मेरठ: ऐसे लोग बिरले ही होते हैं, जो विपरीत हालात में भी हिम्मत नहीं हारते. इन्हीं में शामिल हैं मेरठ के अमित चौधरी. अमित की कहानी किसी को भी हैरान कर देगी. पुलिसकर्मी की हत्या का आरोप लगने के बाद करीब ढाई साल जेल में भी उन्होंने बिताए. सबने साथ छोड़ दिया लेकिन अमित को तो खुद पर भरोसा था. साथ ही एक जज्बा था खुद की बेगुनाही साबित करने का. फिर वह वक्त भी आया जब कोर्ट ने उनको बरी कर दिया. मेहनत, लगन और लंबे संघर्ष की यह कहानी आज युवाओं के लिए मार्गदर्शन का काम कर रही है.
इस घटना ने बदल दी थी अमित की जिंदगी
अमित चौधरी मूल रूप से बागपत के किरठल गांव के रहने वाले हैं. बताते हैं कि 12 अक्तूबर 2011 को थानाभवन की मस्तगढ़ गांव की पुलिया पर एक लाख के इनामी सुमित कैल नाम के बदमाश ने पुलिसकर्मियों पर जानलेवा हमला कर राइफलें लूट ली थीं. जिसमें एक सिपाही की मौके पर ही दर्दनाक मौत हो गई थी, जबकि एक पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल हुआ था. इस घटना के बाद बदमाश फरार हो गए थे. इस मामले में पुलिस ने पूरे इलाके को सील कर दिया था. इसमें 17 लोगों पर हत्या और सरकारी असलहे लूटने का मुकदमा दर्ज किया गया था. अमित ने बताया कि उस वक्त उनकी उम्र 18 साल 6 माह थी और वह बीए के छात्र थे. वह सेना में जाने का सपना देखा करते थे, जिसके लिए प्रैक्टिस भी करते थे. एनसीसी में सी प्रमाणपत्र प्राप्त कर चुके थे, लेकिन वक्त को कुछ और ही मंजूर था.
सपना था सेना में जाने का, पहुंचे सलाखों के पीछे
अमित कहते हैं कि उनका जुर्म इतना ही था कि जहां यह घटना हुई, वहीं पास में उनकी बहन की ससुराल थी और वह बहन के घर पर आए हुए थे. वह बेगुनाह थे लेकिन उनकी किसी ने नहीं सुनी. हत्या का आरोप लग गया. उन्हें लोगों ने हत्यारे के रूप में देखना शुरू कर दिया. बताते हैं, उस उम्र में वह कुछ ज्यादा नहीं समझते थे. इतना ही जानते थे कि सेना में जाना है और देश की सेवा करनी है, लेकिन उस उम्र में पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. उनका सपना टूट चुका था.
परिवार और सगे संबंधियों ने भी नहीं दिया था साथ
अमित अपनी आपबीती सुनाते हुए भावुक हो जाते हैं. डबडबाई आंखें लिए कहते हैं, 862 दिन जेल में रहे. उन पर रासुका भी लगा था. उनके सारे सपने टूट गए. वह पल-पल सलाखों के पीछे बेचैन से गुजारते रहे. प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल बीएल जोशी ने रासुका हटा दिया गया था. उसके बाद किसी तरह उनकी जमानत हुई. जमानत पर आने के बाद घर पहुंचे तो उन्हें किसी ने गले से नहीं लगाया, जिससे वह बेहद आहत हुए. अमित कहते हैं कि समाज में भी लोग उन्हें अपने बीच स्वीकार करने को तैयार नहीं थे.
पेट की खातिर सड़कों पर बेचे कैलेंडर
अमित ने बताया कि उन्होंने हार नहीं मानी. अगर उनके अपनों ने उन्हें नहीं समझा तो कुछ ऐसे लोग भी मिले, जिन्होंने उनको सहारा दिया. अमित ने बताया कि जेल में इतनी घुटन उन्हें नहीं हुई, जितनी जमानत पर बाहर आने के बाद हुई. लेकिन उस बीच कई ऐसे लोग अमित के जीवन मे आए, जिन्होंने अमित को हमेशा हिम्मत दी. अमित कहते हैं, जो आपके साथ मुसीबत में खड़ा है, उससे बढ़कर कोई आपका शुभचिंतक नहीं हो सकता. अमित ने बताया कि वह गुरग्राम चले गए. वहां तीन हजार रुपये प्रतिमाह पर एक वकील के यहां मुंशी के रूप नौकरी की. सड़कों पर कैलेंडर बेचने का काम भी किया. कई बार भूखे पेट सोये. कई बार सिर्फ एक वक्त की रोटी ही नसीब होती थी. बताया कि वह अखबार में यह जानने की कोशिश करते थे कि धार्मिक आयोजन कहां है, क्योंकि वहां उन्हें भोजन मिल सकता था.
6 साल में पूरी की ग्रेजुएशन
अमित बताते हैं कि इस मुश्किल दौर में उन्होंने अपनी ग्रेजुशन पूरी की. बताते हैं कि जो डिग्री तीन साल में मिल जानी चाहिए थी, सलाखों के पीछे जाने की वजह से अतिरिक्त समय लगा. 2015 में उन्होंने बीए पूरा किया. फिर अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए मेरठ के चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से एलएलबी करने का निर्णय लिया. जब लॉ की पढ़ाई पूरी हुई तो वक्त आया असली मकसद को पूरा करने का. फिर उन्होंने अपना केस खुद लड़ा.
बेगुनाही साबित करने के लिए जुटाए साक्ष्य
अमित ने 2018 में एलएलबी करने के बाद मुजफ्फरनगर कोर्ट में चल रहे अपने मुकदमे की पैरवी खुद की. खुद को बेगुनाह साबित करने के लिए तमाम साक्ष्य एकत्र किए. कभी हिम्मत नहीं हारी. कहते हैं, ईश्वर पर विश्वास था. खुद पर भरोसा था कि ज़ब बेगुनाह हैं तो एक न एक दिन ये दाग जरूर हटेगा. इसी बीच एलएलएम भी कर लिया. अमित ने बताया कि 2020 में चौधरी चरण सिंह विश्विद्यालय से ही एलएलएम किया. इस बीच काफी समस्याएं आईं. घर परिवार, रिश्तेदार सबने तो पहले ही साथ छोड़ दिया था.
युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बने अमित चौधरी
अमित के जीवन में आखिरकार वह दिन भी आया जब उन्हें कोर्ट ने पुलिसकर्मी के कत्ल के इल्जाम से बरी कर दिया. सितंबर 2023 में अमित को कोर्ट ने बरी कर दिया. इसके साथ ही इस युवा का संघर्ष का सफर उन युवाओं के लिए प्रेरणा बन गया जो कहीं न कहीं निराश हो जाते हैं. अमित आज लोगों का हौसला बढ़ाते नजर आते हैं. आसपास में छात्र बताते हैं कि जब भी वे निराश होते हैं तो अमित भैया के पास जाकर अपनी परेशानी बताते हैं. अमित भी ऐसे युवाओं का मार्गदर्शन करते हैं.
प्रोफेसर बनकर युवाओं का भविष्य संवारना चाहते हैं अमित
अमित वर्तमान में नेट की तैयारी कर रहे हैं. इसी माह उनकी परीक्षा है. वह कहते हैं कि भविष्य में वह प्रोफेसर बनना चाहते हैं और अपने सपने को पूरा करने को प्रयत्नशील हैं. चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय की विधि अध्ययन संस्थान विभाग की प्रोफेसर डॉक्टर अपेक्षा कहती हैं कि अमित की कहानी युवाओं के लिए प्रेरणा देने वाली है. बताया कि तमाम बाधाओं के बावजूद उनके इस छात्र ने कभी धैर्य नहीं खोया. वह बताती हैं कि अमित ने अपनी लड़ाई खुद लड़ी जेल विषय को लेकर ही अमित ने एलएलएम किया. वह कहती हैं कि अमित में प्रतिभा की कमी नहीं है.
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