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मऊ के साड़ी उद्योग पर पड़ा लॉकडाउन का असर, बेरोजगार हुए कामगार

यूपी के मऊ जिले की दो लाख जनसंख्या साड़ी उद्योग से जुड़ी हुई है. मऊ को पूर्वांचल का बुनकर हब भी कहा जाता है, लेकिन लॉकडाउन के चलते अब बुनकर बेरोजगार हो गए हैं. लूम बंद होने से हजारों लोगों के रोजगार छिन गए हैं, तो वहीं सैकड़ों भुखमरी की कगार पर हैं.

lockdown effect on weaving industry in mau
मऊ के साड़ी उद्योग पर पड़ा लॉकडाउन का असर.
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Published : May 2, 2020, 12:27 PM IST

Updated : May 2, 2020, 2:26 PM IST

मऊ: कोरोना वायरस की दोहरी मार बुनकरों पर पड़ रही है. लॉकडाउन के कारण लूम बन्द होने से हजारों लोगों के रोजगार छिन गए हैं तो सैकड़ों भुखमरी के कगार पर आ गए हैं. वहीं लॉकडाउन दो सप्ताह और बढ़ जाने से बुनकरों को रोटी की चिंता सता रही है.

साड़ी उद्योग पर पड़ी लॉकडाउन की मार.

80 प्रतिशत जनता हुई प्रभावित
मऊ पूर्वांचल का बुनकर हब है. जिले की दो लाख जनसंख्या हथकरघा उद्योग से जुड़ी है. सामान्य दिनों में हर घर से लूम की खटर पटर की आवाज यह बताने के लिए काफी है कि 80 प्रतिशत जनता का जीविकोपार्जन बुनाई के ताने बाने से जुड़ा है, लेकिन लॉकडाउन के चलते लूम का खटर पटर बन्द हो गया है. गलियां सूनी हैं. मोहल्ले के किसी एक-दो घर से खटर पटर की आवाज सुनाई पड़ जाती है, लेकिन लॉकडाउन के चलते 90 प्रतिशत लूम बन्द हैं.

लूम बन्द होने से जहां व्यापारियों को नुकसान हो रहा है. वहीं जो मजदूर साड़ी की बुनाई कर रोटी रोजी चलाते थे, उनका रोजगार छिन गया है, जिससे वह भुखमरी की कगार पर आ गए हैं.

बाहर से आकर काम करने वालों की स्थिति दयनीय
जनपद में बुनाई उद्योग रोजगार का बड़ा स्रोत है. यहां आसपास के जिलों के अलावा बिहार और बंगाल से भी कामगार साड़ी की बुनाई करने के लिए आते हैं. बुनाई कर ये अपने परिवार का जीविकोपार्जन करते हैं, लेकिन लॉकडाउन में लूम बन्द होने से अब इनके सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है.

बुनकरों ने बयां किया दर्द
ऐसे ही एक बुनकर हैं सलमान अहमद, जो गाजीपुर के रहने वाले हैं और मऊ शहर में बुनाई का काम करके 7 सदस्य वाले अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं. लॉकडाउन के चलते लूम बन्द होने से इनके पास खाने तक के पैसे नहीं हैं. किसी तरह इन्होंने एक छोटी सी दुकान खोल ली है, जिससे कि कुछ रुपये मिल जाए तो परिवार का भरण पोषण हो सके.

Lockdown Effect: ऑनलाइन पढ़ाई से बदला शिक्षा का स्वरूप, वाट्सऐप पर चल रही क्लास

एक अन्य बुनकर नसीम बताते हैं कि लूम चलता था तो 300 रुपये रोज कमा लेते थे, लेकिन एक महीने से काम बंद है. सेठ 15 दिन पर एक हजार देते हैं, लेकिन इससे क्या होगा. किराए का कमरा है. राशन खरीदकर खाना है. अब खाने तक के पैसे नहीं है. मुहल्ले के लोगों ने मदद करके ये छोटी सी दुकान खुलवा दी है, जिससे कुछ पैसे मिल जा रहे हैं, लेकिन इससे क्या होगा.

सरकार से मदद की उम्मीद
जिले का प्रमुख उद्योग साड़ी बुनाई है. इसको बढ़ावा देने के लिए इसे सरकार ने 'एक जनपद एक उत्पाद' में शामिल भी किया है, लेकिन लॉकडाउन के चलते बुनकरों की हालत अत्यंत ही दयनीय होती जा रही है. ऐसे में ये उम्मीद लगाए बैठे हैं कि इस विपत्ति की घड़ी में सरकार इनकी मदद करें, जिससे इनका जीवन और जिले की पहचान सुरक्षित रह सके.

मऊ: कोरोना वायरस की दोहरी मार बुनकरों पर पड़ रही है. लॉकडाउन के कारण लूम बन्द होने से हजारों लोगों के रोजगार छिन गए हैं तो सैकड़ों भुखमरी के कगार पर आ गए हैं. वहीं लॉकडाउन दो सप्ताह और बढ़ जाने से बुनकरों को रोटी की चिंता सता रही है.

साड़ी उद्योग पर पड़ी लॉकडाउन की मार.

80 प्रतिशत जनता हुई प्रभावित
मऊ पूर्वांचल का बुनकर हब है. जिले की दो लाख जनसंख्या हथकरघा उद्योग से जुड़ी है. सामान्य दिनों में हर घर से लूम की खटर पटर की आवाज यह बताने के लिए काफी है कि 80 प्रतिशत जनता का जीविकोपार्जन बुनाई के ताने बाने से जुड़ा है, लेकिन लॉकडाउन के चलते लूम का खटर पटर बन्द हो गया है. गलियां सूनी हैं. मोहल्ले के किसी एक-दो घर से खटर पटर की आवाज सुनाई पड़ जाती है, लेकिन लॉकडाउन के चलते 90 प्रतिशत लूम बन्द हैं.

लूम बन्द होने से जहां व्यापारियों को नुकसान हो रहा है. वहीं जो मजदूर साड़ी की बुनाई कर रोटी रोजी चलाते थे, उनका रोजगार छिन गया है, जिससे वह भुखमरी की कगार पर आ गए हैं.

बाहर से आकर काम करने वालों की स्थिति दयनीय
जनपद में बुनाई उद्योग रोजगार का बड़ा स्रोत है. यहां आसपास के जिलों के अलावा बिहार और बंगाल से भी कामगार साड़ी की बुनाई करने के लिए आते हैं. बुनाई कर ये अपने परिवार का जीविकोपार्जन करते हैं, लेकिन लॉकडाउन में लूम बन्द होने से अब इनके सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है.

बुनकरों ने बयां किया दर्द
ऐसे ही एक बुनकर हैं सलमान अहमद, जो गाजीपुर के रहने वाले हैं और मऊ शहर में बुनाई का काम करके 7 सदस्य वाले अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं. लॉकडाउन के चलते लूम बन्द होने से इनके पास खाने तक के पैसे नहीं हैं. किसी तरह इन्होंने एक छोटी सी दुकान खोल ली है, जिससे कि कुछ रुपये मिल जाए तो परिवार का भरण पोषण हो सके.

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एक अन्य बुनकर नसीम बताते हैं कि लूम चलता था तो 300 रुपये रोज कमा लेते थे, लेकिन एक महीने से काम बंद है. सेठ 15 दिन पर एक हजार देते हैं, लेकिन इससे क्या होगा. किराए का कमरा है. राशन खरीदकर खाना है. अब खाने तक के पैसे नहीं है. मुहल्ले के लोगों ने मदद करके ये छोटी सी दुकान खुलवा दी है, जिससे कुछ पैसे मिल जा रहे हैं, लेकिन इससे क्या होगा.

सरकार से मदद की उम्मीद
जिले का प्रमुख उद्योग साड़ी बुनाई है. इसको बढ़ावा देने के लिए इसे सरकार ने 'एक जनपद एक उत्पाद' में शामिल भी किया है, लेकिन लॉकडाउन के चलते बुनकरों की हालत अत्यंत ही दयनीय होती जा रही है. ऐसे में ये उम्मीद लगाए बैठे हैं कि इस विपत्ति की घड़ी में सरकार इनकी मदद करें, जिससे इनका जीवन और जिले की पहचान सुरक्षित रह सके.

Last Updated : May 2, 2020, 2:26 PM IST
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