकर खेत की जुताई कर रही छात्रा निशु का कहना है कि अगर जरूरत पड़ी तो गांव की सभी छात्राएं और महिलाएं दिल्ली में चल रहे आंदोलन के लिए भी कूच करने को तैयार हैं.


कृषि विधेयकों के विरोध में चल रहा आंदोलन
केंद्र सरकार ने करीब चार माह पहले कृषि सबन्धित तीन विधेयक पारित किए थे. किसानों ने इन कृषि विधेयकों का विरोध कर वापस लेने की मांग की थी. इसके लिए सरकार ने तीन महीने का वक्त मांगा था, लेकिन तीन महीने बाद भी सरकार ने न तो कृषि संबंधी विधेयक वापस लिए और न ही कोई संशोधन किया. इसके बाद एक बार फिर किसानों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. पिछले कई दिनों से कई राज्यों के किसान दिल्ली बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे हैं. किसान आंदोलन को देखकर सरकार किसानों के साथ बैठक कर रही है, लेकिन किसानों के मुताबिक बात नहीं होने पर बैठक भी बेनतीजा निकल रही है, जिससे किसानों का आंदोलन उग्र होने की संभावना बनी हुई है.

एक सप्ताह से आंदोलन में शामिल हैं बसावत के किसान
क्रांतिकारियों की नगरी कहे जाने वाले मेरठ जिले के बसावत गांव के किसान भी पिछले एक सप्ताह से किसान आंदोलन में डटे हुए हैं. किसान लगातार इस काले कानून का विरोध कर रहे हैं. किसान अपनी तैयार फसल को खेतों में खड़ी छोड़ अपने हक की लड़ाई लड़ रहा है. किसानों के खेतों में गन्ने की फसल तैयार खड़ी है और खेत खाली होने पर गेहूं की बुआई की जानी है. इतना ही नहीं बुवाई हो चुकी गेहूं की फसल के साथ अन्य फसलों की सिंचाई भी होनी है. इसके बावजूद देश के किसान फसलों और परिवार की चिंता करे बिना दिन-रात आंदोलन कर रहे हैं.

बेटियों और महिलाओं ने संभाली खेती-बाड़ी
पुरुषों के किसान आंदोलन में जाने के बाद खेतों में तैयार हो चुकी फसल खराब होने लगी तो गांव की बेटियों और महिलाओं ने मोर्चा संभाल लिया. पढ़ाई और घर के काम के बाद खेतों में बेटियां खेती-बाड़ी के कठिन काम को जिम्मेदारी के साथ निभा रही हैं. किसान जशबीर चौधरी की बेटी निशु चौधरी भी अपने पिता और भाई की अनुपस्तिथि में न सिर्फ खेतों में पानी से सिंचाई कर रही है, बल्कि ट्रैक्टर चलाकर जुताई भी कर रही है.

गन्ना काट रहीं घर की महिलाएं
ETV भारत की टीम ने उन किसान घर की महिलाओं से बात की जो खेतो में काम कर रही हैं. सभी महिलाएं गन्ना काट कर छील रही हैं. घर की महिला मुखिया महेन्द्री ने बताया कि उनके पति, देवर, जेठ और बेटे सब किसान आंदोलन में गए हुए हैं. घर पर कोई पुरुष नहीं है. इसके चलते घर की महिलाओं ने गन्ने की कटाई शुरू कर दी है. मिलों से पर्ची आई हुई है अगर समय पर मिलों में गन्ना नहीं गया तो पर्चियां कैंसिल हो जाएंगी, जिससे न सिर्फ उनकी गन्ने की फसल खराब हो सकती है, बल्कि गन्ना मिल में नहीं जाने से उनके सामने आर्थिक संकट भी आ सकता है.

ट्रैक्टर चलाकर कर रहीं जुताई
बसावत गांव की बेटी निशु चौधरी ट्रैक्टर चलाकर खेतों की जुताई कर रही है. महिलाएं गन्ने से खाली हुए खेतों में गेहूं की बुवाई करने की तैयारी कर रही हैं. खेतों में पानी की सिंचाई कर रही हैं. हाथों में फावड़ा लेकर ट्यूबवेल से पानी निकासी के लिए मिट्टी का भराव कर रही हैं. ETV भारत से बातचीत में निशु चौधरी ने बताया कि उसके पापा, चाचा और भाई सब भारतीय किसान यूनियन के नेतृत्व में किसान आंदोलन कर रहे हैं. पिता जसबीर चौधरी के साथ उसके दोनों भाई खेती करते हैं, लेकिन दिल्ली आंदोलन में जाने के बाद उनकी फसल खराब होने लगी तो उन्होंने अपनी मां और बहन के साथ खेती को संभाल लिया है. निशु का कहना है कि अगर उनकी फसल खराब हो गई तो उनका परिवार भुखमरी के कगार पर पहुंच जाएगा इसलिए उनसे जितना बन पा रहा है फसलों को बचाने की कोशिश की जा रही है. निशु के मुताबिक गांव की ज्यादातर महिलाएं और छात्राएं अपनी खेती-बाड़ी संभाल रही हैं.

जरूरत पड़ने पर दिल्ली करेंगी कूच
दिल्ली बॉर्डर पर किसान अपने हक की लड़ाई लड़ रहा है. घर की महिलाओं ने खेतों में काम करना शुरू कर दिया है. गांव की महिलाओं का कहना है कि जब तक उनके घर के पुरुष दिल्ली में आंदोलन करते रहेंगे, तब तक वे खेतों में काम करते हुए सरकार द्वारा बनाए गए कृषि विधेयकों के खिलाफ आंदोलन करती रहेंगी. हालांकि उनके लिए खेती करना बहुत कठिन हो रहा है. खेतो में काम कर रही महिलाओं का कहना है कि सरकार को कृषि विधेयक को वापस ले लेना चाहिए. साथ ही न्यूनतम मूल्य निर्धारित कर ऐसा कानून बनाना चाहिए, जिससे निर्धारित मूल्य से कम दाम पर फसल खरीदने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जा सके. इतना ही नहीं गांव की इन महिलाओं ने जरूरत पड़ने पर दिल्ली कूच करने का भी मन बना लिया है.

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