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163 साल से इस गांव में नहीं मनाया जाता दशहरा, पेड़ है गवाह - मेरठ समाचार

दशहरे का पर्व लोग काफी धूमधाम से मनाते हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश में एक ऐसा गांव है जहां के लोग 163 सालों से दशहरा नहीं मनाते. मेरठ जिले के गगोल गांव में दशहरा पर्व मनाना तो दूर आज के दिन इस गांव में चूल्हे भी नहीं जलाए जाते. पढ़िए पूरी कहानी...

फांसी वाला पेड़
फांसी वाला पेड़
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Published : Oct 25, 2020, 8:33 PM IST

मेरठ: त्यौहारों के नजदीक आते ही लोगों में खासा उत्साह देखा जाता है. लोग महीनों पहले से ही तैयारियां शुरू कर देते हैं, लेकिन मेरठ जिले के गगोव गांव में दशहरा पर्व का नाम सुनते ही लोग सिहर उठते हैं. यह सुनने में अटपटा जरूर लग रहा होगा, लेकिन हकीकत यही है.

समाधि प्रतीक.
समाधि प्रतीक.

दशहरा के दिन अंग्रेजों ने 9 क्रांतिकारियों को दी थी फांसी
मेरठ जिला मुख्यालय से करीब तीस किलोमीटर दूर गगोल गांव की कहानी ऐसी है कि जिसे सुनकर हर कोई हैरान हो जाता है. दशहरा पर्व के दिन अंग्रेजों ने 9 क्रांतिकारियों को एक साथ गांव में पीपल के पेड़ पर खुलेआम फांसी पर लटका दिया था. एक साथ 9 लोगों को फांसी दिए जाने के बाद पूरे गांव में मातम का ऐसा माहौल बना कि आज तक लोगों के जहन से नहीं निकल पाया.

दशहरे के दिन गांव में नहीं जलता चूल्हा
1857 में मेरठ शहर से ही आजादी के लिए अंग्रजों के खिलाफ आवाज उठी थी. स्थानीय लोगों का कहना है कि जब मेरठ में क्रांति की आवाज उठाई गई थी, तो गगोल गांव में 9 क्रांतिकारियों को दशहरे के दिन ही फांसी दी गई थी. इस गांव में पीपल का वह पेड़ आज भी मौजूद है, जिस पेड़ पर 9 लोगों को फांसी पर लटकाया गया था. आज के दिन इस गांव में पुरुष, महिला, बच्चे कोई भी दशहरा नहीं मनाता. इतना ही नहीं गांव में दशहरे के दिन किसी घर में चूल्हा तक नहीं जलता.

आज तक नहीं मिला शहीद का दर्जा
इस फांसी के बाद ग्रामीणों में अंग्रेजों के खिलाफ आज भी आक्रोश बना हुआ है. ग्रामीणों ने शहीद हुए क्रांतिकारियों के लिए समाधि स्थल भी पास में बना दिया है, जो उस क्रूर घटना की याद दिलाता है. खास बात यह है कि सरकार ने फांसी पर लटकाए गए क्रांतिकारियों को आज तक शहीद का दर्जा नहीं दिया. इसके लिए ग्रामीण कई दशकों से शासन-प्रशासन को पत्र लिखकर मांग कर चुके हैं.

मेरठ: त्यौहारों के नजदीक आते ही लोगों में खासा उत्साह देखा जाता है. लोग महीनों पहले से ही तैयारियां शुरू कर देते हैं, लेकिन मेरठ जिले के गगोव गांव में दशहरा पर्व का नाम सुनते ही लोग सिहर उठते हैं. यह सुनने में अटपटा जरूर लग रहा होगा, लेकिन हकीकत यही है.

समाधि प्रतीक.
समाधि प्रतीक.

दशहरा के दिन अंग्रेजों ने 9 क्रांतिकारियों को दी थी फांसी
मेरठ जिला मुख्यालय से करीब तीस किलोमीटर दूर गगोल गांव की कहानी ऐसी है कि जिसे सुनकर हर कोई हैरान हो जाता है. दशहरा पर्व के दिन अंग्रेजों ने 9 क्रांतिकारियों को एक साथ गांव में पीपल के पेड़ पर खुलेआम फांसी पर लटका दिया था. एक साथ 9 लोगों को फांसी दिए जाने के बाद पूरे गांव में मातम का ऐसा माहौल बना कि आज तक लोगों के जहन से नहीं निकल पाया.

दशहरे के दिन गांव में नहीं जलता चूल्हा
1857 में मेरठ शहर से ही आजादी के लिए अंग्रजों के खिलाफ आवाज उठी थी. स्थानीय लोगों का कहना है कि जब मेरठ में क्रांति की आवाज उठाई गई थी, तो गगोल गांव में 9 क्रांतिकारियों को दशहरे के दिन ही फांसी दी गई थी. इस गांव में पीपल का वह पेड़ आज भी मौजूद है, जिस पेड़ पर 9 लोगों को फांसी पर लटकाया गया था. आज के दिन इस गांव में पुरुष, महिला, बच्चे कोई भी दशहरा नहीं मनाता. इतना ही नहीं गांव में दशहरे के दिन किसी घर में चूल्हा तक नहीं जलता.

आज तक नहीं मिला शहीद का दर्जा
इस फांसी के बाद ग्रामीणों में अंग्रेजों के खिलाफ आज भी आक्रोश बना हुआ है. ग्रामीणों ने शहीद हुए क्रांतिकारियों के लिए समाधि स्थल भी पास में बना दिया है, जो उस क्रूर घटना की याद दिलाता है. खास बात यह है कि सरकार ने फांसी पर लटकाए गए क्रांतिकारियों को आज तक शहीद का दर्जा नहीं दिया. इसके लिए ग्रामीण कई दशकों से शासन-प्रशासन को पत्र लिखकर मांग कर चुके हैं.

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