मथुरा: मथुरा के साधु-संत अब उस कानून में बदलाव की मांग कर रहे हैं, जिसे 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की सरकार लेकर आई थी. पूजा स्थल कानून के मुताबिक 15 अगस्त, 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता है. अगर कोई ऐसा करने की कोशिश करता है तो उसे एक से तीन साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है. हालांकि, अयोध्या का मामला उस वक्त कोर्ट में था, इसलिए उसे इस कानून से अलग रखा गया था. वहीं, इस बीच काशी में कमीशन की कार्यवाही के दौरान ज्ञानवापी परिसर में मिले विशाल शिवलिंग के बाद से ही संत समाज में खासा उत्साहित है. वहीं, अब दूसरी ओर साधु-संत केंद्र सरकार से मांग करने लगे हैं कि जिस तरह जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाई गई ठीक उसी तरह 1991 धार्मिक स्थल को लेकर बनाए गए कानून में बदलाव की जरूरत है.
इधर, वृंदावन के संतों ने इस कानून में बदलाव के लिए केंद्र सरकार से निवेदन करते हुए कहा कि जिस तरह जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाई गई ठीक उसी प्रकार 1991 में बने इस कानून में भी बदलाव की जरूरत है. धार्मिक स्थलों की सुरक्षा और उसको विकसित करने के लिए सरकार को तत्परता दिखाने की जरूरत है, क्योंकि पूर्व में विदेशी हुक्मरान और मुगल शासकों ने मंदिरों को तोड़कर मस्जिद का अवैध निर्माण कराया था. ऐसे में जहां-जहां मंदिर तोड़े गए थे, वहां दोबारा मंदिर का निर्माण कराया जाए.
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वहीं, काशी विद्वत परिषद के पश्चिम भारत के प्रभारी कार्ष्णि नागेंद्र महाराज ने कहा कि ज्ञानवापी में कमीशन की कार्यवाही के दौरान विशाल शिवलिंग मिलने के उपरांत वहां भव्य मंदिर का निर्माण होना चाहिए. साथ ही उन्होंने कहा कि मीडिया के माध्यम से देश के लाखों लोगों ने शिवलिंग के दर्शन किए हैं.
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