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Asian Games 2023 : गोल्ड मेडल विजेता अन्नू रानी बोलीं- सरकार गांवों में दे सुविधाएं तो बेटियां लाएंगी पदक

एशियाई गेम्स (Asian Games 2023) में सर्वाधिक दूरी पर भाला फेंककर देश को गोल्ड दिलाने वाली मेरठ की बेटी अन्नू रानी(Annu Rani) का जोरदार स्वागत हुआ. देश का मान बढ़ाने वाली अन्नू की सफलता की कहानी बेहद ही प्रेरणादायी है. ईटीवी भारत से एक्सक्लुसिव बातचीत में अन्नू ने संघर्ष के दिनों से लेकर देश को गोल्ड दिलाने तक की पूरी कहानी सिल सिलेवार सुनाई.

एशियाई गेम्स में गोल्ड मेडल विजेता अन्नू रानी
एशियाई गेम्स में गोल्ड मेडल विजेता अन्नू रानी
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Oct 7, 2023, 5:57 PM IST

अन्नू रानी बोली - सरकार गांवों में दे सुविधाएं, तो बेटियां लाएंगी पदक

मेरठ : चीन के हांगझाऊं में हुए एशियन गेम्स में क्रांतिधरा मेरठ की चार बेटियों ने अपने प्रदर्शन के बल पर 5 मेडल झटके हैं. प्रतियोगिता में गोल्ड पाने वाली अन्नू रानी भारत लौट चुकी है. मेरठ जिले में पहुंचने पर अन्नू का जोरदार स्वागत किया गया. गांव के सेंकड़ों लोग जहां हाथों में फूल और मिठाई लेकर अन्नू का इंतजार कर रहे थे. वहीं, किसान अपने अपने ट्रैक्टरों और चार पहिया वाहनों के काफी बड़े काफिले के साथ गांव की बेटी के खड़े थे. अन्नू रानी का मेरठ से लेकर उनके गांव बहादुरपुर तक फूलों बरसा कर स्वागत किया गया.

ईटीवी भारत से अन्नू रानी की बात
ईटीवी भारत से अन्नू रानी की बात
सुबह 4 बजे उठकर जाती थी दौड़ने:
गोल्ड मेडल विनर अन्नू ने इस मुकाम को ऐसे ही नहीं पाया है. बल्कि वर्षो की कठिन मेहनत के बल पर उन अन्नू ने एशियन गेम्स में महिला वर्ग में सर्वाधिक दूरी पर भाला फेंककर देश के लिए गोल्ड जीता है. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान अन्नू ने बताया कि एक वक्त था जब वह खिलाड़ी बनना चाहती थी. लेकिन उन्हे यह नहीं मालूम था कि किस खेल में वह खुद को निखारे. अन्नू बताते है कि शुरूआत के समय वह अपने भाई और पिता से छुपकर सुबह 4 बजे दौड़ने निकल जाया करती थी और सूरज निकलने से पहले घर वापस आ जाती थी. क्योंकि उनके गांव में लड़कियां न तो लोअर- टीशर्ट पहनती थी और न ही ऐसे कोई गेम खेलती थी. गांव के लोगों और परिजनों को यह पसंद नहीं था. इसके बाद लगभग एक साल तक गुपचुप प्रैक्टिस करती.
परिवार के साथ अन्नू रानी
परिवार के साथ अन्नू रानी

छुप कर खेलने पर पिता ने डांटा: अन्नू बताते है कि एक दिन उन्होंने खेलों में प्रतिभाग किया, वहां किसी लड़के ने उन्हे खेलते देखा तो उनके पिता को फोन कर बता दिया. जिसपर उनके पिता मोटरसाईकिल से वहां पहुंचे और बहुत फटकार लगाते हुए कहा कि "तू यहां क्या कर रही है". इसके बाद वह अपने घर वापस आ गई. जब वह 14 या 15 साल की थी. तब उन्होंने खेलना और प्रैक्टिस करना शुरू किया था. अन्नू रानी ने बताया कि पहले वह शॉर्ट पुट और डिसकस गेम में ही रूचि रखती थीं. उसके बाद जब उनके गुरूजी ने उन्हें बताया कि उनके लिए भाला फेंकना उचित रहेगा. तब से अन्नू ने भाला फेंकने पर ही फोकस करना शुरू कर दिया.

परिवार के साथ अन्नू रानी
परिवार के साथ अन्नू रानी

गमला टूटने पर रोका प्रैक्टिस से: अन्नू बताती हैं कि उस वक़्त गांव में दिक्क़त यह आती थी कि एक तो गांव में कोई खेल का मैदान नहीं था, दूसरा कोई संसाधन भी नहीं थे. एक बार के घटनाक्रम को याद करती हुई अन्नू बताती है कि एक बार वह एक विश्वविद्यालय में अभ्यास के लिए गई थी. वहां उनसे गलती से एक गमला टूट गया था. जिस पर उन्हें काफी डांट-फटकार पड़ी थी और उन्हे वहां प्रैक्टिस करने के लिए मना करते हुए बाहर निकाल दिया था. जिससे उनका मनोबल भी टूट गया था. इसके बाद उनका उत्साहवर्धन गुरकुल आश्रम के गुरुजी स्वामी विवेकानंद ने किया था.

गोल्ड मेडल विनर अन्नू रानी
गोल्ड मेडल विनर अन्नू रानी
अन्नू ने बताया कि सबसे ज्यादा उनका उत्साहवर्धन प्रभात गुरकुल आश्रम के गुरुजी स्वामी विवेकानंद का ने किया. जिनके आशीर्वाद से उन्होंने अपना लक्ष्य पाया है. अगर गुरु जी साथ नहीं देते तो शायद वह इस क्षेत्र में आज यहां तक का सफर तय नहीं कर पाती. अन्नू रानी ने बताया कि सबसे पहली बार घर वालों उनके खेलने का पता तब चला, जब उन्हे अपने क्षेत्र के एक इंटर कॉलेज में मेडल मिला था. जिसके बाद तो परिवार में हर कोई नाराज हो गया था, क्योंकि उस वक्त बेटियों के घर के बाहर जाने पर काफी रोक थी. अन्नू ने बताती है कि "मैं एक ऐसे गांव से थी जहां पर लड़कियों को इतनी छूट नहीं थी. कि वह अपने स्वयं के निर्णय ले सकें".
गोल्ड मेडल विजेता अन्नू रानी का मेरठ में जोरदार स्वागत
गोल्ड मेडल विजेता अन्नू रानी का मेरठ में जोरदार स्वागत

गुरु के समझाने पर पिता ने किया सहयोग: सभी के नाराज होने के बाद उनके गुरुजी धर्मपाल ने पिताजी को समझाया कि बेटी मेहनती है और तुम्हारा नाम रोशन कर सकती है. तो पिताजी को समझ में आ गया. इसके बाद पिता, भाई और पूरे परिवार ने काफी सहयोग किया. अन्नू बताती है कि उस दौरान घर में कोई संसाधन नहीं था. गरीबी से परिवार जूझ रहा था, क्योंकि घर में कोई वाला नहीं था. पांच भाई-बहन थे, थोड़ी सी खेती है उसी से घर से चल रहा था. लेकिन उसके बाद में जब अन्नू मेडल लाने लगी तो थोड़ा सहयोग मिला. इसके बाद सभी ने उनकी खूब मदद की. धीरे-धीरे कुछ लोग भी सहयोग के लिए आमने आए. जिन्होंने काफी सहयोग किया.


खेल से मिली जॉब और परिवार को सहारा: अन्नू बताती है "लाइफ में बदलाव तब ज्यादा बदलाव आया जब खेल की वजह से मुझे नौकरी मिल गई, तब धीरे-धीरे परेशानियां कम होने लगी थी. परिवार को भी मुझ पर अधिक भरोसा हो गया था और उसके बाद अपने गुरुजनों के आशीर्वाद और परिवार के सहयोग से आज मैं इस मुकाम तक पहुंची हूं". अन्नू बताती हैं कि गांव देहातों में आज भी बेटियां अगर लोअर या टीशर्ट पहने तो पहले परमिशन लेनी होती है. हालांकि, अनु का कहना है कि जिस तरह से अब वह आगे बढी है, उसके बाद तो बेटियों पर विश्वास बढ़ा है. बेटियां घर की दहलीज लाग कर खेल की तरफ अपना रुझान दिखा रही हैं. जिसके सकारात्मक परिणाम भी मिल रहे हैं.


वहीं, अन्नू ने सरकार से मांग की है गांव में खेल के मैदान है. लेकिन, वहां प्रशिक्षक नहीं हैं. इसीलिए योग्य प्रशिक्षक(ट्रेनर) भी नियुक्त किए जाएं. हमारे देश की बेटियां देश को खेलों में और भी ज्यादा ख्याती दिला सकती हैं.


यह भी पढे़ं: EXCLUSIVE: खेत में बांस से प्रैक्टिस करती थीं जेवलिन थ्रो में पदक जीतने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी अन्नू रानी

यह भी पढ़ें:Asian Games 2023 : अन्नू रानी के गोल्ड जीतने पर परिजनों में खुशी का माहौल, खेत में गन्ने को भाला बनाकर करती थी अभ्यास

अन्नू रानी बोली - सरकार गांवों में दे सुविधाएं, तो बेटियां लाएंगी पदक

मेरठ : चीन के हांगझाऊं में हुए एशियन गेम्स में क्रांतिधरा मेरठ की चार बेटियों ने अपने प्रदर्शन के बल पर 5 मेडल झटके हैं. प्रतियोगिता में गोल्ड पाने वाली अन्नू रानी भारत लौट चुकी है. मेरठ जिले में पहुंचने पर अन्नू का जोरदार स्वागत किया गया. गांव के सेंकड़ों लोग जहां हाथों में फूल और मिठाई लेकर अन्नू का इंतजार कर रहे थे. वहीं, किसान अपने अपने ट्रैक्टरों और चार पहिया वाहनों के काफी बड़े काफिले के साथ गांव की बेटी के खड़े थे. अन्नू रानी का मेरठ से लेकर उनके गांव बहादुरपुर तक फूलों बरसा कर स्वागत किया गया.

ईटीवी भारत से अन्नू रानी की बात
ईटीवी भारत से अन्नू रानी की बात
सुबह 4 बजे उठकर जाती थी दौड़ने: गोल्ड मेडल विनर अन्नू ने इस मुकाम को ऐसे ही नहीं पाया है. बल्कि वर्षो की कठिन मेहनत के बल पर उन अन्नू ने एशियन गेम्स में महिला वर्ग में सर्वाधिक दूरी पर भाला फेंककर देश के लिए गोल्ड जीता है. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान अन्नू ने बताया कि एक वक्त था जब वह खिलाड़ी बनना चाहती थी. लेकिन उन्हे यह नहीं मालूम था कि किस खेल में वह खुद को निखारे. अन्नू बताते है कि शुरूआत के समय वह अपने भाई और पिता से छुपकर सुबह 4 बजे दौड़ने निकल जाया करती थी और सूरज निकलने से पहले घर वापस आ जाती थी. क्योंकि उनके गांव में लड़कियां न तो लोअर- टीशर्ट पहनती थी और न ही ऐसे कोई गेम खेलती थी. गांव के लोगों और परिजनों को यह पसंद नहीं था. इसके बाद लगभग एक साल तक गुपचुप प्रैक्टिस करती.
परिवार के साथ अन्नू रानी
परिवार के साथ अन्नू रानी

छुप कर खेलने पर पिता ने डांटा: अन्नू बताते है कि एक दिन उन्होंने खेलों में प्रतिभाग किया, वहां किसी लड़के ने उन्हे खेलते देखा तो उनके पिता को फोन कर बता दिया. जिसपर उनके पिता मोटरसाईकिल से वहां पहुंचे और बहुत फटकार लगाते हुए कहा कि "तू यहां क्या कर रही है". इसके बाद वह अपने घर वापस आ गई. जब वह 14 या 15 साल की थी. तब उन्होंने खेलना और प्रैक्टिस करना शुरू किया था. अन्नू रानी ने बताया कि पहले वह शॉर्ट पुट और डिसकस गेम में ही रूचि रखती थीं. उसके बाद जब उनके गुरूजी ने उन्हें बताया कि उनके लिए भाला फेंकना उचित रहेगा. तब से अन्नू ने भाला फेंकने पर ही फोकस करना शुरू कर दिया.

परिवार के साथ अन्नू रानी
परिवार के साथ अन्नू रानी

गमला टूटने पर रोका प्रैक्टिस से: अन्नू बताती हैं कि उस वक़्त गांव में दिक्क़त यह आती थी कि एक तो गांव में कोई खेल का मैदान नहीं था, दूसरा कोई संसाधन भी नहीं थे. एक बार के घटनाक्रम को याद करती हुई अन्नू बताती है कि एक बार वह एक विश्वविद्यालय में अभ्यास के लिए गई थी. वहां उनसे गलती से एक गमला टूट गया था. जिस पर उन्हें काफी डांट-फटकार पड़ी थी और उन्हे वहां प्रैक्टिस करने के लिए मना करते हुए बाहर निकाल दिया था. जिससे उनका मनोबल भी टूट गया था. इसके बाद उनका उत्साहवर्धन गुरकुल आश्रम के गुरुजी स्वामी विवेकानंद ने किया था.

गोल्ड मेडल विनर अन्नू रानी
गोल्ड मेडल विनर अन्नू रानी
अन्नू ने बताया कि सबसे ज्यादा उनका उत्साहवर्धन प्रभात गुरकुल आश्रम के गुरुजी स्वामी विवेकानंद का ने किया. जिनके आशीर्वाद से उन्होंने अपना लक्ष्य पाया है. अगर गुरु जी साथ नहीं देते तो शायद वह इस क्षेत्र में आज यहां तक का सफर तय नहीं कर पाती. अन्नू रानी ने बताया कि सबसे पहली बार घर वालों उनके खेलने का पता तब चला, जब उन्हे अपने क्षेत्र के एक इंटर कॉलेज में मेडल मिला था. जिसके बाद तो परिवार में हर कोई नाराज हो गया था, क्योंकि उस वक्त बेटियों के घर के बाहर जाने पर काफी रोक थी. अन्नू ने बताती है कि "मैं एक ऐसे गांव से थी जहां पर लड़कियों को इतनी छूट नहीं थी. कि वह अपने स्वयं के निर्णय ले सकें".
गोल्ड मेडल विजेता अन्नू रानी का मेरठ में जोरदार स्वागत
गोल्ड मेडल विजेता अन्नू रानी का मेरठ में जोरदार स्वागत

गुरु के समझाने पर पिता ने किया सहयोग: सभी के नाराज होने के बाद उनके गुरुजी धर्मपाल ने पिताजी को समझाया कि बेटी मेहनती है और तुम्हारा नाम रोशन कर सकती है. तो पिताजी को समझ में आ गया. इसके बाद पिता, भाई और पूरे परिवार ने काफी सहयोग किया. अन्नू बताती है कि उस दौरान घर में कोई संसाधन नहीं था. गरीबी से परिवार जूझ रहा था, क्योंकि घर में कोई वाला नहीं था. पांच भाई-बहन थे, थोड़ी सी खेती है उसी से घर से चल रहा था. लेकिन उसके बाद में जब अन्नू मेडल लाने लगी तो थोड़ा सहयोग मिला. इसके बाद सभी ने उनकी खूब मदद की. धीरे-धीरे कुछ लोग भी सहयोग के लिए आमने आए. जिन्होंने काफी सहयोग किया.


खेल से मिली जॉब और परिवार को सहारा: अन्नू बताती है "लाइफ में बदलाव तब ज्यादा बदलाव आया जब खेल की वजह से मुझे नौकरी मिल गई, तब धीरे-धीरे परेशानियां कम होने लगी थी. परिवार को भी मुझ पर अधिक भरोसा हो गया था और उसके बाद अपने गुरुजनों के आशीर्वाद और परिवार के सहयोग से आज मैं इस मुकाम तक पहुंची हूं". अन्नू बताती हैं कि गांव देहातों में आज भी बेटियां अगर लोअर या टीशर्ट पहने तो पहले परमिशन लेनी होती है. हालांकि, अनु का कहना है कि जिस तरह से अब वह आगे बढी है, उसके बाद तो बेटियों पर विश्वास बढ़ा है. बेटियां घर की दहलीज लाग कर खेल की तरफ अपना रुझान दिखा रही हैं. जिसके सकारात्मक परिणाम भी मिल रहे हैं.


वहीं, अन्नू ने सरकार से मांग की है गांव में खेल के मैदान है. लेकिन, वहां प्रशिक्षक नहीं हैं. इसीलिए योग्य प्रशिक्षक(ट्रेनर) भी नियुक्त किए जाएं. हमारे देश की बेटियां देश को खेलों में और भी ज्यादा ख्याती दिला सकती हैं.


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