मऊ : सरकार परिषदीय विद्यालयों की शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए भारी-भरकम बजट खर्च करती है, बावजूद इसके इन विद्यालयों की प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लगते रहते हैं. इसे देखते हुए परिषदीय विद्यालयों में प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाने के लिए बेसिक शिक्षा विभाग ने अरविंदो सोसाइटी की मदद से इनोवेटिव पाठशाला का आयोजन किया. इसमें गतिविधि आधारित शिक्षण पद्धति और शून्य निवेश नवाचारों को बढ़ावा देने के लिए प्रदर्शनी भी लगाई गई.
नगर पालिका कम्युनिटी हॉल में आयोजित इनोवेटिव पाठशाला का उद्घाटन जिलाधिकारी ज्ञानप्रकाश त्रिपाठी द्वारा किया गया. प्रदर्शनी में जिले के सभी शिक्षा क्षेत्रों के लगभग 40 विद्यालयों के 180 शिक्षकों ने सक्रिय भूमिका निभाई. इसमें टीएलएम (टीचिंग लर्निंग मैटेरियल्स) के माध्यम से 60 स्टॉलों पर शून्य निवेश नवाचार का प्रदर्शन किया गया. जिलाधिकारी और बीएसए ने नवाचारी शिक्षकों को सम्मानित भी किया.
श्री अरविंदो सोसाइटी के आजमगढ़ और चित्रकूट मंडल प्रभारी नवनीत श्रीवास्तव ने बताया कि इनोवेटिव पाठशाला पूरे प्रदेश में क्रियान्वित की जा रही है. इसका उद्देश्य शून्य निवेश नवाचार के माध्यम से शिक्षण प्रक्रिया को बेहतर और सुगम बनाना है. इससे बच्चे विद्यालयों से दूर नहीं भागेंगे और शिक्षक और बच्चों के बीच की दूरी को कम की जा सकती है.
शिक्षा में शून्य निवेश नवाचार की शुरुआत 2015 से की गई थी. उत्तर प्रदेश में शुरू की गई ZIIEI (जीरो इंवेस्टमेंट इनोवेशन्स फॉर एजुकेशन इनिशिएटिव्स) प्रोग्राम के लिए 5.5 लाख शिक्षकों से बातें की थीं. इसमें 3 लाख शिक्षकों ने अपने नवाचार भेजे. जिसमें पूरे उत्तर प्रदेश से 30 शिक्षकों के नवाचार को सेलेक्ट किया गया. इन शिक्षकों के नवाचार को हमारी नवाचार पुस्तिका में स्थान दिया गया. आज इन 30 शिक्षकों के नवाचार को 23 राज्यों में प्रयोग किया जाता है, यह गर्व की बात है.
जिलाधिकारी ने प्रदर्शनी में लगे सभी स्टॉलों पर मॉडलों को देखा और शिक्षकों से जानकारी ली. उन्होंने कहा कि प्राथमिक और जूनियर स्कूलों में शिक्षा पद्धति में सुधार किया जा रहा है. प्रदर्शनी में जिले के विभिन्न परिषदीय विद्यालयों की प्रदर्शनी लगाई गई थी. अध्यापक बच्चों के पति समर्पित होकर शिक्षण कार्य कर रहे हैं. जिसका बदलाव बच्चों में भी देखने को मिल रहा है.
शून्य निवेश नवाचार में घर में बेकार पड़ी वस्तु जैसे कागज, गत्ता, कलम, बर्तन, डिब्बे, प्लास्टिक आदि के प्रयोग से मॉडल बनाकर बच्चों को प्रैक्टिकली समझाया जाता है. सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण, सोलर कूकर, प्रकाश संश्लेषण क्रिया आदि विज्ञान की बातों को प्रयोग करके दिखाया जाता है. इससे बच्चे तेजी से वैज्ञानिक बातों को सीखते और समझते हैं.