मऊ : अपनी अनोखी कला और गुणवत्ता के लिए दुनिया भर में मशहूर मऊ की साड़ी को आखिर अपनी पहचान मिल ही गई. उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने मंगलवार को अपने मऊ दौरे के दौरान, यहां के बुनकरों को उनकी पहचान दिलाते हुए मऊ साड़ी को जीआई टैगिंग पत्र प्रदान किया. जीआई (GI) टैगिंग के बाद मऊ की साड़ियों को अपनी खुद की पहचान मिल गई है.
दरअसल, जीआई (GI) टैग यह दर्शाता है कि सामान उसी क्षेत्र का बना हुआ है. जीआई टैग मिलने के बाद बुनकरों में खुशी की लहर है. ईटीवी भारत से बात करते हुए बुनकर ने बताया कि मऊ की साड़ी बनाने की कला अपने आप में अनूठी है. इस प्रकार की साड़ी सिर्फ यहीं बनती है. इसकी नकल बनारस तथा अन्य क्षेत्रों में की जाती है, लेकिन वह गुणवत्ता नहीं दे पाते हैं. जीआई टैगिंग से हमें यह लाभ है कि अब मऊ की साड़ी को कोई और नहीं बेच सकता.
बुनकरों का कहना था कि मऊ की साड़ियों को बनारसी साड़ी बनाकर बेच दिया जाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं हो सकता. अगर ऐसा होता है तो हम बुनकर लोग कोर्ट जा सकते हैं. अब मऊ की साड़ियों को इंटरनेट और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जीआई (GI) द्वारा सर्च किया जा सकता है. उन्होंने बताया- जिले में लगभग 50,000 पावरलूम और दो हजार हैंडलूम हैं, जिसमें लगभग 40,000 बुनकर हैं. जिला उद्योग केंद्र के प्रबंधक द्वारा इन्हें किट बॉक्स और प्रशिक्षण दिया जाता है. साथ ही उन्हें हर संभव सहायता प्रदान की जाती है.
इसे भी पढ़ें- छोटे कारीगरों के बनाए गए उत्पादों के बारे में राज्यपाल ने ली जानकारी
जीआई टैग मिलने पर यहां के बुनकरों का कहना था, सैकड़ों सालों से बन रही मऊ की साड़ियों को आजादी के 75 साल के बाद अब जाकर उन्हें अपनी पहचान मिली है. सरकार और राज्यपाल की इस पहल से मऊ के बुनकर काफी खुश हैं.