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शारदा नारायण अस्पताल मामला: ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स के संबंध में धारा 154 के तहत नहीं हो सकती FIR - ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स

उत्तर प्रदेश के मऊ जिले के शारदा नारायण हॉस्पिटल मामले में ड्रग्स एवं कॉस्मेटिक्स के संबंध में उच्चतम न्यायालय ने महत्वपूर्ण निर्णय दिया है. सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक एक्ट 1940 एससी के तहत संज्ञेय अपराधों के संबंध में पुलिस अधिकारी सीआरपीसी की धारा 154 के तहत FIR दर्ज या गिरफ्तारी नहीं कर सकती है.

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शारदा नारायण अस्पताल मामले में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला.
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Published : Sep 17, 2020, 2:01 AM IST

मऊ : उत्तर प्रदेश के मऊ जिले के शारदा नारायण हॉस्पिटल मामले में ड्रग्स एवं कॉस्मेटिक्स के संबंध में उच्चतम न्यायालय ने महत्वपूर्ण निर्णय दिया है. जिले के शारदा नारायण अस्पताल के डायरेक्टर डॉ. संजय सिंह ने बताया कि यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य बनाम अशोक कुमार शर्मा और अन्य के मामले में न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति केजी जोसेप सुप्रीम कोर्ट ने दंड प्रक्रिया संहिता 1973 और ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट 1948 के अंतर पर एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है. न्यायालय ने धारा 154 सीआरपीसी के तहत एफआईआर दर्ज करने के लिए पुलिस की सख्ती के संबंध में कानून को पर्याप्त प्रश्नों का निपटारा किया.

डॉ. डॉक्टर संजय सिंह ने बताया कि 22 फरवरी 2018 को नौशाद खान ने एक ऑनलाइन शिकायत की थी. जिसके संबंध में कमिश्नर फूड प्रोडक्शन एंड ड्रग्स ने जांच का निर्देश दिया. ड्रग इस्पेक्टर मऊ दो अन्य लोगों के साथ शारदा नारायण क्लीनिक और फार्मेसी में निरीक्षण किया. साथ ही दुकान में संग्रहित दवाओं के संबंध में कागज दिखाने के लिए निर्देशित किया गया. वसूली के आधार पर और ड्रग इंस्पेक्टर की शिकायत पर 22 जून 2018 को एक प्राथमिकी दर्ज की गई.

प्रतिवादी ने एफआईआर को चुनौती दी और इसकी सुनवाई की मांग की. वहीं इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस आधार पर प्राथमिकी को रद्द कर दिया था कि अधिनियम की धारा 32 के तहत निष्ठापूर्वक निरीक्षण किया जाना चाहिए. सीआरपीसी के तहत प्राथमिकी दर्ज करने की कोई गुंजाइश नहीं है.

मऊ : उत्तर प्रदेश के मऊ जिले के शारदा नारायण हॉस्पिटल मामले में ड्रग्स एवं कॉस्मेटिक्स के संबंध में उच्चतम न्यायालय ने महत्वपूर्ण निर्णय दिया है. जिले के शारदा नारायण अस्पताल के डायरेक्टर डॉ. संजय सिंह ने बताया कि यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य बनाम अशोक कुमार शर्मा और अन्य के मामले में न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति केजी जोसेप सुप्रीम कोर्ट ने दंड प्रक्रिया संहिता 1973 और ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट 1948 के अंतर पर एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है. न्यायालय ने धारा 154 सीआरपीसी के तहत एफआईआर दर्ज करने के लिए पुलिस की सख्ती के संबंध में कानून को पर्याप्त प्रश्नों का निपटारा किया.

डॉ. डॉक्टर संजय सिंह ने बताया कि 22 फरवरी 2018 को नौशाद खान ने एक ऑनलाइन शिकायत की थी. जिसके संबंध में कमिश्नर फूड प्रोडक्शन एंड ड्रग्स ने जांच का निर्देश दिया. ड्रग इस्पेक्टर मऊ दो अन्य लोगों के साथ शारदा नारायण क्लीनिक और फार्मेसी में निरीक्षण किया. साथ ही दुकान में संग्रहित दवाओं के संबंध में कागज दिखाने के लिए निर्देशित किया गया. वसूली के आधार पर और ड्रग इंस्पेक्टर की शिकायत पर 22 जून 2018 को एक प्राथमिकी दर्ज की गई.

प्रतिवादी ने एफआईआर को चुनौती दी और इसकी सुनवाई की मांग की. वहीं इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस आधार पर प्राथमिकी को रद्द कर दिया था कि अधिनियम की धारा 32 के तहत निष्ठापूर्वक निरीक्षण किया जाना चाहिए. सीआरपीसी के तहत प्राथमिकी दर्ज करने की कोई गुंजाइश नहीं है.

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