मेरठ : जिले के मालियाना में 36 साल पहले हमलावरों ने 72 लोगों की हत्या कर दी थी. मामले में 93 लोगों को नामजद आरोपी बनाया गया था. शनिवार को अपर जिला जज कोर्ट-6 लखविन्दर सूद ने साक्ष्य के अभाव में 40 आरोपियों को बरी कर दिया. जबकि 23 आरोपियों की मौत पहले ही हो चुकी है. मामले में कैलाश भारती भी मुख्य आरोपी थे. उन्हें भी बरी कर दिया गया. रविवार को उन्होंने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. कहा कि जिन लोगों पर आरोप लगे थे, असल में उनका मामले से कोई लेना-देना ही नहीं था, सभी पर झूठे आरोप लगाए गए थे.
मुख्य आरोपी रहे एडवोकेट कैलाश भारती ने कहा कि 1987 में 23, 24 और 25 मई को पुलिस ने झूठे आरोप लगाकर लोगों को गिरफ्तार किया था. उस दिन वह सपरिवार घर में थे. छोटे-छोटे बच्चे थे, उन सबको भी उन्होंने बाथरूम में बंद कर दिया था. यहां तक कि उन्होंने किसी को भी घर के बाहर नहीं जाने दिया था, खुद भी घर पर ही थे. उन्हें सेना की वर्दी में आए 2 अफसरों ने यह कहकर घर से बुलाया था कि गांव में जो गड़बड़ी हुई है, उसको लेकर अमन कमेटी की एक महत्वपूर्ण बैठक की जाएगी. उसमें अफसरों ने बुलाया है. इसी बहाने से उन्हें घर से बाहर बुलाया गया और फिर गिरफ्तार कर लिया गया.
कैलाश भारती ने बताया कि 1987 से पहले उनके ऊपर एक भी मुकदमा दर्ज नहीं था. जो 93 आरोपी पुलिस ने इस मामले में बनाए थे, उनमें से एक भी ऐसा नहीं था जिसका कोई भी आपराधिक इतिहास रहा हो. 151 की कार्रवाई भी कभी नहीं हुई थी. इस पूरे मामले में कई झोल भी थे. 93 के खिलाफ जो मुकदमा दर्ज किया गया था उनमें से 84 के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी. उनमें से 4 आदमी तो दंगे से मर चुके थे. तीन आदमियों के पते की पुष्टि ही नहीं हुई थी. इस तरह से कुल 9 लोग ऐसे थे जिनका कुछ पता ही नहीं था.
एक व्यक्ति इस नरसंहार के वक्त हॉस्पिटल में कई दिन पूर्व से गम्भीर बीमारियों के चलते एडमिट थे. वह 18 मई को उपचार के लिए हॉस्पिटल में भर्ती हुए थे. कैलाश भारती ने बताया कि घटना के बारे में वह कुछ नहीं जानते हैं, उन्हें नहीं मालूम किसने इतनी जानें लीं. कोर्ट के फैसले को लेकर कहा कि उन्हें न्यायपालिका पर पूर्ण भरोसा था. न्यायालय ने संवैधानिक प्रक्रिया को पूर्ण करके फैसला दिया है, वह उसका सम्मान करते हैं. हमें इंसाफ मिलने का यकीन था. क्या हिन्दू और मुस्लिम में इलाके में कोई तल्खी है, इस पर वह कहते हैं कि ऐसी कोई नहीं है. मामले में लोगों काे काफी तकलीफें उठानी पड़ी. अब कोर्ट के फैसले से दाग धुल गया.
यह था मामला : 1987 में मई में जिले के हाशिमपुरा में दंगा हो गया था. 50 से भी ज्यादा लोगों को पीएसी के जवान ट्रकों से ले गए थे. आरोप था कि मुरादनगर के पास इनमें से कुछ की हत्या कर शव को फेंक दिया गया था. इस घटना के अगले दिन कुछ लोगों ने मलियाना में लोगों पर हमला कर दिया था. दुकानों को लूट लिया गया था. घरों में भी आग लगा दी थी. 72 लोगों की हत्या कर दी गई थी.
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