मेरठ : चीन के हांगझाऊं में हुए एशियन गेम्स में क्रांतिधरा मेरठ की चार बेटियों ने अपने प्रदर्शन के बल पर 5 मेडल झटके हैं. प्रतियोगिता में गोल्ड पाने वाली अन्नू रानी भारत लौट चुकी है. मेरठ जिले में पहुंचने पर अन्नू का जोरदार स्वागत किया गया. गांव के सेंकड़ों लोग जहां हाथों में फूल और मिठाई लेकर अन्नू का इंतजार कर रहे थे. वहीं, किसान अपने अपने ट्रैक्टरों और चार पहिया वाहनों के काफी बड़े काफिले के साथ गांव की बेटी के खड़े थे. अन्नू रानी का मेरठ से लेकर उनके गांव बहादुरपुर तक फूलों बरसा कर स्वागत किया गया.
छुप कर खेलने पर पिता ने डांटा: अन्नू बताते है कि एक दिन उन्होंने खेलों में प्रतिभाग किया, वहां किसी लड़के ने उन्हे खेलते देखा तो उनके पिता को फोन कर बता दिया. जिसपर उनके पिता मोटरसाईकिल से वहां पहुंचे और बहुत फटकार लगाते हुए कहा कि "तू यहां क्या कर रही है". इसके बाद वह अपने घर वापस आ गई. जब वह 14 या 15 साल की थी. तब उन्होंने खेलना और प्रैक्टिस करना शुरू किया था. अन्नू रानी ने बताया कि पहले वह शॉर्ट पुट और डिसकस गेम में ही रूचि रखती थीं. उसके बाद जब उनके गुरूजी ने उन्हें बताया कि उनके लिए भाला फेंकना उचित रहेगा. तब से अन्नू ने भाला फेंकने पर ही फोकस करना शुरू कर दिया.
गमला टूटने पर रोका प्रैक्टिस से: अन्नू बताती हैं कि उस वक़्त गांव में दिक्क़त यह आती थी कि एक तो गांव में कोई खेल का मैदान नहीं था, दूसरा कोई संसाधन भी नहीं थे. एक बार के घटनाक्रम को याद करती हुई अन्नू बताती है कि एक बार वह एक विश्वविद्यालय में अभ्यास के लिए गई थी. वहां उनसे गलती से एक गमला टूट गया था. जिस पर उन्हें काफी डांट-फटकार पड़ी थी और उन्हे वहां प्रैक्टिस करने के लिए मना करते हुए बाहर निकाल दिया था. जिससे उनका मनोबल भी टूट गया था. इसके बाद उनका उत्साहवर्धन गुरकुल आश्रम के गुरुजी स्वामी विवेकानंद ने किया था.
गुरु के समझाने पर पिता ने किया सहयोग: सभी के नाराज होने के बाद उनके गुरुजी धर्मपाल ने पिताजी को समझाया कि बेटी मेहनती है और तुम्हारा नाम रोशन कर सकती है. तो पिताजी को समझ में आ गया. इसके बाद पिता, भाई और पूरे परिवार ने काफी सहयोग किया. अन्नू बताती है कि उस दौरान घर में कोई संसाधन नहीं था. गरीबी से परिवार जूझ रहा था, क्योंकि घर में कोई वाला नहीं था. पांच भाई-बहन थे, थोड़ी सी खेती है उसी से घर से चल रहा था. लेकिन उसके बाद में जब अन्नू मेडल लाने लगी तो थोड़ा सहयोग मिला. इसके बाद सभी ने उनकी खूब मदद की. धीरे-धीरे कुछ लोग भी सहयोग के लिए आमने आए. जिन्होंने काफी सहयोग किया.
खेल से मिली जॉब और परिवार को सहारा: अन्नू बताती है "लाइफ में बदलाव तब ज्यादा बदलाव आया जब खेल की वजह से मुझे नौकरी मिल गई, तब धीरे-धीरे परेशानियां कम होने लगी थी. परिवार को भी मुझ पर अधिक भरोसा हो गया था और उसके बाद अपने गुरुजनों के आशीर्वाद और परिवार के सहयोग से आज मैं इस मुकाम तक पहुंची हूं". अन्नू बताती हैं कि गांव देहातों में आज भी बेटियां अगर लोअर या टीशर्ट पहने तो पहले परमिशन लेनी होती है. हालांकि, अनु का कहना है कि जिस तरह से अब वह आगे बढी है, उसके बाद तो बेटियों पर विश्वास बढ़ा है. बेटियां घर की दहलीज लाग कर खेल की तरफ अपना रुझान दिखा रही हैं. जिसके सकारात्मक परिणाम भी मिल रहे हैं.
वहीं, अन्नू ने सरकार से मांग की है गांव में खेल के मैदान है. लेकिन, वहां प्रशिक्षक नहीं हैं. इसीलिए योग्य प्रशिक्षक(ट्रेनर) भी नियुक्त किए जाएं. हमारे देश की बेटियां देश को खेलों में और भी ज्यादा ख्याती दिला सकती हैं.