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काल भैरव जयंती, मेरठ के मंदिर में 40 वर्ष से जल रही है अखंड ज्योति - काल भैरव जयंती

बुधवार को देशभर में काल भैरव जयंती (Kal Bhairav Jayanti ) मनाई गई. मेरठ के सैंकड़ों वर्ष पुराने सिद्ध पीठ भैरव मंदिर की मान्यता है कि यहां 40 दिन तक दीपक जलाने से हर मनोकामना पूर्ण होती है. भक्त यहां काल भैरव को प्रसन्न करने के लिए मदिरा का भोग लगाते हैं.

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Published : Nov 16, 2022, 4:33 PM IST

Updated : Nov 16, 2022, 5:09 PM IST

मेरठ: भैरव अष्टमी पर बुधवार को पूरे देश में काल भैरव जयंती (Kal Bhairav Jayanti) मनाई गई. इस दौरान मेरठ के होली मोहल्ला में स्थित काल भैरव का मंदिर में भी भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा. मान्यता है कि यह धर्मस्थल सैंकड़ों वर्ष पुराना है. यहां पूजा अर्चना में विशेष तौर पर मदिरा चढ़ाई जाती है. भक्तों का विश्वास है कि यहां आए भक्त को भैरव बाबा ने निराश नहीं किया. पंडित गीताराम बताते हैं कि यहां बाबा की मूर्ति सैंकड़ों वर्ष पुरानी है. उनका कहना है कि यहां पूजा करने से सभी प्रकार की नकारात्मकता और बुरी शक्तियां दूर होती हैं. ग्रह दोष, रोग, मृत्यु भय आदि भी खत्म हो जाता है. बुधवार को मंदिर से काल भैरव की यात्रा भी निकाली गई.

होली मोहल्ला में स्थित काल भैरव के मंदिर में पिछले 40 वर्ष से अखंड ज्योति जल रही है. वरिष्ठ पुजारी गीताराम बताते हैं कि मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को काल भैरव अष्टमी कहा जाता है. उन्होंने बताया कि भैरव अष्टमी के दिन भगवान शिव ने काल भैरव के रूप में अवतार लिया था. उन्होंने बताया कि शिवजी के कई स्वरुप हैं. परंपरा के मुताबिक, कालभैरव की घर में पूजा नहीं कि जाती इसलिए बाबा के मंदिर में इस दिन भक्तों का तांता लगा रहता है.

काल भैरव को दंडाधिकारी भी कहा जाता है. मान्यता यह है कि बाबा काल भैरव के दरबार में जिस भक्त ने हाजिरी लगा दी उसका सारा दुख बाबा हर लेते हैं. पंडित गीताराम ने बताया कि काशी के कोतवाल यानी भगवान शिव के ही क्रोध रूप वाले अवतार की पूजा करने के लिए भक्त पड़ोसी राज्य दिल्ली समेत उत्तराखंड से भी मेरठ आते हैं. सिद्ध पीठ के बारे में उन्होंने दावा किया कि सैकड़ों वर्ष पूर्व एक पीपल के पेड़ के नीच काल भैरव की मूर्ति स्थापित थी. बाद में यहां भक्तों ने समय समय पर बदलाव कर इसे भव्य मंदिर बना दिया. उन्होंने दावा किया कि काल भैरव जी की मूर्ति के पीछे एक समय में प्लेन पत्थर लगाया गया था, लेकिन अब उस पर श्वान की आकृति खुद ब खुद उभर आई है. इस कारण यहां भक्तों की आस्था बढ़ गई.

इसी तरह से दुर्गा जी की मूर्ति के पीछे के पत्थर पर वैष्णों देवी में मौजूद पिंडी का स्वरूप उभरता हुआ दिखाई देता है. भगवान शिव की मूर्ति के पीछे नाग दिखाई देते हैं. भक्तों ने बताया कि 40 दिन दीपक जलाने भर से यहां भैरों बाबा प्रसन्न होकर अपने भक्तों की मुराद पूर्ण कर देते हैं. सिद्ध पीठ के पुजारी गीतादास ने बताया कि जो भक्त यहां नहीं आ पाते, वह 40 दिन दीपक जलाने की सामग्री यहां दान करते हैं उससे भी भक्तों की मुराद बाबा पूर्ण करते हैं.

नोट : यह स्टोरी जनश्रुतियों और लोक मान्यताओं पर आधारित है.

इसे पढ़ें- सीएम योगी बोले, देवीपाटन मंदिर भारत-नेपाल के बीच सेतु का काम करता है

मेरठ: भैरव अष्टमी पर बुधवार को पूरे देश में काल भैरव जयंती (Kal Bhairav Jayanti) मनाई गई. इस दौरान मेरठ के होली मोहल्ला में स्थित काल भैरव का मंदिर में भी भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा. मान्यता है कि यह धर्मस्थल सैंकड़ों वर्ष पुराना है. यहां पूजा अर्चना में विशेष तौर पर मदिरा चढ़ाई जाती है. भक्तों का विश्वास है कि यहां आए भक्त को भैरव बाबा ने निराश नहीं किया. पंडित गीताराम बताते हैं कि यहां बाबा की मूर्ति सैंकड़ों वर्ष पुरानी है. उनका कहना है कि यहां पूजा करने से सभी प्रकार की नकारात्मकता और बुरी शक्तियां दूर होती हैं. ग्रह दोष, रोग, मृत्यु भय आदि भी खत्म हो जाता है. बुधवार को मंदिर से काल भैरव की यात्रा भी निकाली गई.

होली मोहल्ला में स्थित काल भैरव के मंदिर में पिछले 40 वर्ष से अखंड ज्योति जल रही है. वरिष्ठ पुजारी गीताराम बताते हैं कि मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को काल भैरव अष्टमी कहा जाता है. उन्होंने बताया कि भैरव अष्टमी के दिन भगवान शिव ने काल भैरव के रूप में अवतार लिया था. उन्होंने बताया कि शिवजी के कई स्वरुप हैं. परंपरा के मुताबिक, कालभैरव की घर में पूजा नहीं कि जाती इसलिए बाबा के मंदिर में इस दिन भक्तों का तांता लगा रहता है.

काल भैरव को दंडाधिकारी भी कहा जाता है. मान्यता यह है कि बाबा काल भैरव के दरबार में जिस भक्त ने हाजिरी लगा दी उसका सारा दुख बाबा हर लेते हैं. पंडित गीताराम ने बताया कि काशी के कोतवाल यानी भगवान शिव के ही क्रोध रूप वाले अवतार की पूजा करने के लिए भक्त पड़ोसी राज्य दिल्ली समेत उत्तराखंड से भी मेरठ आते हैं. सिद्ध पीठ के बारे में उन्होंने दावा किया कि सैकड़ों वर्ष पूर्व एक पीपल के पेड़ के नीच काल भैरव की मूर्ति स्थापित थी. बाद में यहां भक्तों ने समय समय पर बदलाव कर इसे भव्य मंदिर बना दिया. उन्होंने दावा किया कि काल भैरव जी की मूर्ति के पीछे एक समय में प्लेन पत्थर लगाया गया था, लेकिन अब उस पर श्वान की आकृति खुद ब खुद उभर आई है. इस कारण यहां भक्तों की आस्था बढ़ गई.

इसी तरह से दुर्गा जी की मूर्ति के पीछे के पत्थर पर वैष्णों देवी में मौजूद पिंडी का स्वरूप उभरता हुआ दिखाई देता है. भगवान शिव की मूर्ति के पीछे नाग दिखाई देते हैं. भक्तों ने बताया कि 40 दिन दीपक जलाने भर से यहां भैरों बाबा प्रसन्न होकर अपने भक्तों की मुराद पूर्ण कर देते हैं. सिद्ध पीठ के पुजारी गीतादास ने बताया कि जो भक्त यहां नहीं आ पाते, वह 40 दिन दीपक जलाने की सामग्री यहां दान करते हैं उससे भी भक्तों की मुराद बाबा पूर्ण करते हैं.

नोट : यह स्टोरी जनश्रुतियों और लोक मान्यताओं पर आधारित है.

इसे पढ़ें- सीएम योगी बोले, देवीपाटन मंदिर भारत-नेपाल के बीच सेतु का काम करता है

Last Updated : Nov 16, 2022, 5:09 PM IST
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